राजकुमार के वो 12 भैरंट डायलॉग जिन्हें सुनते ही बंदा 'चड्डी में हग' देता है
भाई साब एक थे राजकुमार। 42 साल फिल्मों में काम किया और दिलोजान से किया। ठसक ऐसी थी उनकी कि कुत्तों को जानी कहें या इंसानों को कोई पलट के जवाब नहीं देता था। अमा हम फिलिम की बात नहीं कर रहे हम तो उसके साथ असली वाली जिंदगी की भी बात कर रहे हैं।
मुंबई : भाई साब एक थे राजकुमार। 42 साल फिल्मों में काम किया और दिलोजान से किया। ठसक ऐसी थी उनकी कि कुत्तों को जानी कहें या इंसानों को कोई पलट के जवाब नहीं देता था। अमा हम फिलिम की बात नहीं कर रहे हम तो उसके साथ असली वाली जिंदगी की भी बात कर रहे हैं। कुमार साब ने हमेशा अपनी मर्जी से जिंदगी का मजा लिया और खूब लिया।
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पहले बात करते हैं उनके बारे में। उसके बाद हम बताएंगे की बिना गोली कट्टे के कैसे किसी को जुबान से मारते हैं।
राज कुमार बंबई (तब मुंबई को इसी नाम से जाना जाता था) पुलिस में सब-इंस्पेक्टर हुआ करते थे। 1952 में फिलिम इंडस्ट्री में घुसे तो 42 साल तक यहां खूंटा लगा के बैठ गए। जब भी कोई फिल्म रिलीज होती तो मवालियों और बावलियों को चांदी हो जाती क्यों..क्यों क्या! अमा राजकुमार ऐसे ऐसे डायलॉग फेंक के मारते थे कि स्क्रीन पर विलेन्स बेइज्ज़ती से ही मर जाते थे।
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राजकुमार का जन्म बलूचिस्तान में 8 अक्टूबर 1926 को हुआ था। ये वही इलाका है जो आजकल पाकिस्तान में है और वहां आजादी के लिए जंग चल रही है। 3 जुलाई 1996 को गले के कैंसर के कारण राजकुमार हमें छोड़ कर चले गए।
अब आते हैं मुद्दे पर, अब पढ़िए वो डायलॉग जिसके लिए हमने इतनी भूमिका बनाई।
1 बिल्ली के दांत गिरे नहीं और चला शेर के मुंह में हाथ डालने। ये बद्तमीज हरकतें अपने बाप के सामने घर के आंगन में करना, सड़कों पर नहीं।
बुलंदी (1980)
2. जानी.. हम तुम्हे मारेंगे, और ज़रूर मारेंगे.. लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक़्त भी हमारा होगा।
सौदागर (1991)
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3. हम वो कलेक्टर नहीं जिनका फूंक मारकर तबादला किया जा सकता है। कलेक्टरी तो हम शौक़ से करते हैं, रोज़ी-रोटी के लिए नहीं। दिल्ली तक बात मशहूर है कि राजपाल चौहान के हाथ में तंबाकू का पाइप और जेब में इस्तीफा रहता है। जिस रोज़ इस कुर्सी पर बैठकर हम इंसाफ नहीं कर सकेंगे, उस रोज़ हम इस कुर्सी को छोड़ देंगे।
सूर्या (1989)
4. हम तुम्हे वो मौत देंगे जो ना तो किसी कानून की किताब में लिखी होगी और ना ही कभी किसी मुजरिम ने सोची होगी।
तिरंगा (1992)
5. शेर को सांप और बिच्छू काटा नहीं करते..दूर ही दूर से रेंगते हुए निकल जाते हैं।
सौदागर (1991)
6. इस दुनिया में तुम पहले और आखिरी बदनसीब कमीने होगे, जिसकी ना तो अर्थी उठेगी और ना किसी कंधे का सहारा। सीधे चिता जलेगी।
मरते दम तक (1987)
7.हम आंखों से सुरमा नहीं चुराते, हम आंखें ही चुरा लेते हैं।
तिरंगा (1992)
8. ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं, हाथ कट जाए तो ख़ून निकल आता है।
वक्त (1965)
9. ये तो शेर की गुफा है। यहां पर अगर तुमने करवट भी ली तो समझो मौत को बुलावा दिया।
मरते दम तक (1987)
10. ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से.. बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से।
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तिरंगा (1992)
11. औरों की ज़मीन खोदोगे तो उसमें से मट्टी और पत्थर मिलेंगे। और हमारी ज़मीन खोदोगे तो उसमें से हमारे दुश्मनों के सिर मिलेंगे।
बेताज बादशाह (1994)
12. राजस्थान में हमारी भी ज़मीनात हैं और तुम्हारी हैसियत के जमींदार, हर सुबह हमें सलाम करने, हमारी हवेली पर आते रहते हैं।