Himachal Election 2022: कांगड़ा से निकलता है राज्य की सत्ता का रास्ता, Video में देखें इसे जिले का चुनावी हाल
Himachal Pradesh Election 2022: कहा जाता है कि हिमाचल के संदेश का जो केंद्र है, वह काँगड़ा का इलाक़ा है। काँगड़ा से जिसकी जीत होती है, उसी की सरकार बनती है।
Himachal Pradesh Election 2022 Kangra Politics: कई बार छोटे राज्यों से बहुत बड़े संदेश निकलते हैं। हाल फ़िलहाल गुजरात और हिमाचल में चुनाव हो रहे हैं। पर हिमाचल के चुनावी नतीजे बड़े संदेश देंगे। गुजरात के नतीजे तो मोटा-मोटा साफ़ हैं कि वहाँ पर फिर भाजपा की सरकार बनेगी। हिमाचल के नतीजों में भी अभी भाजपा बढ़त में ज़रूर दिख रही है। भाजपा की सरकार बनती हुई दिख रही है। पर अगर भाजपा की सरकार बनती है तो और नही बन पाती है तब दोनों सचुएशन्स में एक बड़ा संदेश हिमाचल से निकलने वाला है।
कहा जाता है कि हिमाचल के संदेश का जो केंद्र है, वह काँगड़ा का इलाक़ा है। काँगड़ा से जिसकी जीत होती है, उसी की सरकार बनती है। काँगड़ा ही हिमाचल के सियासी रुख़ को तय करता है।काँगड़ा में विधान सभा की 15 सीटें हैं। 2017 में भाजपा ने 11 पर जीत हासिल की थीं। जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बने। राज्य के किसी भी जिले की तुलना में ये सबसे ज्यादा सीटें थीं। उससे पहले 2012 में इस इलाक़े से 10 सीटें कांग्रेस ने जीतीं। और वीरभद्र सिंह छठी बार मुख्यमंत्री बने।
1993 से कांगड़ा ने ही कांग्रेस या भाजपा में से किसी एक पार्टी को सत्ता में भेजा है। ऐसा कहा जाता है कि जिले में स्विंग वोटर सबसे ज्यादा हैं। जो हिमाचल पर शासन करने वाली पार्टी का फैसला करते हैं।
पिछले 30 वर्षों में हुए हर चुनाव में कांगड़ा ने किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष में स्पष्ट फैसला दिया है। कांगड़ा पर पकड़ बनाने वाली पार्टी को कम से कम नौ सीटें जरूर मिलती हैं। आँकड़ों से पता चलता है कि इस इलाक़े में दोनों को न्यूनतम 40 फीसदी वोट मिलते हैं। 3 से 5 फीसदी वोट स्विंग करते हैं। ये जो स्विंग वोटर हैं, यही नतीजे तय करते हैं। इस बार भी काँगड़ा फिर फ़ैसला सुनायेगा।
राज्य के बाकी हिस्सों की तरह कांगड़ा में राजपूतों का वर्चस्व है। जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इन्हें स्थानीय रूप से चौधरी कहा जाता है। अनुमान है कि राजपूत समुदाय जिले की आबादी का लगभग 34 फीसदी है। ओबीसी लगभग 32 फीसदी है? और 20 फीसदी ब्राह्मण हैं। शेष 14 फीसदी ज्यादातर चरवाहा समुदाय हैं, जिन्हें गद्दी और अनुसूचित जाति कहा जाता है।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने राजपूत और गद्दी नेताओं को ज्यादा टिकट दिए हैं। भाजपा ने कांगड़ा में ब्राह्मण को एक भी टिकट नहीं दिया है, जबकि कांग्रेस ने केवल एक टिकट दिया है। कांगड़ा के समर में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लेकिन राज्य के महत्वपूर्ण मुद्दे मतदाताओं को स्विंग कर देते हैं। लोकल लोगों के अनुसार, अमूमन लोग उस पार्टी को वोट देते हैं, जो जनता के लिए काम करती है। यहाँ के लोग अत्यधिक साक्षर और जागरूक हैं।
हिमाचल के अधिकांश अन्य जिलों के विपरीत, कांगड़ा और पड़ोसी जिलों हमीरपुर, ऊना और मंडी में "अग्निपथ" योजना एक बड़ा चुनावी मुद्दा प्रतीत होती है। इन जिलों में करीब 35 सीटें हैं। आँकड़ों के मुताबिक़ हिमाचल के इन ज़िलो में तक़रीबन 1.30 लाख पूर्व सैनिक रहते हैं। और तक़रीबन 40,000 सैनिक सेना में आज भी काम कर रहे हैं।
कहा तो यह भी जाता है सशस्त्र बल में कांगड़ा जिले के हर तीसरे परिवार का एक व्यक्ति या तो सेवारत या सेवानिवृत्त सदस्य है। हर साल कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना और मंडी जिलों के तक़रीबन 4,000 नौजवान सेना और सशस्त्र बलों में भर्ती पाते हैं।
इसलिए इस इलाक़े में अग्निपथ योजना का टेस्ट होगा। और अगर भाजपा सरकार बनाती है तो अपनी सरकार बनाने के साथ ही साथ वह जो संदेश हिमाचल से या काँगड़ा से जुटाकर निकलेगी। उसमें यह होगा कि एक एक बार का जो क्रम है, वह टूटेगा। और अग्निपथ योजना पर भी जनता की, लोकतंत्र की मोहर लग जायेगी।