The Dairy Of West Bengal Review: कोलकाता मर्डर एंड रेप केस से संबंध, एक राजनीतिक थ्रिलर फिल्म
The Dairy Of West Bengal Review In Hindi: द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल यदि आप देखने का विचार बना रहे हैं, तो जान ले पहले इसकी कहानी
The Dairy Of West Bengal Review: विवादों से पहले से ही घिरी फिल्म The Dairy Of West Bengal आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म के ट्रेलर ने पहले ही इस फिल्म को लेकर कई सारे विवाद खड़े किए थे। विवादों का सामना करने के बात अंत में आखिरकार फिल्म रिलीज हो चुकी है। यदि आप भी The Dairy Of West Bengal देखने का विचार बना रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म और क्या है इसकी कहानी इससे जुड़े अन्य जानकारी
द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल की कहानी क्या है? (The Dairy Of West Bengal Story In Hindi)-
द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल की कहानी पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी चरमपंथियों की कथित घुसपैठ और उसके कारण होने वाली सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल के ईर्द-गिर्द घूमती है। यह फिल्म सुहासिनी भट्टाचार्या (आर्शिन मेहता द्वारा अभिनीत) नामक पत्रकार पर आधारित है। जो उन गहरी राजनीतिक साजिशों को उजागर करती है। जो इन समुदायों के राज्य में बसने देती है। कहानी तब और भी दिलचस्प हो जाती है। जब सुहासिनी की जांच उसे शीर्ष राजनीतिक अधिकारियों की संलिप्तता को उजागर करने के लिए प्रेरित करती है। जिससे उसके जीवन और करियर खतरे में पड़ जाता है। फिल्म की पूरी कहानी जानने के लिए आपको अपने नजदीकी सिनेमाघरों की तरफ रूख करना होगा।
द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल रिव्यू (The Dairy Of West Bengal Review In Hindi)-
सनोज मिश्रा द्वारा निर्देशित The Dairy Of West Bengal पश्चिम बंगाल में अवैध अप्रवास के विवादास्पद और राजनीतिक रूप से चार्ज किए गए मुद्दे पर आधारित है। यह फिल्म रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी अप्रवासियों की आमद के ईर्द-गिर्द सामाजिक-राजनीतिक गतिशीतलता को तलाशने की कोशिश करती है। यजुर मारवाह ने राजनीतिक परिदृश्य को चित्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जबकि गौरी शंकर और रामेंद्र चक्रवर्ती ने पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच अराजक विवादों पर जोर देते हुए अभिनय किया है। फिल्म इस मुद्दे पर एक साहसिक रूख अपनाती है। इसे चुनावी लाभ के लिए राज्य के जनसंख्यिकीय ताने-बाने को सुनियोजित प्रयास के रूप में दर्शाती है।
फिल्म की पटकथा कठोर होने का लक्ष्य है, अक्सर भारी-भरकम लगती है और इस प्रकृति के विषय के लिए आवश्यक बारीकियों का अभाव है। फिल्म की गति असमान है। कुछ दृश्य अनावश्यक रूप से खींचे गए औरजबिक अन्य जो कथा में अधिक गहराई को जोड़ सकते थे। जिसमें जल्दबाजी होती हुई नजर आती है। कुल मिलाकर फिल्म की कहानी ऐवरेज है।