बंद रहेगा भोपाल: सरकार का बड़ा एलान, गैस त्रासदी पर लिया ये फैसला

शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी की याद में कल यानी गुरूवार को भोपाल के सभी सरकारी कार्यालयों को बंद रखने का एलान किया है।

Update: 2020-12-02 14:56 GMT

भोपाल. मध्य प्रदेश में 36 साल पहले ऐसा भयानक नजारा देखने को मिला था, जिससे न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया सहम गयी थी। मौतों और चीखों का ऐसा मंजर, जिसे याद कर लोगों की रूह आज तक कांपती है। हम बात कर रहे हैं भोपाल गैस त्रासदी की। 3 दिसंबर 1984 को हुए इस हादसे के 36 साल पूरे हो गए हैं। इस भयानक दिन की याद में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने बड़ा फैसला लिया है।

गैस त्रासदी की याद में भोपाल के सरकारी कार्यालय बंद

दरअसल, शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी की याद में कल यानी गुरूवार को भोपाल के सभी सरकारी कार्यालयों को बंद रखने का एलान किया है।

क्या है भोपाल गैस त्रासदी:

साल 1984 में 3 दिसंबर के दिन भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस का रिसाव होने के कारण हजारों लोगों की मौत हो गयी थी। इस हादसे से न केवल उस समय लोगों की मौत हुई, बल्कि अजन्मे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर संकट खड़ा हो गया। जो लोग इस हादसे में बच गए, उनकी हालत भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं रही। सैंकड़ों लोगों को फेफड़ो और गुर्दों की बीमारी हो गयी। लोग आज तक इस हादसे की कीमत चुका रहे हैं।

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बता दें कि कल ही के दिन एमआईसी गैस के रिसाव के चलते तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और 1.02 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे। हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन ने मुआवजे के तौर पर 47 करोड़ अमेरिकी डालर दिए थे।

मुआवजा अटका, जहरीला कचरा बरकरार:

हालंकि मुआवजे का मामला आज तक कोर्ट में फंसा हुआ है तो वहीं यूनियन कार्बाइड कारखाने में दफन कचरा आज तक न तो सरकार हटवा पाई और न सुप्रीम कोर्ट। साल 2012 में शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को जहरीला कचरा हटवाने के आदेश दिए थे लेकीन सरकार इसमें आज तक नाकाम है। कारखाने में 350 टन जहरीला कचरा दफन था, जिसमे से मात्र एक टन कचरा साल 2015 तक हटाया जा सका। इस कचरे को वैज्ञानिक तरिके से निष्पादित किये जाने के आदेश हैं। कचरे के कारण यूनियन कार्बाइड से आसपास की 42 से ज्यादा बस्तियों का भूजल जहरीला हो चुका है।

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वहीं मुआवजे की बात करें तो कम्पनी और केन्द्र सरकार के बीच समझौता हुआ था, जिसके बाद 705 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की ओर से साल 2010 में एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई, जिसमें 7728 करोड़ रुपये बतौर मुआवजा मांगा गया। इस पर भी फैसला आज तक अटका हुआ हुआ।

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