Rath yatra के लिए हर साल बनाए जाते हैं नए रथ, जानिए कब और कैसे होता है रथों का निर्माण
पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए रथों के निर्माण की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। रथयात्रा के लिए हर साल तीन नए रथों का निर्माण किया जाता है। जिस स्थान पर रथों का निर्माण किया जाता है उसे रथकला कहते हैं।;
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा: फोटो- सोशल मीडिया
Rathyatra : पुरी में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए रथो के निर्माण की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथ हर साल भक्तों के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र होते हैं। इस साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 12 जुलाई से शुरू होने वाली है और इसलिए अब रथों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। पिछले साल की तरह इस साल भी रथयात्रा पर कोरोना महामारी का असर दिखेगा और इसमें भक्तों को शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई है। मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों की ओर से ही रथयात्रा से जुड़े सभी कार्य पूरे किए जाएंगे।
रथयात्रा के लिए हर साल तीन नए रथों का निर्माण किया जाता है। जिस स्थान पर रथों का निर्माण किया जाता है उसे रथकला कहते हैं और रथों का निर्माण करने वाले कारीगर निर्माण प्रक्रिया शुरू होने के बाद अपने घर नहीं जाते और किसी बाहरी व्यक्ति से भी नहीं मिलते। रथों का निर्माण करने वाले कारीगर रोज सुबह आठ बजे से रात दस बजे तक लगातार मेहनत करने के बाद रथों को ऐसा आकर्षक रूप देते हैं जो हर किसी का मन मोह लेते है।
बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है प्रक्रिया
पुरी की ऐतिहासिक रथयात्रा के लिए रथों के निर्माण की प्रक्रिया में पुरानी परंपराओं का पालन किया जाता है। रथों के निर्माण की प्रक्रिया अक्षय तृतीया से शुरू होती है मगर इसके लिए लकड़ी चुनने का काम बसंत पंचमी से ही शुरू कर दिया जाता है। लकड़ी के लिए पेड़ों का चयन करने वाले दल को महाराणा कहा जाता है और यह दल बसंत पंचमी से ही अपना काम शुरू कर देता है।
रथों के निर्माण में नारियल और नीम के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है और पुरी से सटे दसपल्ला जिले के जंगलों से रथ निर्माण के लिए लकड़ियां काटी जाती हैं। पेड़ों को काटने का भी धार्मिक विधान निश्चित है और इसके लिए पहले जंगल की देवी से अनुमति भी हासिल की जाती है। पेड़ काटने के बाद भी पूजा की जाती है और इसके बाद ही लकड़ियों को रथों के निर्माण के लिए पुरी लाया जाता है।
बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाती है प्रक्रिया: फोटो- सोशल मीडिया
निर्माण शुरू होने से पहले पूजा
रथों का निर्माण शुरू करने से पहले मंत्रोच्चार के साथ पूजा की जाती है। तीन रथों के लिए तीन बड़े तनों को मंदिर परिसर में रखकर पूजा का काम पूरा किया जाता है। भगवान जगन्नाथ पर चढ़ाई गई मालाएं इन तीन तनों पर चढ़ाई जाती हैं। तीनों तनों पर चावल और नारियल चढ़ाने के साथ ही यज्ञ भी किया जाता है।
रथों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने पर सबसे पहले चांदी की कुल्हाड़ी से इन तीनों तनों को सांकेतिक रूप से थोड़ा सा काटा जाता है और इसके बाद फिर विधिवत तरीके से रथों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है।
रथों के निर्माण की अलग-अलग जिम्मेदारी
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए रथों के निर्माण का काम करने वाले अधिकांश कारीगर ऐसे हैं जो पुश्तैनी रूप से यह काम करते चले आ रहे हैं। वे बचपन से ही अपने पूर्वजों को यह काम करते हुए देख चुके होते हैं और इस कारण उन्हें रथ निर्माण में महारत हासिल हो जाती है। हालांकि ये कारीगर किताबी ज्ञान की दुनिया से बहुत दूर हैं मगर इन्हें रथ निर्माण से जुड़ी छोटी से छोटी बारीकियां भी पता होती हैं। इसी कारण वे इतना आकर्षक रथ बनाने में कामयाब होते हैं।
रथों का निर्माण करने वाले सभी कारीगरों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय होती है। कोई कारीगर रथों की लंबाई के हिसाब से लकड़ियां काटता है तो कोई कारीगर रथों के पहिए का निर्माण करता है। कोई कारीगर रथों के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने का काम करता है तो कोई रंग रोगन से लेकर चित्रकारी तक की जिम्मेदारी निभाता है।
रथों की सजावट के लिए कपड़े सिलने और उन्हें डिजाइन करने के लिए भी विशेष योग्यता वाले दर्जी होते हैं। ये दर्जी भी परंपरागत रूप से यह काम करते चले आ रहे हैं। इस कारण इन्हें भी कपड़ों को सिलने में कोई दिक्कत नहीं होती।
रथों पर की जाती है बेहद सुंदर चित्रकारी: फोटो- सोशल मीडिया
रथों पर की जाती है बेहद सुंदर चित्रकारी
तीनों रथों की साज-सज्जा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। हर रथ के चारों ओर नौ पार्श्व देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं तीनों रथों पर बेहद सुंदर चित्रकारी के जरिए विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र उकेरे जाते हैं। इसके साथ ही तीनों रथों पर एक सारथी और चार घोड़े भी जरूर बनाए जाते हैं। तीनों रथों का निर्माण और साज सज्जा पूरी हो जाने के बाद इन्हें जगन्नाथ मंदिर के पूर्वी द्वार पर बड़े डंडे के सहारे खड़ा कर दिया जाता है।
तीनों रथों के अलग-अलग नाम
रथयात्रा के दौरान सबसे आगे बलभद्र का रथ चलता है। उसके बाद देवी सुभद्रा और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ रथ चलता है। बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है जबकि सुभद्रा के रथ को देवदलन कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज और नंदीघोष आदि नामों से जाना जाता है।
रथयात्रा संपन्न होने के बाद रथों के निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ियां भक्तों के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। इन लकड़ियों को हासिल करने के लिए भक्त काफी मेहनत करते हैं और इनका इस्तेमाल घरों के दरवाजों और खिड़कियों आदि में किया जाता है। कई घरों में लकड़ियों की पूजा भी की जाती है।