स्वेटरों के शौकीन थे ऋषि कपूर, इन गीतों से सबके दिलों पर छाए रहे

70 के इस दशक में जब एक तरफ एक्शन फिल्मे हिट हो रही थी ऋषि कपूर रोमांटिक फिल्मों से अपनी एक अलग छवि बना चुके थें। उस दौर के प्रेमियों के लिए वह एक आदर्श नायक बन चुके थें।

Update: 2020-04-30 09:45 GMT

श्रीधर अग्निहोत्री

नई दिल्ली। जिस दौर में ऋषि कपूर का फिल्मों में आना हुआ उस दौर में देश का युवा गरीबी भूख और बेरोजगारी से परेशान था, उसे हिंसात्मक फिल्में अच्छी लग रही थी, रोमांस की तो उसके मन में कल्पना भी नही थी युवा पीढ़ी का मन बेहद कुठाग्रस्त हुआ करता था लेकिन ऋषि कपूर ने बाबी फिल्म में एक रोमाटिंक किरदार निभाकर उनके दिलोें में जीवन के प्रति आकर्षण पैदा करने का काम किया। फिल्म बेहद हिट रही ।

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लैला मजनू, दूसरा आदमी, बदलते रिश्ते, झूठा कहीं का

इसके बाद ऋषि के पास रोमाटिंक फिल्मों की लाइन लग गयी। उनके चाकलेटी चेहरे को लोग पंसद करने लगे। रफू चक्कर, कभी-कभी, बारूद, लैला मजनू, दूसरा आदमी, बदलते रिश्ते, झूठा कहीं का, सरगम, धन दौलत, हम किसी से कम नहीं आपके दीवाने, कर्ज और नसीब आदि में जम्पिंग हीरो की बन गयी थी।

गीत संगीत से भरी इन फिल्मों में ऋषि कपूर ने न जाने कितने ही गीतों से दर्शकों का मनोरंजन किया। 70 के इस दशक में जब एक तरफ एक्शन फिल्मे हिट हो रही थी ऋषि कपूर रोमांटिक फिल्मों से अपनी एक अलग छवि बना चुके थें। उस दौर के प्रेमियों के लिए वह एक आदर्श नायक बन चुके थें।

फिल्म ‘प्रेमरोग’

उनकी इसी छवि में थोड़ा सा बदलाव कर उन्हे गंभीर बनाने का काम उनके पिता राजकपूर ने किया जब उन्होंने होम प्रोडक्शन आरके फिल्म्स के बैनर तले एक फिल्म ‘प्रेमरोग’ बनाई। एक विधवा स्त्री के प्रेमी की भूमिका निभाने वाले देवधर यानी ऋषि कपूर महिला वर्ग में एक बडे नायक के तौर पर अपनी जगह बना चुके थें।

हालांकि उनकी रोमांटिक हीरो की छवि इसके बाद भी नही बदली और उन्होंने फिर वही ट्रैक पकड कर धड़ाधड़ फिल्मे साइन करना जारी रखा।

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फिल्म चांदनी

इस दौर में भी उनकी दीदार ए यार, ये वादा रहा, बडे दिल वाला, जमाने को दिखाना है, बडे घर की बेटी तथा कुली आदि फिल्में खूब चली। लेकिन 80 के इसी दौर में यश चैपड़ा ने जब उन्हे श्रीदेवी के अपोजिट फिल्म चांदनी में कास्ट किया तो यह फिल्म सुपर डुपर हिट साबित हुई।

खुद को घर पर समेट लिया

इसके अलावा इस दौर में उनकी और भी फिल्में आई जो कुछ हिट रही तो कुछ फ्लाप भी हुई। जब नब्बे का दशक आया तो ऋषि कपूर को अनुभव हुआ कि अब नए अभिनेताओं शाहरूख, सलमान, आमिर, अजय देवगन और अक्षय कुमार का दौर शुरू हो रहा है। इसलिए उन्होंने खुद को घर पर समेट लिया।

