बच्चों के भविष्य को 'रोशन' कर रही हैं यहां की महिलायें

सोलर पैनल सूर्य की ऊर्जा को संचित कर बैटरी चार्ज करता रहता है। यही ऊर्जा समय पड़ने पर बल्ब को रोशन करती है। गत वर्ष अगस्त माह में यह परियोजना शुरू की गई थी। चंदनकियारी में जल्द एक सेंटर खोला जाएगा।

Update:2019-03-18 14:17 IST

लखनऊ: 'जहां चाह है, वहां राह है' कहावत तो आपने सुनी ही होगी। इसको सही मायने में चरितार्थ करने का काम किया है| आईआईटी मुंबई और झारखंड के सुदूर अंचल की 35 महिलाओं ने। महिलाएं सौर लालटेन बना समृद्धि का उजियारा फैला रहीं हैं।

ग्रामीण परिवारों को रोजी तो बिजली रहित गांवों के बच्चों को इन लालटेन से पढ़ने के लिए पर्याप्त रोशनी मुहैया हो गई है। बात हो रही है बोकारो, झारखंड के चंदनकियारी प्रखंड की। यहां के गांवों में बिजली न होने से रोशनी नहीं रहती थी। विद्यार्थी पढ़ाई नहीं कर पाते थे। ऐसे में कौशल विकास योजना के तहत ऊर्जा मंत्रालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई ने इसका हल ढूंढ निकाला।

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झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के बैनर तले सौर ऊर्जा लैंप परियोजना शुरू की गई। आईआईटी परिसर में वर्कशॉप खोली गई। 35 महिलाओं ने यहां सौर लालटेन तैयार करने का हुनर नि:शुल्क सीखा। अब ये ग्रामीण महिलाएं सौर लालटेन बना रही हैं। जो कक्षा एक से बारहवीं तक के विद्यार्थियों के बीच वितरित हो रही है।

बाजार में 600 रुपये तक की पड़ने वाली सौर लालटेन यहां सिर्फ 100 रुपये में मिलती है। अभी तक प्रखंड के 30 हजार छात्रों को सौर लालटेन मिल चुकी है। एक सौर लालटेन तैयार करने के लिए महिला को 12 रुपये और वितरण के लिए भी 12 रुपये मिलते हैं। इससे हर एक महिला की महीने में 10 हजार रुपये तक कमाई हो जाती है, बशर्ते वह हर दिन काम करे।

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ख्वाबों को मिली रोशनी

ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आवाजाही से विद्यार्थी काफी परेशान रहते थे। लालटेन मिलने से अब उन्हें पढ़ाई में परेशानी नहीं होती, अब उनके अंधेरे सपनों को रोशनी मिल गई। अब वे इस बात से बेेपरवाह हैं कि बिजली रहेगी या जाएगी। आजीविका समूह की सेंटर इंचार्ज बसंती और फील्ड सुपरवाइजर सुशांत की देखरेख में महिलाएं सौर लालटेन बनाती हैं। लालटेन के माध्यम से बच्चों को सौर ऊर्जा का महत्व भी बताया जाता है ताकि वे जीवाश्म ईंधन का कम से कम और सौर ऊर्जा का अधिक इस्तेमाल करने को जागरूक हों।

एक महिला ने बताया कि लालटेन बनाने के लिए कच्चा माल हिमाचल प्रदेश से आता है। जेएसएलपीएस की ओर से इसे महिलाओं को उपलब्ध कराकर लालटेन बनवाते हैं। अब तक करीब 35 हजार सौर लालटेन बन चुकी हैं। संस्था के फील्ड अफसर बीरबल कुमार राय बताते हैं कि 14 महिलाओं का समूह एक दिन में 300 से 500 तक लालटेन बनाता है।

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38 पंचायतों में हो रहा वितरण

चंदनकियारी प्रखंड की 38 पंचायतों के स्कूलों में इनका वितरण हो रहा है। खास बात ये है कि लालटेन बनाने के साथ वितरण करने वाली महिला को भी 12 रुपये मिलते हैं। एक लालटेन पांच मिनट में तैयार हो जाती है। इसे तैयार करने के लिए सोलर पैनल, बैटरी, बल्ब और विशेष प्लेट को परिपथ के अनुसार जोड़ना होता है। बस लालटेन तैयार।

सोलर पैनल सूर्य की ऊर्जा को संचित कर बैटरी चार्ज करता रहता है। यही ऊर्जा समय पड़ने पर बल्ब को रोशन करती है। गत वर्ष अगस्त माह में यह परियोजना शुरू की गई थी। चंदनकियारी में जल्द एक सेंटर खोला जाएगा। यहां ये महिलाएं लालटेन खराब होने पर उसकी मरम्मत भी करेंगी।

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