Vaishno Devi: वैष्णो देवी मंदिर में पहले भी श्रद्धालु हो चुके है हादसों का शिकार, जानें क्या है वैष्णो मंदिर का इतिहास

हादसे में अब तक 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई है। जबकि कई अन्य घायल हैं। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। आइए जानते हैं, इससे पहले माता वैष्णो देवी के पास हुए कुछ हादसों के बारे में।

Update:2022-01-01 09:53 IST

Mata Vaishno Devi: नए साल के पहले दिन आज माता वैष्णो देवी भवन में बड़ा हादसा हुआ। हादसे में अब तक 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई है। जबकि कई अन्य घायल हैं। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। आइए जानते हैं, इससे पहले माता वैष्णो देवी के पास हुए कुछ हादसों के बारे में।

वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर दुकान सिलेंडर ब्लास्ट, 5 लोग घायल

यह घटना 22 दिसंबर 2021 को माता वैष्णो देवी भवन मार्ग पर अर्धकुंवारी स्थित बाजार की दुकान में सिलेंडर ब्लास्ट हो गया था। इस हादसे में पांच लोग झुलस गए थे। घटना के बाद वहां अफरातफरी मच गई थी। हादसे में घायल सभी श्रद्धालुओं को आनन-फानन में अर्धकुंवारी डिस्पेंसरी पहुंचाया गया था। बाद में, वहां से तीन घायलों को जम्मू रेफर किया गया था। पुलिस ने मामला दर्ज कर घटना की जांच शुरू कर दी। धमाके के साथ आग लगने की वजह से वहां की दुकानों के सामान को भी नुकसान पहुंचा। सामान दूर-दूर तक बिखर गए थे।

वैष्णो देवी में लगी आग, काउंटिंग रूम के साथ सामान जला

यह घटना 9 जनवरी 2021 की है। माता वैष्णो देवी भवन के पास कालिका कांप्लेक्स स्थित काउंटिंग रूम में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी। घटना में दो पुलिसकर्मी मामूली रूप से झुलस गए थे। काउंटिंग रूम का फर्नीचर, सात एसी और रुपए गिनने वाली मशीन राख हो गई थी। हालांकि, मशीन में कोई नकदी आदि नहीं थी। मौके पर मौजूद दमकल और पुलिस कर्मियों कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू .पाया था। या घटना प्राकृतिक गुफा से महज सौ मीटर दूर हुई थी।

वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन, महिला श्रद्धालु की मौत

यह हादसा 30 जनवरी 2017 को माता वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर हिमकोटी से पहले देवी द्वार क्षेत्र में हुआ था। जहां भूस्खलन से एक महिला श्रद्धालु की मौत हो गई थी। तीन बच्चों सहित आठ श्रद्धालु इस घटना में घायल हुए थे। तब खराब मौसम के कारण बैटरी कार सेवा भी स्थगित कर दी गई थी।

क्या है वैष्णो माता का इतिहास?

देश के भू वैज्ञानिकों (geologists) की ओर से किए गए अध्ययन के मुताबिक, माता वैष्णो देवी का मंदिर बेहद प्राचीन है। मान्यता है, कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के उद्धार के लिए एक सुंदर राजकुमारी के रूप में अवतरित हुई थीं। तब उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर गुफा में तपस्या की थी। एक समय आया, जब उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया। ये रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती थी।

श्रीधर पर माता की कृपा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता वैष्णो देवी के एक बड़े भक्त जो लगभग सात शताब्दी पहले रहते थे। उनका नाम श्रीधर था। श्रीधर और उनकी पत्नी मां वैष्णो को पूरी तरह समर्पित थे। श्रीधर को एक बार सपने में दिव्य के जरिए भंडारे करने का आदेश मिला। कहा जाता है, कि तब श्रीधर खराब आर्थिक स्थिति के चलते इस बात से चिंतित थे, कि वो ये आयोजन कैसे करेंगे। इसी चिंता में वो पूरी रात जगे रहे। फिर, हर चिंता को किस्मत पर छोड़ दिया। सुबह होते ही लोग वहां प्रसाद ग्रहण करने जुटने लगे। जिसके बाद, उन्होंने देखा कि वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी सी कन्या उनकी कुटिया में पधारी हैं। उन्होंने उनके साथ भंडारा तैयार किया।

माता वैष्णो देवी के नाम से जाने जाना

इसी भंडारे को श्रीधर ने गांव वालों को परोसा। प्रसाद ग्रहण कर लोगों को संतुष्टि मिली। मगर, वहां मौजूद भैरवनाथ को संतुष्टि नहीं मिली। उसने अपने जानवरों के लिए और खाने की मांग की। लेकिन वहां वैष्णो देवी के रूप में एक छोटी कन्या ने श्रीधर की ओर से इसके लिए इंकार कर दिया। इसके बाद भैरवनाथ ये अपमान सह नहीं पाया। भैरवनाथ ने उस 'दिव्य लड़की' को पकड़ने की कोशिश की। मगर, विफल रहा। लड़की गायब हो गई। इस पूरी घटना के बाद से श्रीधर दुखी हो गए। फिर, श्रीधर ने मां के दर्शन की लालसा जताई। जिसके बाद  एक रात, वैष्णो माता ने श्रीधर के सपने में दर्शन दिए। उन्हें त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा का रास्ता दिखाया। जिसमें उनका प्राचीन मंदिर हैं। श्रीधर ने बताई गई बातों के अनुसार, पवित्र तीर्थ की खोज की। अपना जीवन माता वैष्णो की सेवा में समर्पित कर दिया। जिसके बाद से ही ये मंदिर दुनियाभर में माता वैष्णो देवी के नाम से जाने जाना लगा।

जब आता है माता का बुलावा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जब तक माता वैष्णो नहीं चाहतीं, तब तक उनके दर्शन कोई नहीं कर सकता। माता के बुलावे को उनका आशीर्वाद माना जाता है। इसी कारण हर तरह के लोग चाहे वो बुद्धिमान हो या अज्ञानी, पुरुष हो या महिला, बड़े हों या छोटे। सब उनके बुलावे का इंतजार करते हैं।

ऐसी है माता की यात्रा

अगर आप माता के दर्शन करने को जाना चाहते हैं तो यह यात्रा करीब 24 किलोमीटर लंबी होगी। इसे कठिन यात्रा माना जाता है। धर्मस्थल की यात्रा कटरा में बाणगंगा से शुरू होती है। मान्यता है कि वैष्णो माता ने कई शताब्दियों पहले अपने दिव्य धनुष से एक तीर चलाया था। तभी उसका नाम बाणगंगा पड़ा। यह रास्ता कठिन है। लेकिन, श्राइन बोर्ड की ओर से दिए जाने वाले ढके रास्ते, सीढ़ी, वाटर कूलर, बैठने की जगह, पेंट्री और भोजन की दुकानें थके यात्रियों के लिए राहत का काम करती हैं। 

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