पाइका विद्रोह जिसे सरकार घोषित करेगी पहला स्वतन्त्रता संग्राम, जानें 1817 विद्रोह का पूरा इतिहास
Paika Rebellion: केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने के अनुरोध पर शिक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है।
Paika Rebellion: केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने के अनुरोध पर शिक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है। बता दें कि 2017 में भी इस विषय पर बात उठी थी। जिसके बाद भी शिक्षा पाठ्यक्रमों में उड़ीसा के पाइका संग्रामियों के बारे में शामिल करने की बात कही गयी थी। उड़ीसा के राज्यसभा सांसद प्रसन्ना आचार्य द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में यह जानकारी दी।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 1817 में ओडिशा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ पाइका द्वारा ऐतिहासिक सशस्त्र विद्रोह 'पाइका विद्रोह' को स्वतंत्रता के पहले युद्ध के रूप में मान्यता देने का गृह मंत्रालय से पहले ही अनुरोध किया था।
जिस पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री किशन रेड्डी ने कहा कि 'पाइका विद्रोह' को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित किए जाने का अनुरोध संस्कृति मंत्रालय को प्राप्त हुआ था। इस मामले की जांच भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद, शिक्षा मंत्रालय के परामर्श से किया गया था। और यह वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय के विचाराधीन है।
केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि जिला स्तर पर डिजिटल संग्रह सृजित करें
केंद्र सरकार ने ओडिशा सहित सभी राज्य सरकारों से अनुरोध किया है कि जिला स्तर पर डिजिटल संग्रह सृजित किया जाए। ताकि जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों सहित स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी स्मृतियों को संरक्षित किया जा सके और आजादी का अमृत महोत्सव के तहत भारत सरकार द्वारा विकसित किए जा रहे वेब पोर्टल पर अपलोड किया जा सके। हालांकि इस पूरे विवाद को समझने के लिये अतीत के पन्नो को झांकना पड़ेगा।
जानें पाइका का इतिहास
पाइका विद्रोह 1817 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध उड़ीसा में पाइका जाति के लोगों द्वारा किया गया एक सशस्त्र, व्यापक आधार वाला और संगठित विद्रोह था। पाइका जाति भगवान जगन्नाथ को उड़ीया एकता का प्रतीक मानती थी।
पाइका सैन्य दल ने 1817 ई. में ब्रिटिशों को अचंभे में डाल दिया था
पाइका ने एक असंगठित सैन्य दल- 1817 में ओडिशा में हुए पाइका विद्रोह ने पूर्वी भारत में कुछ समय के लिए ब्रिटिशों को अचंभे में डाल दिया था। पाइका ओडिशा के उन गजपति शाषकों के किसानों का असंगठित सैन्य दल था। जो युद्ध के समय राजा को सैन्य सेवाएं मुहैया कराते थे। और बाकी के समय में शांतिकाल में खेती करते थे।
1803 में उठी चिंगारी
ब्रिटिश राज ने ओडिशा के उत्तर में स्थित बंगाल प्रांत और दक्षिण में स्थित मद्रास प्रांत पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने 1803 में ओडिशा को भी अपने अधिकार में कर लिया था। उस समय ओडिशा के गजपति राजा मुकुंददेव द्वितीय अवयस्क थे। और उनके संरक्षक जय राजगुरु द्वारा किए गए शुरुआती प्रतिरोध का क्रूरता पूर्वक दमन किया गया। और जयगुरु के शरीर के जिंदा रहते हुए ही उसके टुकड़े कर दिए गए।
बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में लड़ाई
कुछ सालों के बाद गजपति राजाओं के असंगठित सैन्य दल के वंशानुगत मुखिया बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में पाइका विद्रोहियों ने आदिवासियों और समाज के अन्य वर्गों का सहयोग लेकर बगावत कर दी। पाइका विद्रोह 1817 में आरंभ हुआ और बहुत ही तेजी से फैल गया। हालांकि ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह में पाइका लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी।
