अरे गजब ! तो यह है अमेरिका ईरान विवाद की असली वजह
तेल को लेकर कई देशों के बीच लड़ाई हुई और इसकी आपूर्ति पर नियंत्रण हासिल करने के लिए दुनिया के ताकतवर देशों में आज भी टकराव चल रहा है। इराक में सद्दाम हुसैन को एक झूठ के आधार पर मौत की घाट उतार दिया गया कि उसके पास परमाणु हथियार हैं। ईरान के साथ भी अमेरिका का तेल के कुओं को लेकर झगड़ा पुराना है।
रामकृष्ण वाजपेयी
अमेरिका ईरान के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत का भविष्य दांव लगता दिखाई दे रहा है। हालांकि ऐसा कुछ नहीं है। कहा ये जा रहा है कि अमेरिका ईरान के बीच झगड़े की मुख्य वजह तेल के कुएं हैं। यह बात काफी हद तक सही हो सकती है। एक तर्क यह भी है कि भारत अपनी घरेलू जरूरतों के ईंधन की सप्लाई के लिए ईरान पर निर्भर है। हालांकि 2019 में ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लागू होने से पहले ही 2018 में भारत ने अपनी जरूरत का सबसे अधिक तेज इराक से आयात किया है। वर्तमान में भारत कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए तेजी से अमेरिका पर निर्भर होता चला जा रहा है। इसमें जहां खतरे भी हैं, तो फायदे भी। चूंकि अमेरिका कच्चे तेल के क्षेत्र में तेजी से एकाधिकार की तरफ बढ़ रहा है।
वेनेजुएला तेल में नंबर वन फिर भी बेजार
खाड़ी में बढ़ते तनाव के बीच एक नजर डालते हैं कच्चे तेल के उत्पादक प्रमुख देशों पर वेनेज़ुएला वो देश है जिसके पास कच्चे तेल का सबसे बड़ा भंडार है। अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के अनुसार इस देश में 30,230 करोड़ बैरल कच्चा तेल है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वेनेजुएला की स्थिति बहुत अच्छी है। वेनेजुएला अमेरिकी प्रतिबंधों की मार के तले दबकर संकट के दौर से गुजर रहा है उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल है। जबकि वेनेज़ुएला की अर्थ व्यवस्था पूरी तरह से यानी उसकी 96 फीसदी आय कच्चे तेल पर ही निर्भर है। दूसरे नंबर पर सऊदी अरब का नाम लिया जाता है। माना यह भी जाता है इस देश के पास 26,620 करोड़ बैरल कच्चे तेल का विशाल भंडार है। लेकिन ये देश भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम प्रतिबंधों से जूझ रहा है। इसकी हालत भी अच्छी नहीं है।
घटा दिया तेल उत्पादन
वेनेजुएला और सऊदी अरब द्वारा तेल के उत्पादन में भारी कटौती के कारण ओपेक के तेल उत्पादन में बहुत अधिक कमी आ गयी है। ओपेक ने एक रिपोर्ट में कहा कि संगठन का संयुक्त उत्पादन मार्च 2019 में 5 लाख 34 हजार बैरल कम हो गया है। वेनेजुएला में राजनीतिक संकट, अमेरिकी प्रतिबंधों और बार-बार बिजली जाने (ब्लैक आउट) के कारण तेल उत्पादन में कमी आयी है।
साथ ही ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते कच्चे तेल की सप्लाई में कमी आई है. इसके अलावा लीबिया में लड़ाई से सप्लाई बाधित है।
किसके पास कितना तेल
कच्चे तेल के भंडार के मामले में कनाडा तीसरे नंबर पर है, जिसके पास एक अनुमान के अनुसार 17,050 करोड़ बैरल कच्चा तेल है। कनाडा इस मामले में अच्छी स्थिति में कहा जा सकता है।
जबकि भारत इस कतार में 23वें नंबर पर है, जिसके पास 449.5 करोड़ बैरल कच्चा तेल है। जो कि खींचतान कर उसकी घरेलू जरूरतों का दस दिन का तेल आपूर्ति करने में सक्षम है।
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ईरान और इराक इस कतार में 15,720 करोड़ बैरल और 14,880 करोड़ बैरल तेल के भंडार के साथ चौथे और पांचवें नंबर पर हैं। कुवैत 101,50 करोड़ बैरल तेल के भंडार के साथ छठे, संयुक्त अरब अमीरात 97,80 करोड़ बैरल के साथ सातवें, रूस 80,00 करोड़ बैरल के साथ आठवें और ब्राज़ील 12,63 करोड़ बैरल कच्चे तेल के साथ 14वें स्थान पर है।
तेल को लेकर लड़ाइयां
तेल को लेकर कई देशों के बीच लड़ाई हुई और इसकी आपूर्ति पर नियंत्रण हासिल करने के लिए दुनिया के ताकतवर देशों में आज भी टकराव चल रहा है। इराक में सद्दाम हुसैन को एक झूठ के आधार पर मौत की घाट उतार दिया गया कि उसके पास परमाणु हथियार हैं। ईरान के साथ भी अमेरिका का तेल के कुओं को लेकर झगड़ा पुराना है। वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान का वजूद मिटाने की धमकी दे चुके हैं।
किसकी कितनी हिस्सेदारी
जानने की बात यह है कि वैश्विक तेल उत्पादन में अमेरिका की हिस्सेदारी 16.2 प्रतिशत है और इसका पहला स्थान है। दूसरे नंबर पर सऊदी अरब है जिसकी हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है जबकि रूस की हिस्सेदारी 12.1 प्रतिशत है वह तीसरे स्थान पर है। कनाडा की हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है और इसका स्थान चौथा है। ईरान व इराक पांचवें और छठे नंबर पर हैं। इसके बाद क्रमशः यूएई, चीन, कुवैत और ब्राजील का नाम आता है।
कहां तेल निकालना महंगा और कहां सस्ता
वेनेजुएला व कनाडा में तेल निकालना महंगा सौदा है। ब्राजील में टैक्स के चलते तेल निकालना आसान नहीं है। लेकिन सऊदी अरब में तेल निकालना आसान है। सऊदी अरब में अगर एक रुपये प्रति बैरल कच्चे तेल की लागत आती है तो अन्य जगहों पर चार गुना अधिक खर्च आता है। कुल मिलाकर यही गणित विवाद का आधार बनता है।
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कुल मिलाकर अमेरिका ने हालात ऐसे कर दिये हैं कि वह ईरान का तेल सस्ता होने के बावजूद उसे तेल बेचने नहीं दे रहा। रूस और चीन ईरान की कितनी मदद कर पाएंगे यह वक्त बताएगा। भारत के लिए सतर्कता का समय है वरना उसका नुकसान ज्यादा हो सकता है। नहीं भूलना चाहिए कि चंद्रशेखर सरकार ने इराक युद्ध के समय जब अमेरिकी विमानों को ईंधन लेने की अनुमति दी थी तो उनकी कितनी किरकिरी हुई थी।