बाला साहेब जैसा कोई नहीं: महाराष्ट्र के थे भगवान, कश्मीर में भी था इनका जलवा

ये वही बाला साहेब है जो किसी राजनीतिक पद पर तो नहीं रहे लेकिन उनका रूतबा किसी बड़े राजनेता से कम नहीं। वे बॉलीवुड के साथ कश्मीरी पंडितों के भी संरक्षक थे।

Update: 2020-01-23 11:01 GMT

मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के साथ अपना सिक्का जमाए रखने वाली शिवसेना (ShivSena) के संस्थापक बाल ठाकरे (Bal Thackeray) का आज जन्मदिन है। उनको 'बाला साहेब' (Bala Saheb) नाम से भी जाना जाता है। ये वही बाला साहेब है जो किसी राजनीतिक पद पर तो नहीं रहे लेकिन उनका रूतबा किसी बड़े राजनेता से कम नहीं।उन्होंने लोगों की न केवल मदद की, बल्कि बॉलीवुड को भी संरक्षण दिया। इसके अलावा ठाकरे एकलौता ऐसा राजनीतिक नाम है, जिन्होंने साल 1990 में कश्मीर से खदेड़े गये कश्मीरी पंडितों की मदद की थी।

बॉलीवुड के 'सरकार' की रजामंदी से होती थी फिल्मे रिलीज:

बाला साहेब बॉलीवुड के सरकार थे। उनका सिनेमा जगत से गहरा नाता था। बता दें कि बॉलीवुड में कोई भी फिल्म रिलीज होने से पहले बाबा साहेब से हरी झंडी ली जाती थी। वहीं फिल्मों के पोस्टर में एक कोने में उनके नाम का जिक्र करते हुए लिखा जाता था, 'बाबा साहेब की रजामंदी के बाद फिल्म रिलीज।'

डॉन को ठाकरे का खौफ:

बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड डॉन का हस्तक्षेप उस दौर में बहुत ज्यादा था। वो बाल ठाकर ही थे, जिन्होंने बॉलीवुड के कई लोगों को अंदरवर्ल्ड के खौफ से बचाया था। दाउद इब्राहिम ने सिनेमा जगत से जुड़ी हस्तियों को धमकी दी थी, उसका खौफ इंडस्ट्री पर हावी था। कई प्रोजेक्ट बंद होने की कगार पर आ गये थे।

ऐसे में बाल ठाकरे ही वो अकेले शख्स थे जिन्होंने दाउद से खौफजदा लोगों को संरक्षण दिया। नामी गिरामी हस्तियाँ ठाकरे के मातोश्री निवास पर उनसे मदद मांगने जाया करती थीं। इनमे से एक नाम सलीम खान परिवार का भी है।

माना जाता था कि दाउद को पुलिस का खौफ नहीं था लेकिन बाल ठाकरे का डर जरुर था।

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कश्मीरी पंडितों के लिए हुए थे कड़े

इतना ही नहीं बाला साहेब वो अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने कश्मीरी पंडितों की मदद की थी। दरअसल, 19 जनवरी 1990 में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार के बाद वे कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे। लोग अपनी मातृभूमि, घर-संपत्ति छोड़ सड़क पर आ गये। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल उनके किये खड़ा नहीं हुआ। फिर उन्होंने बाल ठाकरे से मदद की उम्मीद की और कश्मीरी पडितों के समुदाय के प्रतिनिधि ठाकरे से मिले।

ठाकरे साहब ने भी उनके प्रतिनिधियों से पूछा कि किस तरह की मदद चाहिए। बेघर हुए समुदाय ने कहा कि महाराष्ट्र के संस्थानों में कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करवा दें, ताकि उनके बच्चों को अपना भविष्य बनाने में मदद मिल सके। बाला साहेब ने इसे तुरंत स्वीकार किया और कश्मीरी पंडितों को दिया वादा पूरा किया।

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राजनीति में कोई पद नहीं, फिर भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से कम नहीं था रूतबा:

उनके रुतबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भले ही वह किसी संवैधानिक पद या राजनीतिक पद पर नहीं रहे लेकिन साल 2012 में उनके निधन पर उन्हें राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गयी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या ऊंचे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के ही निधन पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है।

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