बावजूद इसके निर्मार्ता निर्देशक ऋषि कपूर को अपनी फिल्मों मं लेते रहे। ऋषि कपूर भी अपने शानदार अभिनय से निर्माता निर्देशकों का भरोसा कायम रखते रहे। इस दौर में भी गुरूदेव, बोल राधा बोल, दीवाना, दामिनी, साहिबा आदि फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया।

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गीतों में ढपली का इस्तेमाल खूब

इसके बाद उनका दौर जब सिमटने लगा तो कुछ दिनों तक फिल्मों से किनारा करने के बाद उन्होंने फिर से फिल्मों में काम किया लेकिन अब उन पर उम्र हावी हो चुकी थी।

इस दौर में उनकी शादी पुलाव, ऑल इस वेल, बेवकूफियां, शुद्ध देसी, रोमांस, बेशर्म, औरंगजेब, चश्मे बद्दूर, अग्निपथ स्टूडेंट ऑफ द ईयर, हाउसफुल, जब तक है जान, टेल मी ओ खुदा , अल्ताफ जरदारी, पटियाला हाउस आदि की।

हिन्दी फिल्मों के सबसे बडे खानदान में ऋषि कपूर अकेले ऐसे अभिनेता थें जो अपने गीतों में ढपली का इस्तेमाल खूब किया करते थें। यह गुण उन्होंने अपने पिता राजकपूर से सीखा जिन्होंने श्री 420 में दिल का हाल सुने दिल वाला गीत में ढपली का इस्तेमाल किया था।

‘परदा है परदा से’ शुरू हुआ सफर सरगम

इसके बाद ऋषि ने भी यही प्रयोग किया। जो सफल रहा। ढपली उनके हाथ पर खूब फबती थी। उस दौर मेें उनके इन ढपली गीतो को दर्शक भी खूब पंसद करते थें।

फिल्म अमर अकबर एंथनी के ‘सिरडी वाले साई बाबा तथा ‘परदा है परदा से’ शुरू हुआ सफर सरगम के ‘ढपली वाले ढपली बजा तथा परवत के इस पार परवत के उस पार तथा राम जी की निकली सवारी के साथ ही प्रेम रोग के मैं हू प्रेम रोगी तथा बडे घर की बेटी के ‘तेरी पायल बजी के अलावा फिल्म बोल राधा बोल ‘बोल राधा बोल तूने ये क्या किया तक खूब चला।

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वह अकेले ऐसे अभिनेता थे जो फिल्मों में अक्सर तरह तरह के स्वेटर पहना करते थें। एक फिल्म में जो स्वेटर पहन लेते थें उसे फिर दोबारा दूसरी फिल्म में नही पहनते थे। उन्होंने एक इंटरव्यूव में कहा था कि ये बात सही है कि मुझे तरह तरह के स्वेटर पहनने का शौक है और मेरे पास अपने 4 हजार स्वेटर हैं।

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जिंदादिल इंसान थें

ऋषि कपूर बेहद जिंदादिल इंसान थें, वह कभी नहीं चाहते थे कि उनकी लाचार सी तस्वीर बाहर आए, जिससे लोग उन पर तरस खाते दिखें। स्क्रीन वाले नाम से तो शायद ही कोई उन्हें बुलाता हो, प्यार से उनके घर के नाम चिंटूजी ही कहकर बुलाया जाता था।

राज कपूर की फिल्म श्री 420 के गाने ‘प्यार हुआ इकरार हुआ ’ में पहली बार दिखे चिंटू की आखिरी फिल्म शर्माजी नमकीन की कुछ ही दिन की शूटिंग बाकी थी। इसके पहले ही वह अपने करोड़ो सिनेप्रेमियों को छोड़कर दुनिया से चले गए।

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रिपोर्ट- श्रीधर अग्निहोत्री

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