ढाई साल की उम्र में "नौकर" बन गई थी पहली कॉमेडी स्टार टुनटुन, रिश्तेदारों ने कर दिया था मां-बाप का कत्ल

टुनटुन की ज़िंदगी में तकलीफें बहुत छोटी उम्र से ही शुरू हो गई थी और उसकी सिलसिला उम्र भर चलता ही रहा. टुनटुन के बारे में कहा जाता है की जब वो महज़ ढाई साल की थी तभी उनके रिश्तेदारों ने उनके मां बाप की हत्या कर दी थी

Written By :  Alok Srivastava
Update:2022-11-24 18:48 IST

Tum Tun (Social Media)

कहते है की अक्सर दूसरों को हसाने वाला, दूसरें की ज़िंदगी में रंग भरने वाला शख्स खुद अंदर से बेहद टूटा हुआ होता है इसी लिए वो दूसरो की तकलीफों को बखूबी समझ पाता है. ऐसी ही एक शख्सियत थी बॉलीवुड में अपने हास्य हुनर से सबको बहलाने वाली उमा देवी, जिन्हें आम तौर पर सब टुनटुन के नाम से जानते हैं .

शुरूआती दौर की फिल्मों में एक मोटी सी लड़की हास्य रोल किया करती थी जो बाद में इतनी मश्हूर हुई की दिलीप कुमार साहब ने उनका नाम ही टुनटुन रख दिया और फिर वो इसी नाम से जानी जाने लगी. वो अक्सर फिल्मों में साइड रोल किया करती थी जैसे हीरो की बहन का रोल या फिर हेरोईन की सहेली का रोल और जो भी रोल उन्हे दिया जाता था उसे वो बखूबी अंजाम देकर लोगों के दिलों में जगह बना लेती थी लेकिन उनके दिल में कितना दुख था इसका अंदाज़ा कभी उन्हे देख कर नहीं लगाया जा सका.

उनकी ज़िंदगी की तकलीफें बहुत छोटी उम्र से ही शुरू हो गई थी और उसकी सिलसिला उम्र भर चलता ही रहा. टुनटुन के बारे में कहा जाता है की जब वो महज़ ढाई साल की थी तभी उनके रिश्तेदारों ने उनके मां बाप की हत्या कर दी थी और 4 साल की उम्र में उनके भाई को प्रॉपर्टी के लिए मार दिया था और मजबूरन अनाथ टुनटुन को उनका नौकर बनना पड़ा था. छोटी सी उम्र में टुनटुन उनकी नौकर बन गई थी. टुनटुन पर उनके रिश्तेदारों ने बहुत वक्त तक ज़ुल्म किया. कई साल तो बीते लेकिन तस्वीर नहीं बदली.

वक्त बीता गया टुनटुन अपने खाली वक्त में खुद को तलाशा करती थी वो रेडियो पर गाने सुन कर गुनगुनाया करती थीं और वहीं से शुरू हुआ उनका उमा देवी से टुनटुन बनने का सफर. उन्हे एहसास हुआ की वो अच्छी गायका बन सकती हैं, तो वो उत्तर प्रदेश को अमरोहा से भाग कर मंबई आ गईं.

काफी संघर्ष करने के बाद उनकी मुलाकात एक्टर गोविंदा के माता पिता अरुण कुमार आहूजा और उनकी पत्नी निर्मला देवी से हुई जिन्होने उनकी जान पहचान कई डायरेक्टर्स से करवाई.

पहला गीत मिलने की कहानी भी है बेहद दिलचस्प-

डायरेक्टर अब्दुल रशीद कारदार की नई फिल्म में गाना गाने की इच्छा रखने वाली टुनटुन उनके दफ्तर पहुंची और उन्ही से पूछ बैठी की रशीद साहब कहा है मुझे उनकी फिल्म में गीत गाना है. उनकी इसी सादगी, मासूमियत और बेबाक अंदाज़ ने रशीद साहब का दिल जीत लिया और राशिद साहब ने उनका टेस्ट लिया. टेस्ट में उनकी अवाज़ सुन कर रशीद साहब खूब मुतास्सिर हुए और ऐसे मिला उनको उनका पहला ब्रेक.

ऐसे ही वक्त बीता और वो खूब मश्हूर होती गई, उनकी अवाज़ के दिवाने हुए अख्तर अब्बास काज़ी उनसे शादी करने लाहौर से यहां आ गए. 1947 में उनकी शादी हुई जिसके बाद उनका वज़न काफी बढ़ गया. वो फिल्मों में वापसी करना चाहती थी और मौका उन्हे मिला 1950 की फिल्म बाबुल से.

कैसे पड़ा नाम टुटुन-

दरअसल बाबुल फिल्म में दिलीप कुमार के साथ वो नज़र आईं थी. फिल्म में एक सीन था जहां दिलीप कुमार से टुटुन से टकरा जाती है और दोनो पलंग पर गिर पड़ते हैं, तभी दिलीप कुमार के मुंह से निकलता है "कोई उठाओ इस टुनटुन को", और तभी से उनका नाम पड़ गया टुनटुन.

24 नवंबर 2003 में 80 साल की उम्र में गंभीर बीमारी से जूझते हुए उन्होने मुंबई में आखिरी सांस ली. आज उनकी बरसी पर उन्हे याद किया जा रहा है.

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