सुनने की क्षमता में गिरावट से रुक सकता है मानसिक विकास

Update:2019-02-15 13:23 IST
सुनने की क्षमता में गिरावट से रुक सकता है मानसिक विकास

नई दिल्ली।विशेषज्ञों का कहना है कि सुनने की क्षमता में गिरावट बड़ी उम्र के लोगों की याददाश्त में कमी और डिमेंशिया और उसके फलस्वरूप अल्जाइमर रोग का खतरा बढ़ा सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक या दोनों कानों में सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म होने को बहरापन कहा जाता है, जबकि सुनने की क्षमता में पूरी या आंशिक कमी को ‘हीयरिंग इम्पेयरमेंट’ यानी सुनने में परेशानी माना जाता है। दुनियाभर में करीब 36 करोड़ लोग सुनने की क्षमता में कमी के शिकार हैं, जिनमें से एक-दसवां हिस्सा बच्चों का है।

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सुनने की क्षमता में कमी संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट का कारण बन सकती है। हमारी दो इंद्रियां - देखने और सुनने की - हमारे संज्ञानात्मक विकास में मदद करती हैं। जब हम सही प्रकार से सुन नहीं पाते, तो इस माध्यम से हमें जो ज्ञान मिलता है, वह सही प्रकार से नहीं मिल पाता। इस प्रकार सुनने की क्षमता में कमी धीरे-धीरे संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट का कारण बनती है। दिमाग का विकास और संज्ञानात्मक ज्ञान का विकास धीमी प्रक्रिया है। बुद्धिमत्ता कोई स्थिर चीज नहीं है, यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। एक या दो दिन में भले ही यह दिखाई न दे, लेकिन कुछ समय की अवधि में किसी व्यक्ति के संज्ञानात्मक व्यवहार में गिरावट नजर आने लगती है।

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सुनने की क्षमता में गिरावट से जहां बड़ी उम्र के लोगों की याददाश्त में कमी और डिमेंशिया का खतरा रहता है, बच्चों में इसके कारण बोलने की क्षमता और दिमागी विकास में बाधा आ सकती है। जन्मजात बहरापन या नवजात रोगों जैसे लंबे समय तक पीलिया, मेनिन्जाइटिस के कारण नवजात शिशु की सुनने की क्षमता में थोड़ी या गंभीर स्तर की कमी आ सकती है। हीयरिंग लॉस के कारण होने वाली किसी भी जटिलता से बचने के लिए हीयरिंग एड, कोक्लियर इंम्पलांट, दवाइयों और करेक्टिव सर्जरी जैसे उपाय जल्द से जल्द उठाने चाहिए।

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