Irrfan Khan Birth Anniversary: कभी क्रिकेटर बनना चाहते थे इरफान खान, जानें दिवंगत एक्टर के बारे में दिलचस्प बातें
Irrfan Khan Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा के महान एक्टर रहे इरफान खान की आज बर्थ एनीवर्सरी है। आइए इस मौके पर जानते हैं एक्टर के बारे में कुछ दिलचस्प बातें।;
Irrfan Khan Birth Anniversary: इरफ़ान खान (Irrfan Khan) भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) के उन महान अभिनेताओं में से एक थे, जिन्होंने अपने अभिनय कौशल और गहरी समझ के बल पर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी। उनका जीवन केवल एक अभिनेता की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और अदम्य इच्छाशक्ति की मिसाल है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Irrfan Khan Early Life And Education)
इरफ़ान का जन्म 7 जनवरी, 1967 को राजस्थान के टोंक जिले में एक पठान परिवार (Pathan Family) में हुआ था। उनके पिता यासीन अली खान टायर का व्यवसाय करते थे, जबकि माता सईदा बेगम घरेलू महिला थीं। इरफ़ान का बचपन साधारण लेकिन प्रेरणादायक रहा। जयपुर में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई।
प्राकृतिक जीवन के प्रति उनका झुकाव बचपन से था और वे वन्यजीव संरक्षण में गहरी रुचि रखते थे। उनका सपना तो वन्यजीव वैज्ञानिक बनने का था। लेकिन किस्मत ने उन्हें सिनेमा की ओर मोड़ दिया। उन्होंने जयपुर के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) से नाट्य कला की शिक्षा ग्रहण की और 1987 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
अभिनय करियर की शुरुआत (Irrfan Khan Career)
NSD से स्नातक करने के बाद, इरफ़ान ने मुंबई का रुख किया। लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टेलीविज़न धारावाहिकों से की। ‘चाणक्य’, ‘भारत एक खोज’, ‘सारा जहां हमारा’ और ‘बनेगी अपनी बात’ जैसे धारावाहिकों में उन्होंने छोटे-मोटे किरदार निभाए। उनकी पहली बड़ी फिल्म मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे!’ (1988) थी, जिसमें उनका रोल संपादन के दौरान हटा दिया गया। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे छोटे-छोटे किरदार करते रहे और अपने अभिनय में निखार लाते रहे।
सफलता और पहचान (Irrfan Khan Fan Following)
2001 में, आसिफ कपाड़िया की फिल्म ‘द वॉरियर’ ने इरफ़ान के करियर को नई दिशा दी। यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा का पात्र बनी। इसके बाद उन्होंने ‘हासिल’ (2003) और ‘मकबूल’ (2004) में शानदार अभिनय किया। ‘मकबूल’, जो कि शेक्सपियर के ‘मैकबेथ’ पर आधारित थी, ने उन्हें एक गंभीर अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया।
उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में ‘द नेमसेक’ (2006), ‘पान सिंह तोमर’ (2012), ‘द लंचबॉक्स’ (2013), ‘हिंदी मीडियम’ (2017) और ‘अंग्रेजी मीडियम’ (2020) शामिल हैं। ‘पान सिंह तोमर’ में उन्होंने एक बागी एथलीट का किरदार निभाया, जो दर्शकों और समीक्षकों दोनों को पसंद आया।
क्रिकेटर बनने की चाहत (Cricketer)
इरफ़ान खान का शुरुआती सपना अभिनेता बनने का नहीं, बल्कि क्रिकेटर बनने का था। इस बात का खुलासा उन्होंने खुद एक इंटरव्यू के दौरान किया था। उन्होंने कहा था, “एक वक्त था जब मैं क्रिकेट खेलता था। मेरा सिलेक्शन सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए हुआ था। उसमें मेरे 26 साथी चुने गए थे जिन्हें एक कैंप में जाना था, लेकिन मैं नहीं जा पाया, क्योंकि कैंप में जाने के लिए मैं पैसे का इंतजाम नहीं कर पाया। मैंने फैसला किया कि क्रिकेट छोड़ देना चाहिए, क्योंकि इसमें किसी न किसी के सहयोग की जरूरत होगी।”
अभिनेता बनने का सपना और जोखिम
एक इंटरव्यू के दौरान इरफ़ान ने बताया कि उनका अभिनेता बनने का सपना उनके जीवन का सबसे बड़ा जोखिम था। उन्होंने कहा, “मैंने कुछ फिल्में देखीं और एक्टर बनने का सपना देख लिया। मैं जिस परिवार से आता हूं, उसमें कोई क्रिएटिव बैकग्राउंड नहीं था। जब NSD में दाखिला हुआ, उन्हीं दिनों पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद घर से पैसे मिलने बंद हो गए। लिहाजा NSD से मिलने वाली फेलोशिप के जरिए कोर्स पूरा किया।”
मुंबई में संघर्ष और इलेक्ट्रिशियन का काम (Irrfan Khan Struggle In Mumbai)
मुंबई आने के बाद इरफ़ान खान को काफी संघर्ष करना पड़ा। अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने इलेक्ट्रिशियन का काम किया। एक बार उन्हें राजेश खन्ना के घर पर एसी ठीक करने का काम मिला। जब वे वहां पहुंचे, तो राजेश खन्ना की दाई ने दरवाजा खोला। इरफान ने पहली बार राजेश खन्ना को देखा और उन्हें देखकर बेहद खुश हुए। यह घटना उनके संघर्ष भरे जीवन की एक अनोखी झलक प्रस्तुत करती है।
