Russia Ukraine War: भारत को लेना पड़ेगा फैसला, अब अमेरिका और रूस में साधना होगा संतुलन

Russia Ukraine War को लेकर भारत का पक्ष रूस की तरफ झुका हुआ दिखता है। मगर आने वाले समय में भारत को रूस और अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर बड़ा फैसला लेना पड़ेगा।

Written By :  Vijay Kumar Pandey
Published By :  Bishwajeet Kumar
Update:2022-04-05 21:27 IST

जो बाइडेन - नरेंद्र मोदी - व्लादिमीर पुतिन (तस्वीर साभार : सोशल मीडिया)

Russia Ukraine Conflict : बूचा नरसंहार (Butcha Massacre) के बाद रूस और यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) गहराता दिख रहा है। अमेरिका और नाटो देश (NATO Countries) रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाने की तैयारी में जुटे हैं। युद्ध पर भारत की कूटनीति की प्रशंसा रूस और चीन तो कर रहे हैं लेकिन अमेरिका और नाटो देश खुश नहीं हैं। भारत ने खुलकर रूस और यूक्रेन में से किसी एक का पक्ष तो नहीं लिया है लेकिन रूस से भारत की करीबी पूरी दुनिया को दिख रही है। अगर अमेरिका और यूरोप ने भारत के बारे में यह राय बना ली कि भारत अभी भी नेहरू काल के गुट निरपेक्ष रास्ते पर ही है और कहीं न कहीं उसका पलड़ा रूस की तरफ झुका हुआ है तो फिर भारत को चीन और पाकिस्तान के मामले में हाल-फिलहाल जैसी मदद मिली, वैसी शायद आगे न मिले। ऐसे में भारत को नये सिरे से विदेश नीति पर विचार करना चाहिए।

क्या मध्यस्थता करे भारत?

युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन से लेकर रूस, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र तक ने भारत से मध्यस्थता की अपील की है। मगर भारत इसमें कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। वहीं तुर्की इस मामले में वार्ता करा दोनों पक्षों के बीच ज्यादा अच्छी तरह संतुलन साध रहा है। अगर भारत मध्यस्थता कराने के लिए आगे आता है तो निश्चित रूप से भारत निष्पक्ष रहते हुए रूस और अमेरिका दोनों के बीच न सिर्फ संतुलन साध सकता है, बल्कि रूस को चीन की तरफ झुकने से भी रोक सकता है। अगर रूस को अमेरिका और नाटो से खतरा समाप्त हो जाए और उससे सभी प्रतिबंध हटा लिए जाएं तो रूस न सिर्फ युद्ध को रोक सकता है बल्कि अमेरिका और नाटो से उसकी नाराजगी भी दूर हो सकती है। इसके पीछे कारण यह है कि रूस फिलहाल विश्वशक्ति बनने से ज्यादा खुद को सुरक्षित और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत देखना चाहता है।

अमेरिका और रूस में साधना होगा संतुलन

अमेरिका की जगह चीन खुद को सुपरपावर बनाना चाहता है। इस बात को अमेरिका भी अच्छे से जानता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन की मजबूरी यह है कि अफगानिस्तान से वह बेआबरू होकर निकले हैं। इससे अमेरिकी जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच उनकी काफी फजीहत हुई है। जैसे-तैसे इससे वह बाहर निकल ही रहे थे कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। अब यह युद्ध बाइडेन प्रशासन के लिए भी नाक की लड़ाई बन गई है। वह किसी भी सूरत में रूस को जीत का स्वाद नहीं चखने देना चाहते।

साथ ही अमेरिका औऱ नाटो देशों के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है, क्योंकि अगर यूक्रेन पूरी तरह से रूस के सामने झुक जाता है तो अमेरिका और नाटो देशों पर कोई और देश अपनी सुरक्षा के लिए भरोसा नहीं करेगा। भारत को अमेरिका और रूस के बीच इसी खाई को अपनी दोस्ती के जरिए भरने की कोशिश करनी है। दोनों के बीच एक ऐसी सीमा-रेखा खिंचनी होगी, जिसमें कोई जीता हुआ न दिखे और कोई हारा हुआ। अगर, भारत को इसमें सफलता नहीं भी मिलती है तो भी रूस और अमेरिका को यह लगेगा कि भारत ने उन दोनों के हितों के लिए प्रयास किया और दूर रहकर निष्पक्ष बना नहीं बैठा रहा।

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