बर्थडे: मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से ‘भगिनी निवेदिता’ बनने की ये कहानी कर देगी भावुक

Update:2018-10-28 12:17 IST

लखनऊ: स्वामी विवेकानंद की सहयोगी और शिष्या भगिनी निवेदिता का आज जन्मदिन है। उनका मूल नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था। वह आइरिश मूल की थीं। उन्होंने महिला शिक्षा और आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी।

Newstrack.com आपको भगिनी निवेदिता के लाइफ से जुड़ी दस खास बातें बता रहा है। जो बहुत कम लोग ही जानते है तो आइए जानें सिस्टर निवेदिता के बारे में।

इस दस बिन्दुओं से जानें कौन है भगिनी निवेदिता:-

1. भगिनी निवेदिता 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड के काउंटी टाइरोन शहर में में पैदा हुई थी।

2. पिता का नाम सैम्युएल रिचमंड नोबल था। वह एक पादरी थे। भगिनी निवेदिता को मानव सेवा की सीख बचपन में अपने पिता से ही मिली थी।

3. जब वह 10 साल की थी तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। उनका नाना हैमिल्टन ने उनकी देखरेख की।

4. निवेदिता को बचपन से ही कला और संगीत से ज्यादा लगाव था। बाद में उन्होंने टीचर बनने का निर्णय लिया।

5. उन्होंने हैलीफैक्स कॉलेज से भौतिकी, कला, संगीत, साहित्य समेत कई विषयों की शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद टीचर बनने के लिए अप्लाई किया। 17 साल की उम्र में टीचर बनने का सपना पूरा हो गया।

6. उनकी लाइफ में 1895 में उस वक्त बड़ा बदलाव आया। जब पहली बार उनकी मुलाकात लंदन में स्वामी विवेकानन्द से हुई। वह स्वामी विवेकानंद से अपनी एक परिचित लेडी मार्गेसन के जरिए मिली थीं।

7-उस समय धर्म के मौलिक विचारों को लेकर उनके मन में कुछ सवाल थे। जिनका जवाब वे तलाश रही थी। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी जी से मिलने के बाद उनकी जिज्ञासा शांत हो पाई थी। विवेकानन्द से प्रभावित होकर भारत में जाने का फैसला किया।

8. स्वामी विवेकानंद ने निवेदिता को 25 मार्च 1898 को दीक्षा देकर शिष्य बनाया। विवेकानंद के कहने पर ही निवेदिता ने भगवान बुद्ध के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया।

9. ऐसा कहा जाता है कि दीक्षा के बाद स्वामी विवेकानंद ने ही उन्हें नया नाम निवेदिता दिया था। बाद में उनके नाम के आगे 'सिस्टर' का संस्कृत शब्द भगिनी भी जुड़ गया। भगिनी निवेदिता स्वामी विवेकानंद के साथ भारत आई। उसके बाद कलकत्ता (अब कोलकाता) में बस गईं। उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोला।

10. भगिनी निवेदिता दुर्गापूजा की छुट्टियों में दार्जीलिंग घूमने गईं। वहीं उनकी सेहत खराब हो गई। 13 अक्टूबर 1911 को 44 साल की उम्र में उनका असामयिक निधन हो गया।

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