Allahabad University News: इविवि में आयोजित हुआ चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन

Allahabad University News: हमारा इतिहास बोध तथ्यों और अनुसंधान से उत्पन्न प्रमाणिक ज्ञान पर आधारित होना चाहिए तभी सामाजिक समरसता और राष्ट्र उत्थान की बुनियाद मजबूत होगी।

Written By :  Durgesh Sharma
Update: 2022-08-26 12:18 GMT

Allahabad University (Social Media)

Allahabad University News: आजादी का अमृत महोत्सव की श्रृंखला में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय संस्कृति विभाग के संयुक्त प्रयास से आयोजित दुर्लभ पांडुलिपियों की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तिलक भवन में किया गया।

विशिष्ट अतिथि प्रो. हर्ष कुमार, मुख्य वक्ता प्रो. आलोक प्रसाद थे और कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. पंकज कुमार ने की। कार्यक्रम में प्रस्तुत पांडुलिपियों में संत कबीर से संबद्ध कई मूल ग्रंथों की प्रतिलिपियों के साथ-साथ ऋग्वेद, भगवतगीता, वाजसनेही संहिता, लीलावती, खुलासत-उत-तवारीख,राजतरंगिणी जैसी कई संस्कृत,हिन्दी, अरबी, फ़ारसी और ऊर्दू की दुर्लभ पांडुलिपियों का प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शनी 25 अगस्त से 28 अगस्त, 2022 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तिलक भवन में आयोजित होगी।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रेम प्रकाश ने कहा कि हमारा इतिहास बोध तथ्यों और अनुसंधान से उत्पन्न प्रमाणिक ज्ञान पर आधारित होना चाहिए तभी सामाजिक समरसता और राष्ट्र उत्थान की बुनियाद मजबूत होगी। मुख्यवक्ता प्रो.आलोक प्रसाद ने बताया कि भारत में एक पीढी से दूसरी पीढी में ज्ञान संचार केवल मौखिक रूप में ही नहीं हुआ है बल्कि लिखित दस्तावेजों से भी मज़बूत परंपरा रही है।

भारत में दुर्लभ पांडुलिपियों के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शुरूआत 2003 में शुरू हुई और अब तक 50 लाख से अधिक पांडुलिपियों की पहचान और डिजिटाइजेशन हुआ है। परन्तु यूनेस्को ने मात्र 9 पांडुलिपियों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है।अतः हमें और मज़बूती से पैरवी करनी चाहिए ।

ऐतिहासिक दस्तावेज होते हैं समय का आख्यान- प्रोफेसर ललित जोशी

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये प्रो.पंकज कुमार ने कहा कि कबीर के काव्य संग्रह "बीजक" के दोहे 'जाके पांव न फटी बेवाई, सो का जानें पीर पराई। मतलब "करूणावान वही है जो दूसरों की पीड़ा समझता है " और इससे बेहतर परिभाषा करुणा की कहीं नहीं मिलती। धन्यवाद ज्ञापन देते हुये प्रोफेसर ललित जोशी ने कहा कि " ऐतिहासिक दस्तावेज केवल कागज का टुकडा नहीं समय का आख्यान होते हैं"।

कार्यक्रम में मंच का संचालन डा. भावेश द्विवेदी ने किया और इस मौके पर डा.पीएस हरीश,प्रो.भारतीदास, प्रो.सालेहा रसीद, डा.युसुफ नफीस, डा.अर्चना सिंह, डा.रफाक, डा.आनंद प्रताप चंद, डा. अनिल, डा.योगेश, डा. अंशू, अनिल सिंह, अनिरूद्द,रेनू जायसवाल समेत 200 से अधिक शिक्षक, छात्र छात्राएं और अन्य कर्मचारी उपस्थिति रहे।

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