नई दिल्ली: केंद्र सरकार व राज्य सरकार एक ओर जहां अंतरजातीय, अंतरसंप्रदायी विवाह को बढ़ावा दे रही है वहीं उसके दोगुने जोर से इन्हें रोकने की कोशिशें हो रही हैं। इन्हीं खाप पंचायतों के नादिरशाही वजूद के देश की सबसे बढ़ी अदालत भी खिलाफ है। कई बार निर्देश देने के बावजूद अभी तक सरकारों ने इस बारे में कुछ नहीं किया है। इसके चलते अदालत ने इस बार सरकार को भी इस मामले में नोटिस देकर जवाब मांगा है। साथ ही बहुत ही कड़े लहजे में दोहराया है कि दो बालिगों की शादी में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है न तो उनके अभिभावक, न पंचायत और न ही समाज। उच्चतम न्यायालय का खाप पंचायतों पर कठोर रुख सामने आया है। अदालत ने कहा कि यदि एक बालिग आदमी और औरत शादी करते हैं तो कोई खाप या पंचायत सवाल नहीं कर सकती। यह एक बड़ा फैसला है। फैसले से ये संकेत मिलते हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत खाप पंचायतों पर लगाम लगाने के दिशा-निर्देशों दे सकती है।
इस फैसले से कई बड़ी चीजें सामने आयी हैं पहली खाप के अधिकार पर सवाल कि स्वयंभू खाप पंचायत कानून की संरक्षक कैसे और कब बन गई जबकि यह स्पष्ट रूप से यह फैसला किया गया है कि दो वयस्कों के विवाह में माता-पिता और राज्य सहित किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होगा। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी युगलों पर खाप पंचायत या उनके सहयोगियों के किसी भी हमले को अवैध बताया था। खंडपीठ ने कहा है कि अगर कोई बालिग युवक और युवती शादी करते हैं तो कोई खाप पंचायत या समाज उनसे सवाल नहीं कर सकता है।
शक्ति वाहिनी नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने यह याचिका दायर की है जिस पर सबसे बड़ी अदालत सुनवाई कर रही है। संगठन ने खाप पंचायतों के आदेशों की कानूनी वैधता पर सवाल उठाये हैं। एनजीओ ने 2010 में उच्चतम न्यायालय में पहली याचिका दायर की थी जिस पर हत्याओं और अन्य अपराधों को होने से रोकने और नियंत्रित करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए थे। अदालत ने केंद्र सरकार से प्रेम विवाह करने वाले नवदंपत्तियों की सुरक्षा के संबंध में प्रभावी सुझाव मांगने के साथ पूछा है कि ये स्वयंभू अदालतें कैसे फिर से सक्रिय हो गयीं। अदालत ने जानना चाहा है कि कौन खाप या किसी अन्य को कानून के अभिभावक के रूप में नियुक्त करता है? चीफ जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यह अदालतों के लिए पूरी तरह से तय है कि क्या एक कानून में है या नहीं है। खाप पंचायत यह तय नहीं कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने दोहराया कि जहां आपसी सहमति से दो वयस्क वैवाहिक संबंधों के लिए राजी होते हैं तो कोई भी व्यक्तिगत अधिकार, समूह के अधिकार या सामूहिक अधिकार उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते या जोडे को परेशान नहीं कर सकते।
अदालत खाप पंचायत की ओर से पेश वकील की इस बात से सहमत नहीं थी कि खाप पंचायतों ने अंतर जातीय और अंतर धर्म विवाहों को प्रोत्साहित किया है। हरियाणा में विषम लिंग अनुपात की वजह से 25 लाख स्थानीय लडक़ों ने अन्य राज्यों में शादी की है। खाप पंचायत को समान गोत्र में शादी करने से ऐतराज है। वकील ने कहा कि वह हुड्डा हैं और यह एक पुरानी परंपरा है कि एक हुड्डा दूसरे हुड्डा से शादी नहीं करेगा क्योंकि वो एक सामान्य पूर्वज से आए हुए माने गए हैं और इसलिए भाई बहन हैं।
यहां तक कि 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 में सपिंड में विवाह पर पाबंदी है। इसमें पिता के पक्ष से 5 डिग्री संबंधों के भीतर गणना है और माता के पक्ष में 3 डिग्री की गणना की जाती है। वैज्ञानिक रूप से यह भी साबित हो गया है कि ऐसे विवाहों में बच्चों की आनुवांशिकी पर एक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने इससे इनकार किया। और कहा कि हम खाप पंचायतों से इत्तेफाक नहीं रखते। कोई भी, ना ही पंचायत, ना समाज, माता-पिता या किसी भी पार्टी के अन्य रिश्तेदार शादी में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
खाप पंचायतों का प्रतिनिधित्व करते हुए एक अन्य वकील ने एमिक्स क्यूरी राजू रामचंद्रन द्वारा दिए गए सुझावों के बारे में चिंता व्यक्त की तो वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि 242 वें कानून आयोग की रिपोर्ट में खाप पंचायत का शब्द का इस्तेमाल किया गया है। अदालत किसी तटस्थ नाम का उपयोग कर सकती है, जैसे विवाह निषेध सभा। इसके अलावा, 1955 के अधिनियम में केवल सपिंड विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया है जो कि सगोत्र विवाह से अलग है। याचिका के दायरे का विस्तार करने की बात को खारिज करते हुए बेंच ने सम्मान के लिए हत्याओं से निपटने के लिए अधिवक्ताओं से पुलिस समितियों के गठन पर सुझाव मांगा। बेंच ने एएसजी पिंकी आनंद को निर्देश दिया कि वह एमिक्स क्यूरी के सुझावों पर राज्य के जवाब को शीघ्रता से दाखिल करें क्योंकि ये एक गंभीर मुद्दा है। मामले की अगली सुनवाई 16 फरवरी को होगी।