Suicide Cases in India: साल भर में 10 फीसदी बढ़ गए सुसाइड, आंकड़ें चौंका देंगे
Suicide cases in india: नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के ताजा डेटा के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में आत्महत्या (suicide in india per day) के मामले दस फीसदी बढ़ गये।
Suicide cases in india: कोरोना महामारी (Corona Mahamari) आने के बाद से जिन्दगी का हर पहलू बदल गया है। शारीरिक बीमारी के अलावा सबसे बुरी स्थिति मानसिक अवस्था की है। शायद यही वजह है कि बीते साल में भारत में सुसाइड की घटनाएं (bharat me suicide ki ghatnayen) बहुत ज्यादा हुईं हैं। नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के ताजा डेटा (National Crime Research Bureau Data) के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में आत्महत्या (suicide in india) के मामले दस फीसदी बढ़ गये। ये कौन लोग जो इतना हताश हो गए कि अपनी जान ही ले ली, इसे लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
एनसीआरबी (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2020 में देश में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या (Suicide Case In India 2020) की। यह आंकड़ा 2019 के आंकड़ों के मुकाबले 10 प्रतिशत (suicide cases in india 2019) ज्यादा है। इसी के साथ आत्महत्या की दर यानी हर एक लाख लोगों पर आत्महत्या (Atmhatya Karne Walon Ki Sankhya) करने वालों की संख्या 8.7 प्रतिशत बढ़ गई। सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र में हुईं (19,909). उसके बाद तमिल नाडु (16,883), मध्य प्रदेश (14,578), पश्चिम बंगाल (13,103) और कर्नाटक रहे। पूरे देश में होने वाली कुल आत्महत्याओं में से 50 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं पांच राज्यों में होती हैं।
पारिवारिक समस्याएं
सबसे अधिक यानी 33.6 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या का कारण (Atmhatya Ke Karan) पारिवारिक समस्याएं पाई गईं। इसके बाद स्थान रहा बीमारी (18 प्रतिशत) का। इसे बाद ड्रग्स की लत (छह प्रतिशत), शादी से जुड़ी समस्यायों (पांच प्रतिशत), प्रेम संबंध (4.4 प्रतिशत), दिवालियापन या कर्ज (3.4 प्रतिशत), बेरोजगारी (2.3 प्रतिशत), परीक्षाओं में असफलता (1.4 प्रतिशत), पेशेवर/करियर की समस्या (1.2 प्रतिशत) और गरीबी (1.2 प्रतिशत) प्रमुख वजहें रहीं। 2020 में कुल आत्महत्याओं में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 70.9: 29.1 था। 2019 में यह 70.2: 29.8 था। महिला पीड़ितों का अनुपात शादी से संबंधित समस्याओं (दहेज़ आदि) और शक्तिहीनता, या बच्चा पैदा करने में नाकामी के मामलों में ज्यादा था। कुल महिला पीड़ितों (44,498) में से 50.3 प्रतिशत (22,372) गृहणियां पाई गईं। इनकी संख्या कुल पीड़ितों में 14.6 प्रतिशत के आस पास पाई गई। इनमें से 5,559 पीड़ित छात्राएं थीं और 4,493 दिहाड़ी मजदूर थीं। कुल 22 ट्रांसजेंडरों ने आत्महत्या की। सुसाइड के सबसे ज्यादा मामले 18 से 30 साल की उम्र (34.4 प्रतिशत) और 30 से 45 साल की उम्र (31.4 प्रतिशत) के लोगों में पाए गए। वैसे, 18 साल से कम उम्र के बच्चों में भी आत्महत्या के मामले पाए गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा यानी 4,006 मामलों का कारण पारिवारिक समस्याएं, 1,337 मामलों का कारण प्रेम संबंध और 1,327 मामलों का कारण बीमारी पाया गया।
सरकारी और निजी सेक्टर
सुसाइड करने वालों में सरकारी अधिकारियों में 1.3 प्रतिशत (2,057) मामले पाए गए, जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में 6.6 प्रतिशत (10,166) मामले थे। छात्रों में 8.2 प्रतिशत (12,526) मामले और बेरोजगार लोगों में 10.2 प्रतिशत (15,652) मामले पाए गए। स्वरोजगार श्रेणी में सुसाइड 11.3 प्रतिशत (17,332) था।
कृषी सेक्टर में बड़ी संख्या
खेती बाड़ी से जुड़े लोगों में सुसाइड के कुल 10,677 मामले पाए गए। इनमें 5,579 मामले किसानों के और 5,098 मामले कृषि मजदूरों के थे। यह संख्या देश में कुल आत्महत्याओं (Atmhatya के सात प्रतिशत के बराबर है. आत्महत्या करने वाले किसानों में 5,335 पुरुष थे और 244 महिलाएं। कृषि मजदूरों की श्रेणी में 4,621 पुरुष थे और 477 महिलाएं।
सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर
आत्महत्या करने वाले कुल 1,08,532 पुरुषों में सबसे ज्यादा मामले (33,164) दिहाड़ी मजदूरों के, 15,990 मामले स्वरोजगार करने वाले लोगों के और 12,893 बेरोजगार लोगों के थे। आत्महत्या करने वालों में 66.1 प्रतिशत (1,01,181) शादीशुदा थे और 24 प्रतिशत (36,803) अविवाहित थे। विधवा या विधुर लोगों में 1.6 प्रतिशत (2,491) मामले, तलाकशुदा लोगों में 0.5 प्रतिशत (831) मामले और अलग लोगों में 0.6 प्रतिशत (963) मामले पाए गए।
आर्थिक स्थिति और शिक्षा
आत्महत्या करने वालों में 63.3 प्रतिशत (96,810) लोगों की सालाना आय एक लाख रुपए से कम और 32.2 प्रतिशत (49,270) लोगों की सालाना आय एक लाख से पांच लाख रुपयों के बीच थी। आत्महत्या करने वाले अधिकतर यानी 35,771 (23.4 प्रतिशत) लोगों का शिक्षा का स्तर मैट्रिक या माध्यमिक शिक्षा तक, 29,859 लोगों (19.5 प्रतिशत) का स्तर पूर्व माध्यमिक तक, 24,242 (15.8 प्रतिशत) लोगों का प्राथमिक तक, 24,278 (15.9 प्रतिशत) लोगों का उच्च माध्यमिक तक था। 12.6 प्रतिशत यानी 19,275 पीड़ित अशिक्षित थे। सिर्फ चार प्रतिशत (6,190) पीड़ितों ने स्नातक या उससे ऊपर की शिक्षा पाई थी।