Ability Of Bacteria: जीवाणुओं में रहस्यमय बदलाव, अब खाने लगे हैं प्लास्टिक

Ability Of Bacteria: एक स्टडी में पता चला है कि समंदरों और मिट्टी में समाए सूक्ष्म जीवाणुओं में अब ऐसा बदलाव आ रहा कि वे प्लास्टिक खाने लगे हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-12-14 23:13 IST

सूक्ष्म जीवाणु अब प्लास्टिक खाने लगे हैं: photo - social media

New Delhi: धरती पर प्लास्टिक कचरे (plastic waste) का इतना ज्यादा बोझ हो गया है कि प्रकृति ने उससे निपटने का खुद उपाय निकाल लिया है। यह उपाय ये है कि प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होता (plastic is never destroyed) है । उसे अब सूक्ष्म जीवाणु खाने लगे हैं (Microbes have started eating plastic)।

इससे पता चलता है कि पृथ्वी में प्लास्टिक के कचरे की विकरालता ने जीवों का नेचुरल जीवन ही बदल दिया है। ये बहुत बड़ा बदलाव है जो प्रकृति की पावर को दिखाता है कि वह क्या कर सकती है।

सूक्ष्म जीवाणु अब प्लास्टिक खाने लगे हैं

एक एतिहासिक स्टडी (historical study) में पता चला है कि समंदरों और मिट्टी में समाए सूक्ष्म जीवाणुओं में अब ऐसा बदलाव आ रहा कि वे प्लास्टिक खाने लगे हैं। पर्यावरण से लिये गए डीएनए सैम्पलों में मिले 20 करोड़ जीन के अध्ययन से 30 हजार अलग अलग एंजाइम का पता चला है जो 10 अलग अलग तरह की प्लास्टिक को नष्ट कर सकते हैं। ये पहली बार है कि प्लास्टिक नष्ट करने की बैक्टेरिया की क्षमता (ability of bacteria) की इतनी व्यापक ग्लोबल स्टडी की गई है।

स्टडी से पता चला है कि जिन सूक्ष्म जीवाणुओं की एनालिसिस की गई उनमें चार में से एक में समुचित एंजाइम था। शोधकर्ताओं ने पाया कि उन्होंने जितने और जिस तरह के एंजाइम पता किये हैं वे पृथ्वी के विभिन्न इलाकों में पाए जाने वाले अलग अलग तरह के प्लास्टिक प्रदूषण से मेल खाते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि स्टडी के परिणामों से यह साक्ष्य मिलता है कि प्लास्टिक प्रदूषण का पृथ्वी के सूक्ष्म जीवाणुओं की पारिस्थिकी पर क्या असर पड़ रहा है।

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 प्लास्टिक को नष्ट करना या रीसायकल करना बेहद मुश्किल

जो भी प्लास्टिक प्रयोग में है उसमें से ज्यादातर को नष्ट करना या रीसायकल (Recycle) करना बेहद मुश्किल है। प्लास्टिक को उसके मूल स्वरूप में लाने के लिए एंजाइम के इस्तेमाल से बहुत सी समस्याएं खत्म हो जाएंगी क्योंकि तब पुरानी प्लास्टिक से नयी चीजें बनाना सम्भव हो सकेगा। ये रीसाइक्लिंग से एकदम अलग होगा। अब जो नई रिसर्च सामने आई है उससे नई संभावनाएं खुलती हैं।

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स्वीडन स्थित शामर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर अलेक्सेज जेलेजनिक का कहना है कि प्लास्टिक के प्रति जीवाणुओं में बदलाव दिखाता है कि किस तरह पर्यावरण अपने ऊपर पड़ते बोझ से खुद निपटने के तरीके ईजाद कर रहा है। 70 साल पहले जहां प्लास्टिक का उत्पादन सिर्फ सालाना 20 लाख टन का था वहीं अब ये सालाना 38 करोड़ टन हो गया है। इतने लंबे अंतराल में सूक्ष्म जीवाणुओं को प्लास्टिक से निपटने का पर्याप्त समय मिल गया है।

फैक्ट फ़ाइल (fact file)

- ये स्टडी जर्नल ऑफ माइक्रोबियल इकोलॉजी में प्रकाशित हुई है।

- शोधकर्ताओं ने दुनियाभर में 236 अलग अलग लोकेशनों से लिए गए पर्यावरणीय डीएनए सैंपल की जांच की।

- पर्यावरण से मिले डीएनए और और इनसानों की आंतों में पाए जाने वाले जीवाणुओं के एंजाइम का भी मिलान किया गया।

- 12 हजार नए एंजाइम समंदरों की 67 लोकेशनों और तीन अलग अलग गहराइयों से पाए गए।

- समुद्रों में ज्यादा गहराई में मिले एंजाइम में प्लास्टिक को ब्रेकडाउन करने की अधिक क्षमता देखी गई है।

- दुनियाभर में 38 देशों में 169 लोकेशनों से मिट्टी के सैंपल लिए गए। इनमें प्लास्टिक ब्रेकडाउन करने वाले 18 हजार एंजाइम मिले हुये थे।

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