लखनऊ: हिंदी समेत अन्य भाषाओं के साहित्य पर हिंदी फिल्म बनाने की शुरूआत तो तीस के दशक में ही हो गई थी, लेकिन बांग्ला साहित्य से हिंदी में बनी फिल्मों को खूब सराहा गया और ऐसी फिल्में खासा चर्चित हुईं और चलीं भी।
चालीस के दशक में शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवदास पर प्रमयेश बरूआ ने 1936 में हिंदी फिल्म इसी नाम से बनाई। विमल राय ने भी 1955 में दिलीप कुमार के साथ देवदास का निर्माण किया। साल 2002 में संजय लीला भंसाली नई तकनीक के साथ देवदास को सामने लेकर आए। दिलचस्प यह कि देवदास पर बनी तीनों फिल्में खासा पसंद की गई।
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शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास परिणीता पर हिंदी में चार फिल्मों का निर्माण हुआ। शरद चन्द्र ने 1941 में यह उपन्यास लिखा था। पशुपति चटर्जी ने 1942 में, विमल राय ने 1953 में, अजय कार ने 1969 में तथा प्रदीप सरकार ने 2005 में इसी नाम से हिंदी में फिल्म बनाई।
शरद चन्द्र के ही उपन्यास बिराज बहू पर 1954 में फिल्म का निर्माण हितेन चौधरी ने किया, जिसमें निर्देशन बिमल राय का था। विमल मित्र के उपन्यास साहब बीबी और गुलाम पर गुरूदत्त ने इसी नाम से हिंदी में फिल्म का निर्माण किया, जिसके निर्देशक अबरार अल्वी थे। साहब बीबी और गुलाम को दिवंगत मीना कुमारी की अदाकारी के लिए यादगार फिल्म माना जाता है।
चारू चन्द्र चक्रवर्ती के उपन्यास तामसी पर 1963 में बंदिनी का निर्माण हुआ, जिसके निर्देशक विमल राय थे। विमल राय ने ही 1965 में रवीन्द्र नाथ टैगोर के उपन्यास काबुलीवाला का निर्माण किया जिसका निर्देशन हेमेन गुप्ता ने किया था।
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बलाई चन्द्र मुखोपाध्याय के उपन्यास भुवन सोम पर 1969 में इसी नाम से फिल्म बनी। कमाने के मामले में भुवन सोम ने निराश किया, लेकिन दर्शकों की वाहवाही लूटने में यह फिल्म काफी आगे रही। इसका निर्देशन मृणाल सेन ने किया था। आशुतोष मुखर्जी के उपन्यास पर असित सेन ने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर को लेकर सफर का निर्माण किया। शरत चन्द्र चटर्जी के उपन्यास बिन्दुर छेले पर छोटी बहू का निर्माण किया गया। यह फिल्म 1971 में आई। विमल कर के उपन्यास पर 1976 में बालिका बधू बनी।
शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास निष्कृति पर 1980 उमें अपने पराये का निर्माण हुआ, जिसका निर्देशन वासु चटर्जी ने किया था। सुबोध घोष की कहानी जोतुगृह पर गुलजार ने इजाजत का निर्माण और निर्देशन किया। नसीरउद्दीन शाह तथा रेखा के अभिनय के कारण इसे आज भी याद किया जाता है।
सन 1920 के माहौल और उसी पृष्ठभूमि पर लिखी टैगोर की लोकप्रिय कृति नौका डूबी को हिंदी में डब किया गया जिसका निर्देशन ऋतुपर्णो घोष ने किया जबकि 1940 में नितिन बोस ने इस कहानी पर हिंदी और बांग्ला में फिल्म बनायी थी। रवीन्द्र नाथ टैगोर के उपन्यास चोखेर बाली पर 2004 में ऋतुपर्णो घोष ने 2004 में इसी नाम से फिल्म का निर्माण किया। सन 1930 के चटगांव विद्रोह पर मानिनी चटर्जी के उपन्यास 'डू एंड डाई' पर आशुतोष गोवारिकर ने खेले हम जी जान से का निर्माण किया।
शरदेंदु बंधोपाध्याय के बांग्ला साहित्य के लोकप्रिय किरदार ब्योमकेश वख्शी पर पिछले साल सुशांत सिंह राजपूत को लेकर फिल्म आई। ब्योमकेश बांग्ला साहित्य का इतना लोकप्रिय किरदार है कि दूरदर्शन ने दो दशक पहले धारावाहिक का निर्माण किया था।
समीक्षक यह मानते हैं कि समाज और फिल्म का गहरा संबंध है। एक अच्छी फिल्म समाज का अंग बन जाती है। मुख्य रूप से बांग्ला में फिल्मों का निर्माण करने वाले सत्यजीत राय, मृणाल सेन, धीरेन गांगुली ने तो हिंदी में भी अपना योगदान दिया।