आदिवासी भी बगावत पर उतरे
वास्तव में पाइका विद्रोह के विस्तार का सही अवसर तब आया, जब घुमसुर के 400 आदिवासियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत करते हुए खुर्दा में प्रवेश किया। खुर्दा, जहां से अंग्रेज भाग गए थे। वहां की तरफ कूच करते हुए पाइका विद्रोहियों ने ब्रिटिश राज के प्रतीकों पर हमला करते हुए पुलिस थानों, प्रशासकीय कार्यालयों और राजकोष में आग लगा दी।
पाइका विद्रोहियों को कनिका, कुजंग, नयागढ़ और घुमसुर के राजाओं, जमींदारों, ग्राम प्रधानों और आम किसानों का समर्थन प्राप्त था। यह विद्रोह बहुत तेजी से प्रांत के अन्य इलाकों जैसे पुर्ल, पीपली और कटक में फैल गया।
चकित रह गए अंग्रेज
विद्रोह से पहले तो अंग्रेज चकित रह गए। लेकिन बाद में उन्होंने आधिपत्य बनाए रखने की कोशिश की। जिसक बाद उन्हें पाइका विद्रोहियों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। बाद में हुई कई लड़ाइयों में विद्रोहियों को जीत मिली। लेकिन तीन महीनों के अंदर ही अंग्रेज अंतत: उन्हें पराजित करने में सफल रहे।
दमन का व्यापक दौर चला
इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला। जिसमें कई लोगों को जेल में डाला गया और लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। बहुत बड़ी संख्या में लोगों को अत्याचारों का सामना करना पड़ा। कई विद्रोहियों ने 1819 तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार दिया गया। बक्शी जगबंधु को अंतत: 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया। और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई।
पाइका विद्रोह के कई सामजिक आर्थिक और राजनीतिक कारण थे
पाइका विद्रोह के कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण थे। 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खुर्दा (उड़ीसा) की विजय के बाद पाइकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा घटने लगी। अंग्रेज़ों ने खुर्दा पर विजय प्राप्त करने के बाद पाइकों की वंशानुगत लगान-मुक्त भूमि हड़प ली तथा उन्हें उनकी भूमि से विमुख कर दिया। इसके बाद कंपनी की सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा उनसे जबरन वसूली और उनका उत्पीड़न किया जाने लगा।
कंपनी की जबरन वसूली वाली भू-राजस्व नीति ने किसानों और ज़मींदारों को एक तरह से किया प्रभावित
नई सरकार द्वारा लगाए गए करों के कारण नमक की कीमतों में वृद्धि आम लोगों के लिये तबाही का स्रोत बनकर आई। इसके अलावा कंपनी ने कौड़ी मुद्रा व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया था। जो कि उड़ीसा में कंपनी के विजय से पहले अस्तित्व में थी। और जिसके तहत चांदी में कर चुकाना आवश्यक था। यही इस असंतोष का सबसे बड़ा कारण बना।
अंग्रजों ने विद्रोह को दबाने के लिए उठाए कठोर कदम
अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए। ताकि वो युद्ध में हारी जगहों को वापस पा सके और फिर से शांति व्यवस्था बहाल कर सके। इस दौरान दमन का व्यापक दौर चला जिसमें कई लोगों को जेल में डाला गया और भारी संख्या में लगों ने अपनी जाने गंवाईं। हालांकि शुरुआत में विद्रोही सेना ने कई लड़ाईयां जीती। लेकिन अंग्रेज़ इस उठती चिंगारी को बुझाने में सफल रहे।
अक्टूबर 1817 में यह युद्ध समाप्त हो गया
पाइका विद्रोह को ओडिशा में बहुत उच्च दर्ज़ा प्राप्त है। और बच्चे अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ाई में पाइका विद्रोहियों की वीरता की कहानियां पढ़ते हुए बड़े होते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस विद्रोह को राष्ट्रीय स्तर पर वैसा महत्त्व नहीं मिला है। जैसा कि मिलना चाहिये। हालांकि आगे कुछ अब प्रगतिमय कार्य होने की संभावनाएं हैं।