छोटे पर्दे से की अभिनय की शुरुआत
इरफ़ान खान ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत दूरदर्शन के सीरियल ‘श्रीकांत’ से की, जो 1985 में प्रसारित हुआ था। इसके अलावा उन्होंने ‘भारत एक खोज’, ‘चाणक्य’, ‘चंद्रकांता’, ‘सारा जहां हमारा’, ‘बनेगी अपनी बात’ और संजय खान के धारावाहिक ‘जय हनुमान’ में काम किया। ‘जय हनुमान’ में उन्होंने महर्षि वाल्मीकि की भूमिका निभाई। इस सीरियल में वाल्मीकि बनने से पहले डाकू वाले हिस्से को दिखाया गया था, जिसका पंजाब के वाल्मीकि समाज ने विरोध किया था।
हिन्दू लड़की से की शादी
इरफ़ान खान ने 1995 में अपनी पत्नी सुतापा सिकदर (Sutapa Sikdar) से शादी की। सुतापा हिंदू ब्राह्मण समुदाय से हैं। वह एक फिल्म निर्माता, संवाद लेखक और पटकथा लेखिका हैं। उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में शामिल हैं: खामोशी: द म्यूजिकल (संवाद लेखिका, 1996), सुपारी (संवाद लेखिका, 2003), कहानी (संवाद लेखिका, 2003), मदारी (निर्माता, 2016), और करीब करीब सिंगल (निर्माता, 2017)। इरफ़ान और सुतापा के दो बेटे हैं: अयान खान और बाबिल खान।
अन्य भारतीय फिल्म सितारों से अलग, इरफ़ान खान ने धर्म पर खुलकर अपनी राय रखी। अर्नब गोस्वामी के टॉक शो में उन्होंने मुस्लिम कट्टरपंथियों, यहां तक कि भारत के ग्रैंड इमाम की आलोचना की। इरफ़ान ने "व्यापारिक धार्मिक संबंध" के खिलाफ और "व्यक्तिगत धार्मिक खोज" के पक्ष में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "अपने आप को खोजने और भगवान को पाने के लिए धर्म को व्यक्तिगत रूप से समझना चाहिए।"
हालांकि इरफ़ान मानते हैं कि वह कुरान और इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों के विशेषज्ञ नहीं हैं, फिर भी उन्होंने अपनी टिप्पणियों पर अडिग रहते हुए उनका समर्थन किया। इसके बावजूद उन्हें भारी आलोचना और हिंसा की धमकियों का सामना करना पड़ा। इरफ़ान इस बात से अवगत थे कि उनकी बेबाक टिप्पणियां उनके और उनके परिवार के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। इस पर उनकी पत्नी सुतापा ने कहा, "हमें उन पर बहुत गर्व है।"
अंतरराष्ट्रीय करियर (Irrfan Khan International Career)
इरफ़ान केवल भारतीय सिनेमा तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई। ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ (2008)Slumdog millioaire, ‘लाइफ ऑफ पाई’ (Life Of Pie 2012), ‘जुरासिक वर्ल्ड’ (2015) और ‘इन्फर्नो’ (2016) जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया। उनकी बहुमुखी प्रतिभा और सहज अभिनय ने उन्हें वैश्विक दर्शकों के बीच प्रसिद्ध बना दिया।
पुरस्कार और सम्मान (Irrfan Khan Awards)
इरफ़ान खान को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: ‘पान सिंह तोमर’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
फिल्मफेयर अवॉर्ड्स: ‘हासिल’, ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ और ‘पिकू’ के लिए उन्होंने यह सम्मान जीता।
पद्मश्री पुरस्कार: 2011 में भारत सरकार ने उन्हें कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया।
एशियन फिल्म अवार्ड्स: ‘द लंचबॉक्स’ के लिए उन्हें एशियन फिल्म अवार्ड मिला।
इरफ़ान खान का जीवन और करियर प्रेरणा का स्रोत है। उनकी फिल्मों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि समाज को सोचने पर मजबूर किया। उनकी अभिनय शैली और उनके द्वारा निभाए गए किरदार आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श रहेंगे। उनकी यह पंक्ति उनके जीवन को बखूबी बयां करती है: “मुझे यह कहना पसंद नहीं है कि मैं एक्टर हूं, बल्कि यह कहना चाहता हूं कि मैं कहानियों का माध्यम हूं।”
समाज के प्रति योगदान- इरफ़ान ने सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए कई प्रयास किए। वे प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम रखते थे और वन्यजीव संरक्षण अभियानों का हिस्सा रहे। गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए उन्होंने कई संस्थानों का सहयोग किया।
स्वास्थ्य संघर्ष और निधन (Death)
2018 में, इरफ़ान को न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक दुर्लभ बीमारी का पता चला। इलाज के लिए वे लंदन गए और लंबे समय तक संघर्ष करते रहे। 29 अप्रैल 2020 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने सिनेमा जगत को गहरे शोक में डाल दिया। इरफ़ान खान की कहानी साधारण से असाधारण बनने की यात्रा है। उन्होंने साबित किया कि प्रतिभा, समर्पण, और दृढ़ इच्छाशक्ति से कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।