कंधार में मारकाट: भारत ने कॉन्सुलेट बंद किया, चीन ने अपने नागरिक निकाले
Kandahar: अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की अचानक गुपचुप वापसी के बाद पूरे अफगानिस्तान में मारकाट मची हुई है। तालिबानी लड़ाके एक के बाद एक नए इलाकों पर कब्जा जमाते जा रहे हैं।
Kandahar: अफगानिस्तान (Afghanistan) का दूसरा सबसे बड़ा शहर कंधार (Kandahar), जिसे सिकंदर ने बसाया, स्थापित किया था, जिस शहर पर कब्जे के लिए सैकड़ों साल में दर्जनों युद्ध लड़े गए, लाखों लोग मारे गए, उसी कंधार की सरजमीं आज फिर रक्तरंजित है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं (US Army) की अचानक गुपचुप वापसी के बाद पूरे अफगानिस्तान में मारकाट मची हुई है। तालिबानी (Talibani) लड़ाके एक के बाद एक नए इलाकों पर कब्जा जमाते जा रहे हैं और अब कंधार की बारी आ गई है। कंधार सिटी के बाहरी इलाकों पर कब्जा करने के बाद अब तालिबानी लड़ाके भीतर घुस चुके हैं। यहां तालिबानी और लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) दोनों साथ मिल कर अफगानी सुरक्षा बलों से लड़ रहे हैं। दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार और हेलमंड प्रान्तों में लश्कर के 7 हजार से ज्यादा लड़ाके मौजूद हैं।
कंधार का किला ढहते देख कर भारत ने वहां अपने कॉन्सुलेट से सभी कर्मचारियों और आईटीबीपी के जवानों को सुरक्षित निकाल लिया है। वायु सेना के एक स्पेशल विमान से सभी लोगों को हटा लिया गया और कॉन्सुलेट (Consulate) को बंद कर दिया गया।
अफगानिस्तान में मौजूद भारत के कई राजनयिक
जिस तरह लश्कर वहां तालिबान से मिल कर लड़ रहा है, उससे भारतीय स्टाफ और सुरक्षाबलों के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका था। अफगानिस्तान में अब भी भारत (India) के कई राजनयिक और तीन हजार से ज्यादा भारतीय नागरिक मौजूद हैं, जिनकी सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा हो गई है।
चीन ने अपने 210 नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाला
इस बीच चीन (China) ने भी अपने 210 नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाल लिया है। इनको काबुल से एक स्पेशल विमान से वुहान पहुंचाया गया है। चीन ने अफगानिस्तान में मौजूद सभी चीनी नागरिकों से तत्काल बाहर निकल जाने को कहा है।
तालिबान के हेडक्वार्टर रहा कंधार
90 के दशक से लेकर 2001 तक कंधार तालिबान के हेडक्वार्टर रहा था। बाद में अमेरिकी सेनाओं के हमले के बाद तालिबानियों को यहां से खदेड़ दिया गया था। आज अफगान सुरक्षा बलों की संख्या करीब 3 लाख है जबकि तालिबानी करीब 75 हजार हैं। अफगानिस्तान में अब वही स्थिति बनती जा रही जो सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद प्रेसिडेंट मोहम्मद नजीबुल्ला की सरकार के समय हुई थी। तालिबानियों ने उस समय भयंकर मारकाट मचाई थी और नजीबुल्ला को संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर से किडनैप करके मार डाला था। बाद में नजीबुल्ला और उनके भाई की लाशों को राष्ट्रपति के महल के बाहर स्ट्रीट लाइट के खम्भे से लटका दिया गया था।
समय चक्र
अफगानिस्तान में सोवियत संघ के कब्जे के दौरान और बाद में सोवियत समर्थित नजीबुल्ला सरकार के खिलाफ चले संघर्ष में अमेरिका ने तालिबान मुजाहिदीन को पूरा समर्थन दिया था। आज वही तालिबान अमेरिका समर्थित अशरफ गनी के खिलाफ लड़ रहा है।