मुंबई: शौकीन के जगदीश भाई ,गोलमाल के भवानी शंकर या साहेब के बद्री प्रसाद को भला कोई भूल सकता है। बांग्ला फिल्मों से हिंदी फिल्मों में उत्तम कुमार से लेकर कई कलाकार आए, लेकिन जो सिक्का उत्पल दत्त का जमा वो किसी और को नसीब नहीं हो सका। यहां तक कि बांग्ला फिल्मों के दिलीप कुमार कहे जाने वाले उत्तम कुमार का भी नहीं। उत्तम कुमार हिंदी फिल्म, छोटी सी मुलाकात और अमानुष में आए, लेकिन बाद में अपनी भाषा की फिल्मों में लौट गए ।
प्रारम्भिक दौर
29 मार्च 1929 को जन्में उत्पल दत्त पहली बार 1969 में आई फिल्म सात हिंदुस्तानी में दिखे और 50 से ज्यादा हिंदी फिल्मों में अपने कॉमेडी और विलेन के रोल का जलवा बिखेरा। मिथुन चक्रवर्ती, रति अग्निहोत्री स्टारर शौकीन में वो तीन अधेड़ों में एक ऐसे अधेड़ बने थे जो हमेशा लडकियों के चक्कर में रहता है। हालांकि दो और अधेड़ अशोक कुमार और ए के हंगल भी कम नहीं थे, लेकिन दर्शकों के बीच उत्पल दत्त ने जगदीश भाई के रुप में अपनी छाप छोड़ी थीं ।
हर भूमिका में फिट
इसके अलावा मेरा पति सिर्फ मेरा है, बात बन जाए, किराएदार, मैं बलवान कोतवाल साब, सफेद हाथी, स्वामी, गुड्डी, भुवन सोम, सात हिंदुस्तानी, दो अंजाने ऐसी फिल्में हैं जिनकी खास चर्चा तो नहीं हुई, लेकिन उत्पल दत्त सभी के दिलों में बस गए, वे कॉमेडी और विलेन दोनों में अपनी छाप छोड़ी।
जब उनकी भूमिका हास्य कलाकार की होती थी तो उनके चेहरे को देखते ही दर्शकों को हंसी छूट जाती थी, जबकि विलेन के रूप में उनके चेहरे को देखने से डर लगता था। बरसात की एक रात ,ग्रेट गैंबलर और इंकलाब तीन ऐसी फिल्में हैं जिसमें उन्होंनें अपनी खलनायिकी का लोहा मनवा लिया। दिलचस्प है कि तीनों फिल्मों में हीरो अमिताभ बच्चन ही थे ।
अवार्ड भी मिले
उत्पल दत्त को 1980 में गोलमाल, 1982 में नरम गरम और 1987 में रंग बिरंगी के लिस बेस्ट हास्य कलाकार के रूप में फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया। जबकि साहेब के लिए वो 1986 में बेस्ट सहायक कलाकार के रूप में नामित किए गए । ल दत्त की राजनीति में भी गहरी रूचि थी। वो आजीवन माकपा के सदस्य ही नहीं रहे, बल्कि उनकी सक्रिय भागेदारी भी रही। उन्होंनें कई बांग्ला फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। वो लगभग 50 साल तक फिल्मों में सक्रिय रहे। कोलकाता में 19 अगस्त 1993 को उनकी मृत्यु हो गई।