Infosysः टॉप आईटी कंपनी इंफोसिस कठघरे में क्यों है, किस बात पर लग रहे हैं गंभीर आरोप

भारत की टॉप आईटी कंपनियों में शामिल इंफोसिस अब कठघरे में है।दरअसल, जीएसटी पोर्टल और इनकम टैक्स के नए ई फाइलिंग पोर्टल..

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Deepak Raj
Update: 2021-09-05 09:26 GMT

इंफोसिस फाइल फोटो, सोर्स-सोशल मीडिया

New Delhi: भारत की टॉप आईटी कंपनियों में शामिल इंफोसिस अब कठघरे में है। दरअसल, जीएसटी पोर्टल और इनकम टैक्स के नए ई फाइलिंग पोर्टल को इंफोसिस मेन्टेन करता है और इन पोर्टलों में काफी दिक्कतें रहीं हैं। अब आरएसएस से संबंधित पत्रिका पांचजन्य ने इंफोसिस पर जमकर हमला बोला है। सवाल उठाया है कि क्या कोई 'राष्ट्र-विरोधी शक्ति इसके माध्यम से भारत के आर्थिक हितों को अघात पहुंचाने की कोशिश कर रही है।"


फाइल फोटो(सोर्स-सोशल मीडिया)

यह पहला मौका है जब किसी अग्रणी कॉर्पोरेट ब्रांड पर संघ की ओर से ऐसा निशाना साधा गया है। अपने ताजे अंक में 'पांचजन्य' ने इंफोसिस पर 'साख और अघात' शीर्षक से चार पेज की कवर स्टोरी छापी है। कवर पेज पर इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की तस्वीर भी दी है। पत्रिका के लेख में बेंगलुरु स्थित कंपनी पर हमला किया गया है। इसे 'ऊंची दुकान, फीका पकवान' बताया गया है।

राजनीति भी शुरू

पांचजन्य के लेख के बाद इस मसले पर राजनीति भी शुरू हो गई है। लेख को 'राष्ट्र-विरोधी' करार देते हुए, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट में कहा कि यह सरकार पर से दोष को हटाने की कोशिश है। इसकी निंदा की जानी चाहिए। जयराम रमेश ने कहा, "आरएसएस के एक प्रकाशन में इंफोसिस पर किया गया अपमानजनक हमला निंदनीय और वास्तव में राष्ट्र-विरोधी है। इंफोसिस जैसी कंपनियों ने भारत को और दुनिया में उसकी स्थिति को बदला है।"



इंफोसिस पर पांचजन्य की कवर स्टोरी, फोटो सोर्स-सोशल मीडिया


आक्रामक लेख

पांचजन्य में छपे लेख में यह आरोप लगाया गया है कि इंफोसिस ट्रस्ट कई वामपंथी संगठनों को फाइनेंस करता है जिसमें सरकार का खुलेआम विरोध करने वाले मीडिया पोर्टल शामिल हैं। इसमें इंफोसिस पर कई बार "नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े-टुकड़े गिरोह" की मदद करने का आरोप लगाया गया है। लेख में बताया गया है कि इंफोसिस द्वारा विकसित पोर्टलों में नियमित रूप से दिक्कतें आती हैं, जिस वजह से करदाताओं और निवेशकों को परेशानी होती है। ऐसी घटनाओं ने 'भारतीय अर्थव्यवस्था में करदाताओं के विश्वास को कम कर दिया है।'


फाइल फोटो(सोर्स-सोशल मीडिया)

लेख में कहा गया है कि सरकारी संगठन और एजेंसियां इंफोसिस को अहम वेबसाइटों और पोर्टलों के लिए अनुबंध देने में कभी नहीं हिचकिचाती हैं क्योंकि यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक है। लेख में हैरानी जताई गई है कि, " इंफोसिस द्वारा विकसित जीएसटी और आयकर रिटर्न पोर्टलों, दोनों में गड़बड़ियों के कारण, देश की अर्थव्यवस्था में करदाताओं के भरोसे को अघात पहुंचा है। क्या इंफोसिस के जरिए कोई राष्ट्रविरोधी ताकत भारत के आर्थिक हितों को अघात पहुंचाने की कोशिश कर रही है?"

इनकम टैक्स पोर्टल

इनकम टैक्स फाइलिंग सिस्टम को और सरल व आधुनिक बनाने के लिए 2019 में इंफोसिस के साथ अनुबंध किया गया था। उद्देश्य यह था कि इनकम टैक्स रिटर्न्स की प्रोसेसिंग में लगने वाला समय 63 दिन से घट कर मात्र एक दिन रह जाए। रिफंड देने का काम भी तेजी से निपटे। लेकिन नया पोर्टल सही ढंग से नहीं चला। यूजर्स की शिकायतों की बाढ़ आ गई। स्थिति ये हो गई कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख को बुलाया और उनको 15 सितंबर,2021 तक पोर्टल दुरुस्त करने का निर्देश दिया।

घूसखोरी के आरोप

इंफोसिस को सरकारी ठेके मिलने पर इनकम टैक्स के पूर्व चीफ कमिश्नर डीपी कर ने जांच की मांग उठाई थी। बीते 7 जुलाई को डीपी कर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा कर मांग की थी कि हाल में रिटायर हुए राजस्व सेक्रेटरी एबी पांडे ने बिना टेंडर जारी किए 10 हजार करोड़ के कई सरकारी ठेके इंफोसिस को दे दिये थे। पत्र में आरोप लगाया गया है कि पांडे और उनकी पत्नी इंफोसिस में शेयरहोल्डर हैं। उन्होंने आधार प्रोजेक्ट के समय से ही इंफोसिस के चेयरमैन नंदन नीलकेणी के साथ काम किया हुआ है।

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