असम की राजनीति में गुल खिला रहे परफ्यूमर अजमल
2006 में असम के राजनीतिक फलक पर उदय हुआ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एईयूडीएफ का। जिसने विधानसभा चुनाव में जोरदार ढंग से अभियान चलाया। इसके संस्थापक थे मौलाना बदरुद्दीन अजमल। इस शख्स ने निचले और मध्य असम के अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए जमकर पैसे खर्च किये थे।
नीलमणि लाल
गुवाहाटी। 2011 की जनगणना के मुताबिक असम में मुसलमानों की आबादी क़रीब 34 फ़ीसदी है। ये बड़ा वोट बैंक है जिसपर राजनीतिक दलों और नेताओं की हमेशा से नजर रही है। इस राज्य में बंगाली मुसलमानों के राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए अलग राजनीतिक पार्टी बनाने का इतिहास पुराना रहा है। असम में पहली बार 1977 में ईस्टर्न इंडिया मुस्लिम एसोसिएशन नाम की राजनीतिक पार्टी बनाई गई थी लेकिन 1979 में शुरू हुए असम आंदोलन के कारण यह पार्टी टिक नहीं सकी और बिखर गयी। इसके बाद 1985 में यूनाइटेड माइनॉरिटी फ्रंट (यूएमएफ) नाम से एक अलग राजनीतिक मंच बनाया गया था।
2006 में असम के राजनीतिक फलक पर उदय हुआ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एईयूडीएफ का। जिसने विधानसभा चुनाव में जोरदार ढंग से अभियान चलाया। इसके संस्थापक थे मौलाना बदरुद्दीन अजमल। इस शख्स ने निचले और मध्य असम के अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए जमकर पैसे खर्च किये थे। 2006 के विधानसभा चुनाव में इसे छह सीटों पर जीत मिली। इसके बाद 2011 में 18 सीटें मिलीं। लेकिन 2016 में इसके 13 उम्मीदवार ही विधानसभा जा सके।
चुनाव की धुरी
65 साल के बदरुद्दीन को मौजूदा असम चुनाव की धुरी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। इस बार के चुनाव में बदरुद्दीन अजमल कांग्रेस की अगुवाई वाले महाजोत यानी महागठबंधन का हिस्सा हैं। अजमल भाजपा के निशाने पर हैं और उनको बांग्लादेश से आए अवैध मुस्लिम प्रवासियों का मसीहा बताया जा रहा है। कौन हैं अजमल असम में बदरुद्दीन अजमल को सभी जानते हैं लेकिन असम से बाहर उनको कोई नहीं जानता।
जानकारी के लिए बता दें कि बदरुद्दीन असम के होजई के रहने वाले हैं। वो एआईयूडीएफ के संस्थापक, तीन बार के सांसद, इस्लामी आध्यात्मिक शख्सियत और इन सबके इतर, परफ्यूम के भारीभरकम कारोबारी हैं।
उनकी कंपनी का नाम है ‘अजमल परफ्यूम’ जिसका मुख्यालय दुबई में है। पूरे एशिया में अजमल परफ्यूम के 270 शोरूम हैं। बदरुद्दीन के दुबई वाले दो कारखानों में कुछ कच्चा माल उनके असम के ‘अगरवुड प्लांटेशन’ से भेजा जाता है। उनकी कंपनी के प्रोडक्ट 42 देशों में निर्यात किए जाते हैं।
बदरुद्दीन अजमल के बदरुद्दीन के छह बेटे और एक बेटी हैं। सबसे छोटा बेटा अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है। चार बेटे कारोबार से जुड़े हैं। पांचवां बेटा मुहम्मद अहमद पॉलिटिक्स में है और जमुनामुख विधानसभा क्षेत्र में अपने चाचा सिराजुद्दीन अजमल का चुनाव अभियान संभाल रहा है। बदरुद्दीन के पास निजी तौर पर 2019 लोकसभा चुनाव तक 75 करोड़ रुपए की संपत्ति थी। इसकी जानकारी उन्होंने चुनावी हलफनामे में दी थी।
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परफ्यूम की सुगंध
इत्र के कारोबार में अजमल परिवार का सफर 1950 में शुरू हुआ। बदरुद्दीन के पिता हाजी अजमल अली उस समय अगरवुड और अपने परफ्यूम ‘दहन अल ऊद’ की सप्लाई के सिलसिले में मुंबई गए थे। वहां उनकी मुलाकात अरब के कुछ कारोबारियों से हुई, फिर देखते ही देखते वह गल्फ के देशों में परफ्यूम के सबसे बड़े सप्लायर बन गए। हाजी ने 1964 में परफ्यूम प्रॉडक्ट्स को अपने परिवार का नाम दिया, अजमल। फिर 1976 में उन्होंने अपने दूसरे नंबर के बेटे फखरुद्दीन को दुबई भेजा कारोबार जमाने के लिए। उसके बाद अजमल परिवार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसी दौरान अजमल परिवार की यूएई में सियासी पहुंच भी बढ़ी। अजमल ने लंदन और अमेरिका के शहरों में अजमल परफ़्यूम के आधुनिक शोरूम खोले हैं। इत्र के व्यापार के अलावा अजमल ने रियल एस्टेट से लेकर चमड़ा उद्योग, स्वास्थ्य सेवाएं, कपड़ा उद्योग और शिक्षा जगत में बड़ा कारोबार फैला रखा है।
2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इलीगल माइग्रेंट्स एक्ट, 1983 को रद्द किया था। यह विवादास्पद कानून बिना कानूनी दस्तावेज वाले अप्रवासियों की मदद करता था। अवसर देख कर बदरुद्दीन अजमल ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट अर्थात एआईयूडीएफ नाम से एक अलग राजनीतिक पार्टी बना ली। एआईयूडीएफ का जब गठन किया गया था उस समय बदरुद्दीन अजमल जमीयत उलेमा-ए-हिंद के असम यूनिट के अध्यक्ष थे और आज भी वे इस पद पर बने हुए हैं।
