मुंबई: जब-जब संगीत की बात आती है, तब-तब लोग पुराने सिंगर्स और उनके म्यूजिक को ही तवज्जो देते हैं। इसी के चलते जाने-माने लेखक और गीतकार जावेद अख्तर साहब ने नए दौर के संगीत को तूफान मेल कह दिया है। जी हां, मुंबई में हुए एक ग़ज़ल एल्बम के लॉन्च के मौके पर जब जावेद साहब से नई प्रतिभाओं के बारे में दो शब्द बोलने को कहा गया, तो जावेद साहब ने मौजूदा दौर में चल रहे संगीत की धज्जियां उड़ा दीं।
क्या कहा जावेद साहब ने अपनी आलोचना में
जावेद साहब ने कहा, "आज कल का म्यूजिक एक अजीब से दौर से गुजर रहा है.. संगीत में एक बेचैनी आ गई है.. और इतनी तेजी से शब्द गुजर रहे होते हैं कि जैसे कोई तूफान मेल आ जाएगा और आप इससे पहले कि कुछ सुन सकें या समझ सकें। बात क्या हो रही है, वो तो चली जाती है। उसके बावजूद भी आजकल के गाने लंबे लगते हैं। ऐसा लगता है कि ये गाना तो खत्म ही नहीं हो रहा। अब न गायकी है न मेलोडी...न अल्फाज़ न पोएट्री ..बस एक बीट धमधम करके बराबर सुनने को मिलती है और पता चलता है कि हां कुछ हो रहा है। धमाधम और उसके नीचे कोई गा भी रहा है।"
जावेद साहब ने नए संगीत के बारे में जैसे ही ये बातें खत्म की, पूरा म्यूजिकल हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। हो न हो, लोगों को ये लगा कि जावेद साहब ने वो कह दिया जो आजकल का संगीत सुनकर उन्हें भी लगता है, मगर वो कह नहीं पाते।
सांसद कहते हैं गलत शायरी
जावेद साहब ने ये टिप्पणी तो मौजूदा संगीत पर दी, मगर जब बात गजल की आई तो जावेद साहब के लपेटे में भारतीय संसद भी आ गई। इस बारे में जावेद साहब ने कहा- "गज़ल कमाल की विधा है। मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि हिन्दुस्तान के पार्लियामेंट में जिससे अभी तीन महीने पहले मुझे निकाला गया है, वहां तिरसठ बरस में जितनी पोएट्री सुनायी गई है। गलत या सही.. वहां 95 प्रतिशत पोएट्री गजलों से उधार ली गई है...गलत या सही, मैंने इसलिए कहा क्योंकि पॉलिटिशयन को अधिकार होता है। शायरी गलत पढ़ने का..और इस अधिकार को वो आमतौर से धड़ल्ले से इस्तेमाल भी करते हैं। गजल उल्लेखनीय बहुत होती है। इसलिए उनका इस्तेमाल हर मौके पर हो ही जाता है।"
भई वाह.. जावेद साहब इसे कहते हैं शब्दों की जादूगरी। मान गए आपको.।..जाते जाते जावेद साहब ने एक बहुत खूबसूरत बात गजल पर कही...आप भी इसके कायल हुए बगैर नहीं रह पाएंगे। "पोएट्री ज़बान का संगीत...और संगीत आवाज़ की पोएट्री"