मदरसों में एनसीआरटी की किताबें शामिल करने का होगा विरोध, कोर्ट पहुंचेगा मामला
लखनऊ: यूपी के मदरसों में एनसीआरटी की किताबो को पढ़ाये जाने की तैयारी के विरोध की तैयारी शुरू हो गई है। योगी सरकार ने मदरसों में दीनी शिक्षा के साथ-साथ एनसीआरटी की किताबो को भी शामिल करने का फैसला लिया है। सरकार का मानना है की अल्पसंख्यकों को मुख्य धारा में लाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है।
मदरसा शिक्षा बोर्ड ने सरकार के इस प्रोजेक्ट पर काम भी शुरू कर दिया है। लेकिन अल्पसंख्यक सरकार के इस फैसले को शक की निगाह से देख रहे हैं। जिस के चलते विरोध के सुर सुनाई पड़ रहे हैं। ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है।
यूपी सरकार ने मदरसों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद यानि एनसीआरटी की किताबे कोर्स में शामिल किये जाने का फैसला लिया गया है। मदरसा शिक्षा बोर्ड सरकार के इस फैसले पर अमल करने की तैयारी में जुटा है। नये सैलेबस के मुताबिक दीनियात (इस्लाम से सम्बंधित ज्ञान), क़ुरआन की तिलावत और ट्रांसलेशन, हिफ़्ज़ (याद करना), उर्दू, उर्दू अदब, के अलावा अब अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, गणित और सामाजिक विज्ञान भी अनिवार्य विषय होंगे। यहाँ पर हिंदी और अँग्रेज़ी को छोड़ कर सभी किताबे उर्दू में होंगी।
यूपी सरकार के इस फैसले से देवबंद के उलेमा नाराज हैं। उलेमा का कहना है कि "सरकार खास तौर पर एक संगठन और धर्म को टारगेट कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मदरसों को छोड़कर प्राइमरी स्कूलों पर ध्यान देना चाहिए। प्रदेश सरकार के इस तरह के फैसले से हम सहमत नहीं हैं। क्यों कि इस तरह के फैसले से सरकार की नियत में खोट नज़र आ रही है।
यूपी में 16461 मदरसों में से 560 को सरकारी मदद से चलाया जाता है। उलेमा कहते हैं कि पिछले 7 माह से 25 हज़ार मदरसा शिक्षकों को सेलरी नहीं मिली है। इन शिक्षकों को 25 फीसदी राज्य सरकार और 75 फीसदी सेलरी केंद्र सरकार से मिलती है। उलेमा कहते हैं कि इसी वजह से इन फैसलों को शक की निगाह से देखा जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि सरकार के इस फैसले का विरोध सिर्फ देवबंद में हो रहा है। बल्कि पूर्वांचल के आज़मगढ़, अम्बेडकरनगर, वाराणसी, जौनपुर, मेरठ, मुज़फ्फरनगर, अलीगढ, बरेली और लखनऊ में भी इस फैसले के खिलाफ बगावती सुर सुनाई पड़ रहे हैं। उलेमा सरकार के फैसले को शक की निगाह से देख रहे हैं। मदरसे ए फ़ुरक़ानिया की प्रिंसिपल फातिमा ज़ुबैर कहती हैं की सरकार रोज़ रोज़ शगूफे छोड़ कर लोगों को असल मुद्दे से भटका रही है। क्यों कि मदरसों में अल्पसंख्यक आबादी के सिर्फ 2 फीसदी बच्चे ही मदरसों में पढ़ते हैं। ऐसे में सरकार अगर वाक़ई अल्पसंख्यकों को लेकर फिक्रमंद है।
तो वह स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की मदद कर उन को आगे बढ़ाने का काम करे।
आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता ज़फ़रयाब जीलानी कहते हैं, सरकार आर्टिकल 30 के तहत मदरसों में दखल नहीं दे सकती है। क्योंकि मदरसों में सिर्फ 2 फीसदी बच्चे ही पढ़ने जाते हैं। जिन का मक़सद ही दीनी तालीम हासिल करना होता है। ऐसे में सरकार उन बच्चों पर ज़बरदस्ती दीनी तालीम के साथ दुनयावी शिक्षा के लिए दबाव नहीं बना सकती है। उन का मानना है कि जब सरकार इस पर अमल करेगी तब आर्टिकल 30 के तहत हाईकोर्ट जाने का रास्ता खुला होगा।