Film Review: इस फिल्म से हिले अक्षय कुमार, अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन

कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लगभग कई फ़िल्में ऑनलाइन रिलीज़ किया गया। इसी क्रम में अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी की फिल्म लक्ष्मी को भी 9 नवंबर को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर रिलीज़ किया गया।

Update: 2020-11-10 05:41 GMT
Film Review: अक्षय के करियर का ग्राफ हिला , अब तक की सबसे ख़राब फिल्म बनी ‘लक्ष्मी’

कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लगभग कई फ़िल्में ऑनलाइन रिलीज़ किया गया। इसी क्रम में अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी की फिल्म लक्ष्मी को भी 9 नवंबर को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर रिलीज़ किया गया। इस फिल्म में पहली बार अक्षय ट्रांसजेंडर के किरदार में नज़र आ रहे हैं। इस फिल्म में कैमरे का मेन फोकस अक्षय पर ही था। कियारा आडवाणी इस फिल्म में ज़रूर हैं लेकिन बस सुंदर दिखने को। उनसे ज्यादा फुटेज तो फिल्म में आयशा और अश्विनी को मिली है।

आइए जानते है लक्ष्मी की कहानी

आपने फिल्म ‘मुनी’, ‘कंचना’, ‘गंगा’ और ‘काली’ की हिंदी डब तो देखि ही होगी। तो ‘लक्ष्मी’ आपको एक बहुत ही दोयम दर्जे की फिल्म लगेगी। बता दें कि डिजनी प्लस हॉटस्टार ने फिल्म ‘सड़क2’ के बाद अक्षय की लक्ष्मी दूसरी बेहद कमजोर फिल्म साबित हुई है। कैमरा से लेकर संगीत तक सभी चीज़े इतनी अच्छी नहीं लगेगी।

ट्रांसजेंडर लक्ष्मी की कहानी

फिल्म ‘लक्ष्मी’ की कहानी एक ट्रांसजेंडर लक्ष्मी की कहानी है जिसे एक नेता और उसके गुर्गे मार देते हैं। उसको शरण देने वाले और इस शरणदाता के बच्चे की भी हत्या हो जाती है। इनकी आत्मा एक साथ आसिफ (अक्षय कुमार )के शरीर में आ जाती हैं। इस फिल्म में अक्षय ने थोडा ज्यादा ही एक्टिग स्किल्स दिखा दी जिसके कारण आप को भी फिल्म देखते देखते नींद आ सकती है।

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भूत-प्रेत का साया

आसिफ़ से भूत-प्रेत का साया हटवाने के लिए एक पीर बाबा की मदद ली जाती है तो लक्ष्मी की बैकस्टोरी पता चलती है। एक भूमाफ़िया ने लक्ष्मी की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने के बाद अपने परिवार के साथ मिलकर लक्ष्मी और उसे बचपन में शरण देने वाले अब्दुल चाचा और उनके मंदबुद्धि बेटे का क़त्ल कर दिया था, जिनसे बदला लेने के लिए लक्ष्मी आसिफ़ के शरीर पर क़ब्ज़ा करती है।

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साथी कलाकारों में राजेश शर्मा से लेकर मनु ऋषि चड्ढा, आयशा रजा मिश्रा और अश्विनी कलसेकर सब ओवरएक्टिंग का शिकार हैं। फिल्म में दो गाने हैं जो लगता नहीं किसी को भी पसंद आने वाले हैं। शरद केलकर के कहानी में आने के बाद कुछ रस दिखता भी है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

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