3 जून 1915 को मिली थी गुरुदेव को नाइटहुड की उपाधि

Rabindranath Tagore Knighthood Degree: गुरुदेव को ब्रिटिश सरकार ने 1915 में नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया था।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shraddha
Update:2021-06-03 12:16 IST

रवीन्द्र नाथ टैगोर (फाइल फोटो सौ. से सोशल मीडिया)

Rabindranath Tagore Knighthood Degree: तीन जून का दिन खास है क्योंकि इस दिन भारत के महान कवि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) को ब्रिटिश सरकार ने 1915 में नाइटहुड (knighthood) या सर की उपाधि से सम्मानित किया था। गुरुदेव से पहले औद्योगिक योगदान के लिए साल 1910 में दोराबजी टाटा को नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। भारत के रतन टाटा को ओनोररी तौर पर ब्रिटेन की महारानी ने 2014 में "ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर" (Order of British Empire) से सम्मानित किया था।

आजादी के पहले ब्रिटिश साम्राज्य से सम्मान मिलना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी क्योंकि अपना देश उस समय बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। 1913 में रवींद्र्नाथ टैगोर को उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये साहित्य का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) मिला था। इसके दो साल बाद उन्हें नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया। गुरुदेव से पहले यह सम्मान दोराबजी टाटा को मिलने का उल्लेख आता है। इस तरह गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर इस सम्मान को प्राप्त करने वाले दूसरे भारतीय माने जाते हैं।

लेकिन गुरुदेव के साथ खास बात यह है कि तीन जून 1915 को मिली नाइटहुड की उपाधि रवींद्र नाथ टैगोर को ज्यादा समय तक रास नहीं आई। जानकारों का कहना है कि उस समय आम आदमी ब्रितानी हुकूमत के अत्याचारों से त्रस्त था अंग्रेज हुक्मरानों का भारतीयों पर जुल्म बढ़ता जा रहा था। गुरुदेव भी इससे व्यथित थे। इसी बीच 1919 का जलियांवाला बाग कांड हो गया जिसने पूरे देश के जनमानस को झकझोर दिया और गुरुदेव का कवि हृदय भी व्यथित हो उठा और उन्होंने विरोध स्वरूप यह उपाधि वापस कर दी।

रवींद्र नाथ टैगोर की प्रसिद्ध रचनाएं

रवींद्र नाथ टैगोर बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्तित्व थे। वे एकमात्र ऐसे कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बाँग्ला' गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। 

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