Congress Chintan Shivir: चिंतन शिविर से बड़ा संदेश देना चाहती हैं सोनिया, महसूस होने लगी बदलाव की आहट

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) भी शिविर को सिर्फ रस्म अदायगी नहीं बनाना चाहती हैं। वे इसके जरिए पार्टी को बड़ा संदेश (Big Message) देने की इच्छुक हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  aman
Update:2022-05-11 17:11 IST

 सोनिया गांधी और राहुल गांधी (फाइल फोटो) 

Congress Chintan Shivir Udaipur : कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की निगाहें राजस्थान (Rajasthan) के उदयपुर में 13 मई से शुरू होने वाले तीन दिवसीय चिंतन शिविर (Chintan Shivir) पर लगी हुई है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व (Congress Top Leadership) भी लंबे अरसे बाद आयोजित होने वाले इस चिंतन शिविर को काफी महत्वपूर्ण मान रहा है। कांग्रेस को जल्द ही कई राज्यों में भाजपा (BJP) के खिलाफ बड़ी चुनावी जंग लड़नी है। उससे पहले पार्टी अपनी कमजोरियों को दूर करने की कोशिश में जुटी हुई है। चिंतन शिविर को कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders) को एक बार फिर सक्रिय बनाने और पार्टी कार्यकर्ताओं को 'बूस्ट' करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) भी शिविर को सिर्फ रस्म अदायगी नहीं बनाना चाहती हैं। वे इसके जरिए पार्टी को बड़ा संदेश (Big Message) देने की इच्छुक हैं। पार्टी की ओर से 'एक व्यक्ति-एक पद' (One Person One Post) के फार्मूले के जरिए बदलाव की प्रक्रिया की शुरुआत की जा चुकी है। कांग्रेस की ओर से इस चिंतन शिविर की जोरदार तैयारियां की जा रही हैं। माना जा रहा है, कि शिविर के दौरान पारित होने वाले विभिन्न प्रस्तावों में मोदी सरकार (Modi government) को घेरने के साथ पार्टी को मजबूत और एकजुट बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जाएगा। पार्टी में बदलाव लाने की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों की आहट पहले से ही महसूस की जाने लगी है।

क्यों अहम हो गया है चिंतन शिविर? 

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2022) में कांग्रेस (Congress) को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के हाथ से पंजाब (Punjab) की सत्ता भी निकल गई थी। मौजूदा समय में विभिन्न राज्यों में गुटबाजी के कारण पार्टी नेता आपस में ही उलझे हुए हैं। संगठनात्मक कमजोरियों (Organizational Weaknesses) के चलते सियासी विफलताओं की सूची भी लगातार लंबी होती जा रही है। 

आने वाले समय में कांग्रेस को जल्द ही कई राज्यों में चुनावी मोर्चे पर भाजपा की चुनौतियों का सामना भी करना है। ऐसे माहौल में पार्टी का चिंतन शिविर कांग्रेस के लिए काफी अहम हो गया है। कांग्रेस में यह सवाल भी उठ रहा है कि यह चिंतन शिविर सिर्फ रस्म अदायगी ही साबित होगा या इसके जरिए पार्टी स्पष्ट संदेश देकर अपनी सियासी स्थिति मजबूत करने में कामयाब हो पाएगी। 


सिर्फ रस्म अदायगी नहीं होगी

विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की पकड़ लगातार कमजोर होती जा रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है, कि ऐसे में सोनिया गांधी 'शिविर' को चिंतन शिविर को सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित नहीं रखना चाहती। सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक (Congress Working Committee meeting) के दौरान भी सोनिया ने उदयपुर के चिंतन शिविर की महत्ता को रेखांकित किया था। उनका कहना था कि पार्टी के 400 से अधिक सदस्य चिंतन शिविर में हिस्सा लेंगे और इसके जरिए पार्टी को मजबूत बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाया जाएगा।

कार्यसमिति की बैठक के दौरान उन्होंने 'एक व्यक्ति एक पद' का संदेश भी दिया था। पार्टी इस नीति पर आगे बढ़ती हुई दिख रही है। पार्टी की इसी नीति के कारण पिछले दिनों मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) ने विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा (Resignation) दे दिया था। कमलनाथ के हाथों में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (Madhya Pradesh Congress Committee) के अध्यक्ष पद की बागडोर भी है और उन्होंने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के तहत ही विपक्ष के नेता का पद छोड़ा है। इसे पार्टी के बदलाव की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

पीके के सुझावों का असर 

भाजपा की ओर से लंबे समय से कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाया जाता रहा है। ऐसे में चिंतन शिविर के दौरान एक परिवार-एक टिकट का प्रस्ताव रखे जाने की भी संभावना जताई जा रही है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ चर्चा के दौरान चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी एक व्यक्ति-एक पद और एक परिवार-एक टिकट के सिद्धांत पर चलने की जोरदार वकालत की थी। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की कांग्रेस में 'एंट्री' की संभावनाओं पर भले ही विराम लग चुका हो, मगर उनके कुछ सुझावों को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से भी पसंद किया गया था। पार्टी अब इस नीति पर आगे बढ़कर बड़ा संदेश देना चाहती है।

चिंतन शिविर के जरिए पार्टी के संसदीय बोर्ड को नया स्वरूप देने की कवायद भी की जा सकती है। पार्टी पदाधिकारियों के लिए तीन साल की 'कूलिंग ऑफ' अवधि अनिवार्य बनाने की दिशा में भी फैसला होने की उम्मीद जताई जा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान सोनिया गांधी ने 'उदयपुर चिंतन शिविर' से स्पष्ट संदेश निकलने की ओर संकेत किया था। उनका कहना था, कि यह संदेश पार्टी की एकजुटता और पुनरुद्धार की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा।


असंतुष्ट खेमे को भी संदेश 

चिंतन शिविर के दौरान पार्टी के सभी नेताओं की निगाहें असंतुष्ट खेमे पर भी टिकी हुई हैं। पार्टी का असंतुष्ट खेमा लंबे समय से पार्टी में बड़े बदलाव की मांग करता रहा है। यह खेमा पार्टी में संगठनात्मक चुनाव कराने पर भी जोर देता रहा है। असंतुष्ट खेमे की ओर से अभी तक चिंतन शिविर को लेकर कोई बयान नहीं दिया गया है मगर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चिंतन शिविर से पहले असंतुष्ट खेमे को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश जरूर की है। 

उनका कहना है कि आलोचना को तो स्वीकार किया जा सकता है, मगर यह आलोचना पार्टी का मनोबल गिराने वाली नहीं होनी चाहिए। माना जा रहा है, कि सोनिया का साफ इशारा पार्टी के असंतुष्ट खेमे की ओर ही है। यह खेमा नेतृत्व को लेकर भी सवाल खड़े कर चुका है। सियासी जानकारों का कहना है कि इस चिंतन शिविर में सोनिया के साथ ही राहुल और प्रियंका गांधी की भी मौजूदगी रहेगी। शिविर में देश के विभिन्न प्रांतों से जुड़े नेताओं का जमावड़ा भी लगेगा। ऐसे में चिंतन शिविर से निकलने वाले संदेश पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। 

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