असम की राजनीति में अजमल
अजमल की राजनीति असम के मुस्लिमों में दबदबा रखने वाले जमीयत से जुड़ी हुई है। असम की राजनीति में अपनी अहम जगह बना चुके बदरुद्दीन अजमल का नाम 2004 से पहले प्रदेश में कम ही सुनाई देता था। उससे पहले वे खुद सीधे तौर पर राजनीति में नहीं आए थे और पर्दे के पीछे रहकर जमीयत की ताक़त के सहारे किंग मेकर का खेल खेलते थे। वह एक ऐसा दौर था जब काँग्रेस से लेकर दो बार असम की सत्ता संभाल चुकी क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद के नेता अजमल से मिलने उनके घर तक जाते थे।
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निशाने पर अजमल
बदरुद्दीन अजमल भाजपा के निशाने पर हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने अजमल और कांग्रेस पर घुसपैठ को शरण देने का आरोप लगाते हुए कहा था - असम को घुसपैठ मुक्त बनाना चाहते हो या नहीं? ये कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल असम को घुसपैठियों से सुरक्षित रख सकते हैं क्या? ये जोड़ी सारे दरवाज़े खोल देगी और घुसपैठ को असम के अंदर सरल कर देगी, क्योंकि ये उनका वोट बैंक है। इससे पहले असम भाजपा के कद्दावर नेता हिमंत बिस्व सरमा अजमल को असम का ‘दुश्मन’ बता चुके हैं।
बदरुद्दीन पर भाषणों के जरिए बंगाली मुसलमानों का ध्रुवीकरण करने का आरोप विपक्ष हमेशा से लगाता रहा है। बदरुद्दीन ने अपने संसदीय क्षेत्र धुबड़ी की एक रैली में दावा किया था कि भाजपा के पास 3500 मस्जिदों की एक सूची है और अगर वह केंद्र की सत्ता में लौटती है तो मस्जिदों को नष्ट किया जाएगा।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बदरुद्दीन ने एक पत्रकार के साथ अभद्रता करते हुए कहा था, ‘चले जाओ, मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा। मेरे ख़िलाफ़ मामला दर्ज करो। मेरे पास अदालत में मेरे आदमी हैं। आप ख़त्म हो जाएंगे। इस व्यवहार के बाद उनकी बहुत आलोचना हुई. घटना के कुछ समय बाद ही बदरुद्दीन ने मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताते हुए सभी पक्षों से माफ़ी मांग ली थी।
इसके अलावा तीन तलाक बिल का विरोध करते हुए मौलाना अजमल ने संसद में मुसलमानों के लिए ‘आतंकवादी’ शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने कहा था कि ‘मुसलमानों में जो लोग तीन तलाक को ग़लत मानते हैं, वह सलफी मसलक (सुन्नी मुसलमानों में मौजूद विचारकों का एक धड़ा) के लोग हैं, वह तो आतंकवादी हैं। ‘बदरुद्दीन ने असम सरकार के 2 बच्चों से ज़्यादा होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने के एक फ़ैसले को बकवास बताते हुए कहा था कि असम सरकार के नए मानदंड के बावजूद मुसलमान बच्चे पैदा करते रहेंगे।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी बदरुद्दीन ने पत्रकारों के समक्ष कहा था कि अगर राज्य में भाजपा एक भी सीट जीतती है तो ‘अल्लाह किसी को भी माफ़ नहीं करेगा और बीजेपी को हराना हर मुसलमान का कर्तव्य है।‘ इस बयान के बाद असम के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए उन्हें नोटिस भेजा था।
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ख़राब होता प्रदर्शन
2016 में असम की सत्ता में भाजपा के आने के बाद बदरुद्दीन की पार्टी का प्रदर्शन लगातार ख़राब हुआ है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में नरेंद्र मोदी की लहर थी उस समय भी एआईयूडीएफ ने प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों में से तीन सीटें जीती थी लेकिन उसके बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में बदरुद्दीन की पार्टी से महज 13 विधायक ही जीते जबकि 2011 में उनके 18 विधायक थे। इस तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में बदरुद्दीन केवल अपनी सीट बचा पाए थे।
समाज-सेवा भी खूब करते हैं अजमल
बदरुद्दीन ने 1982 में मरकाजुल मारीफ नाम से एक सामाजिक संगठन बनाया। उसके बाद हाजी अब्दुल मजीद मेमोरियल पब्लिक ट्रस्ट के अंतर्गत 1995 में हाजी अब्दुल मजीद मेमोरियल पब्लिक अस्पताल बनवाया जिसके उद्घाटन के लिए मदर टेरेसा आईं थीं। इस अस्पताल में गरीब लोगों का मुफ़्त इलाज किया जाता है।
अजमल फाउंडेशन के तहत होजाई में अभी कुछ साल पहले ‘अजमल सुपर 40’ नामक एक योजना की शुरुआत की गई जहाँ किसी भी धर्म के ग़रीब और पिछड़े मेधावी छात्रों को इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश की तैयारी करवाई जाती है। हर साल 40 मेधावी लड़के और 40 लड़कियों का चयन किया जाता है और उनका सारा खर्च अजमल फाउंडेशन उठाता है।
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