Phoolan Devi: मौत के बीस साल बाद फिर मौजूं, तेज हुईं जिंदा करने की कोशिशें
Phoolan Devi birth anniversary: फूलन देवी का जन्म जालौन जिले की गोरहा ग्राम पंचायत के पूर्वा गांव में 10 अगस्त 1963 को मल्लाह परिवार में हुआ था। कहते हैं जब वह आठ साल की मासूम बच्ची थी तभी दबंगों ने उसका उत्पीड़न शुरू कर दिया था।
Phoolan Devi birth anniversary: ये नाम सुनकर बेहमई कांड की याद आ जाती है जब 22 ठाकुरों को लाइन से खड़ा करके गोलियों से भून दिया गया था। बाद में यह बात आई कि सामूहिक बलात्कार का बदला लेने के लिए यह जघन्य कांड अंजाम दिया गया था। लेकिन एक बात सच है कि जब यह कांड हुआ था पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। पूरा देश सदमे में था। उस दौर मोबाइल या टेलीविजन चैनल नहीं थे इसलिए जब सुबह लोगों के हाथ में अखबार पहुंचा तो एक सनसनी फैल गई। लोग स्तब्ध और सदमे में थे। यहीं से फूलन देवी चर्चा में आई।
फूलन देवी का जन्म (Phoolan Devi) जालौन (Jalaun) जिले की गोरहा ग्राम पंचायत के पूर्वा गांव में 10 अगस्त 1963 को मल्लाह परिवार में हुआ था। कहते हैं जब वह आठ साल की मासूम बच्ची थी तभी दबंगों ने उसका उत्पीड़न शुरू कर दिया था। 11 साल की हुई तो उसकी शादी एक बूढ़े से कर दी गई। इस बूढ़े पति ने पहली बार उसके साथ बलात्कार किया। पति के उत्पीड़न से तंग आकर वह मां बाप के पास वापस आ गई। गांव में मजदूरी की। पैसा मांगने पर पीटा गया।
एक कमरे में बंद कर पुरुषों ने किया दुष्कर्म
कहते हैं फूलन देवी जब 17-18 साल की थी तब उसे बेहमई गांव में एक घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया। ये तीन हफ्ते उसकी जिंदगी के नारकीय क्षण थे जब कई पुरुषों ने उसे पीटा, बलात्कार किया और अपमानित किया। इतने से भी जी नहीं भरा तो उसे गाँव के चारों ओर नग्न कर घुमाया गया। इस तीन सप्ताह की कैद से वह भागने में सफल रहीं। लेकिन कहते हैं कि फूलन पकड़ी गई और दबंगों ने उसे अगवा कर डकैतों को बेच दिया।
इसके बाद उसके डकैत बनने की कहानी शुरू हुई। फूलन के करीबी लोगों का दावा है कि फूलन देवी का निशाना अचूक था और इससे भी अधिक कठोर उसका दिल था।
बदला लेने फूलन देवी पहुंची बेहमई गांव
बेहमई कांड के सूत्रधार के रूप में लालाराम का नाम आता है। जिसने उसके साथ ज्यादती की थी। उससे बदला लेने के लिए वह बेहमई गांव पहुंची वह 14 फरवरी 1981 की शाम थी, उस समय जब गाँव में एक शादी चल रही थी, फूलन और उसके गिरोह ने पुलिस अधिकारियों के रूप में वर्दी पहनी हुई थी। फूलन देवी ने मांग की कि उसके अपराधी "श्री राम" और "लाला राम" को उसे सौंप दिया जाए। लेकिन इन दोनों को फूलन देवी के आने की भनक लग गई थी और ये भाग लिये थे। इसके बाद फूलन देवी ने गाँव के सभी युवकों को गोल कर दिया और एक कुएँ के पास इकट्ठा किया फिर नदी तक ले जाया गया। जहां उन्हें घुटने टेकने का आदेश दिया गया। इसके बाद गोलियों की बौछार हुई और 22 लोग मारे गए। बेहमई नरसंहार ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी॰पी॰ सिंह ने बेहमई हत्याओं के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया। विशाल पुलिस अभियान शुरू किया गया, लेकिन फूलन का पता नहीं लग सका।
फूलन देवी बनीं बैंडिट क्वीन
कहते हैं कि चंबल क्षेत्र में फूलन को दबे कुचले वर्ग के लोगों का समर्थन हासिल था जो उसे बेटी की तरह मानते थे; फूलन देवी के बार में तमाम कहानियाँ मीडिया में घूमने लगीं। फूलन को बैंडिट क्वीन कहा जाने लगा, और तत्कालीन मीडिया चटखारे लेते हुए फूलन देवी की कहानियां फैलायीं। साथ ही फूलन देवी का एक ऐसा करेक्टर पेश किया कि एक बहुत प्रताड़ित महिला किस तरह अपनी जान बचाने के लिए जूझ रही है। डकैत बनना या हत्याएं करना उसकी मजबूरी थी।
11 साल जेल में काटे
अब एक बात गौर करने की है कि फूलन देवी का आत्मसमर्पण इंदिरा गांधी की पहल पर हुआ था। लेकिन कांग्रेस इसका लाभ उठा पाने में विफल रही। यह बात 1983 की है। इसके बाद फूलन देवी पर 22 हत्या, 30 डकैती व किडनैपिंग के 18 मामलों के चलते मुकदमा चला, जिसके चलते उसे 11 साल जेल में काटने पड़े।
गौरतलब है कि जिस तरह अपनी मौत के दो दशक बाद फूलन देवी आज वोटों की राजनीति के लिए मौजूं हो गई हैं ठीक उसी तरह 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जो कि पिछड़ों की राजनीति का चेहरा बनकर उभरे थे उन्होंने निषाद समाज को प्रभावित करने के लिए एक बड़ा फैसला लेते हुए फूलन देवी पर लगे सभी आरोप वापस लेने का फैसला किया। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी से उसे टिकट देकर चुनाव भी लड़वाया। फूलन देवी की जिस समय हत्या हुई वह समाजवादी पार्टी की सांसद थीं।
सांसद बनकर राजनीति में प्रवेश किया
लेकिन फूलनदेवी जन्मजात राजनीति सीख कर नहीं आई थीं। निसंदेह वह एक दबंग महिला थी जिसने अत्याचारों का प्रतिघात बंदूक की गोली से किया लेकिन राजनीति की वह शातिर खिलाड़ी नहीं थीं। यह ठीक है कि समाजवादी पार्टी ने उन्हें सांसद बनाकर राजनीति में प्रवेश करा दिया लेकिन फूलन देवी राजनीति में अपना कद नहीं बनायीं। या बड़ी नेता के तौर पर उभर नहीं पाईं। आज उनके मरने के बाद भी फूलन देवी एक बार फिर सुर्खियों में हैं क्योंकि वोटों की राजनीति में उनको जिंदा किया जाना जरूरी हो गया है।