Jammu Kashmir Domicile: कश्मीर में जवाईं डोमिसाइल वार से भाजपा ने किया सबको चित
पूर्ववर्ती अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के तहत सिर्फ महिला ही कश्मीर की स्थायी निवासी रहती, उसके बच्चों और पति को इस दायरे से बाहर रखा जाता था, जबकि कश्मीरी पुरुष के राज्य से बाहर की किसी महिला से शादी करने पर उसके बीवी बच्चों को स्थायी निवासी माना जाता था।
Jammu Kashmir Domicile: कश्मीर की महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने की दिशा में एक बड़ा काम हुआ है जिसके तहत पुरुषों की तरह महिलाओं को भी राज्य से बाहर शादी करने पर उनके पति व बच्चों को बाहरी नहीं माना जाएगा। पूर्ववर्ती अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के तहत सिर्फ महिला ही कश्मीर की स्थायी निवासी रहती, उसके बच्चों और पति को इस दायरे से बाहर रखा जाता था, जबकि कश्मीरी पुरुष के राज्य से बाहर की किसी महिला से शादी करने पर उसके बीवी बच्चों को स्थायी निवासी माना जाता था। यह एक बड़ी विसंगति थी जिसका छ्दम धर्म निरपेक्षतावादी लगातार समर्थन कर रहे थे। पिछले तीन साल से यह मुद्दा चर्चा में भी था। निसंदेह प्रशासन का यह कदम लैंगिक असमानता खत्म करने की दिशा में अहम कदम है।
अब जबकि जम्मू और कश्मीर प्रशासन की ओर से 20 जुलाई, 2021 को नई अधिसूचना जारी कर दी गई है। एक नजर डालते हैं पुरानी व्यवस्था पर जिसके तहत राज्य की नागरिकता की बहुत सीमित परिभाषा तय की गई थी जो महिलाओं को वंचित रखने की परंपरा की सूचक थी।
एक नजर पुरानी व्यवस्था पर
1954 में संविधान में जोड़ी गई धारा 35-A जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के 'स्थायी निवासी' की परिभाषा तय करने का अधिकार देती थी। 1956 में जम्मू-कश्मीर में इस कानून के जरिये स्थायी शहरियत की परिभाषा तय की गई।
इस व्यवस्था में स्थायी नागरिक वही हो सकता था जो 14 मई 1954 को राज्य का शहरी रहा हो और कानूनी तरीके से राज्य में अचल संपत्ति खरीदी हो। इसके अलावा वह शख्स जो 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, या 1 मार्च 1947 के बाद राज्य से माइग्रेट होकर चला गया हो, लेकिन प्रदेश में वापस रीसेटलमेंट परमिट के साथ आया हो।
सरकार द्वारा इस व्यवस्था को आलोचक कश्मीर के भगवाकरण की राजनीति से बेशक जोड़ें लेकिन जम्मू-कश्मीर की बेटी से शादी करने वाले दूसरे राज्यों के पतियों को डोमिसाइल का हक मिलने से आम जनता खुश है।
जम्मू कश्मीर की राजनीति के दोनो पुरोधा अब्दुल्ला या मुफ्ती परिवार इस पर भले ही कुछ भी भड़ास निकालें लेकिन खुश तो वह भी होंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद या पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी ऊपर से कुछ भी कहें लेकिन भीतर ही भीतर खुश जरूर होंगे।
राजनीतिक दिग्गजों के हक में फैसला
राजनीतिक दिग्गजों के लिए ये खुशी का क्षण है क्योंकि नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला की बेटी और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला की शादी राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से हुई है। बेशक सचिन पायलट की राजस्थान की सियासत में खास पकड़ है लेकिन अब वह जम्मू कश्मीर में भी पींगें बढ़ा सकते हैं।
इसी तरह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की छोटी बहन रुबिया सईद की शादी भी दक्षिण भारत में चेन्नई में शरीफ अहमद के साथ हुई है। उनके पति का आटोमाबाइल का बिजनेस है। निश्चय ही उनके पति इस मौके का अपने बिजनेस को फैलाने में उपयोग करना चाहेंगे।
जम्मू कश्मीर के पहले व अंतिम सदर-ए-रियासत व कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता डा. कर्ण सिंह की पौत्री मृगांका सिंह की शादी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के नाती निर्वाण सिंह से हुई है। अमरेंद्र सिंह नाती की राजनीतिक जमीन कश्मीर में तलाश सकते हैं।
इस कड़ी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद क्यों पीछे रहें उनकी बेटी सोफिया आजाद की शादी भी दक्षिण भारत के एक प्रतिष्ठित कार्पोरेट परिवार में हुई है। अब उनके जवाईं को भी कश्मीर में रहने बसने का पूरा हक है।
इस तरह से जनता के हक में महिलाओं को मजबूती देने वाला ये फैसला मन मसोस कर भी मानना विपक्ष के कद्दावर नेताओं की मजबूरी है लेकिन फायदा भाजपा को मिलना है। कहें चाहे जो भी।