Chandra Shekhar Azad Jayanti: 'चंद्रशेखर तिवारी' ऐसे बने थे 'आजाद', 15 साल की उम्र में जज के उड़ा दिए थे होश
Chandra Shekhar Azad Jayanti: चंद्रशेखर आजाद 15 साल की उम्र में ही गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे, लेकिन जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन बंद किया तो आजाद निराश हो गए थे।
Chandra Shekhar Azad Jayanti: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक नामक गांव में हुआ था। उनके बचपन का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन 15 साल की उम्र में उनके साथ कुछ ऐसा घटा, जिसके बाद 'आजाद' उपनाम उनकी पहचान बन गया।
'मैं आजाद हूं'
चंद्रशेखर आजाद के बारे में कहा जाता है कि वह आजादी के लिए इतने दिवाने थे कि वह 15 साल की उम्र में ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये थे। इस दौरान आजाद को गिरफ्तार भी किया गया था। उसके बाद जब उनको कोर्ट में पेश किया गया। जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होने बताया कि उनका नाम आजाद है। पिता का नाम स्वतंत्रता है और घर का पता जेल है। इसके बाद जज ने आजाद को 15 कोड़े के सजा सुनायी थी।
आजाद का जन्म कहां हुआ?
चंद्र शेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। आजाद ने बचपन से ही आदिवासियों के बीच रहकर धनुषबाण चलाना सीख लिया था और निशानेबाजी में निपुण हो गये थे। उनका निशाना काफी पक्का था। इसी हुनर के कारण वह क्रांतिकारियों के बीच में प्रसिद्ध भी रहते थे। कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद ओरछा के पास जंगल में लोगों को निशानेबाजी सिखाते थे और पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी का नाम रखकर अपने कामों को अंजाम दिया करते थे।
किससे प्रभावित हुए चंद्रशेखर आजाद
चंद्रशेखर आजाद 15 साल की उम्र में ही गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे, लेकिन जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन बंद किया तो आजाद निराश हो गए थे। इसके बाद वह युवा क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता से मिले और गुप्ता ने आजाद की मुलाकात रामप्रसाद बिस्मिल से करवाई। इसके बाद आजाद, बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल हो गए और क्रांतिकारी योजनाएं बनाने लगे। आजाद का एक प्रमुख काम क्रांतिकारी कार्यों के लिए धन जुटाना भी था और वह चंदा जमा करने के काम में काफी माहिर थे।
चंद्रशेखर आजाद समेत कई क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को काकोरी में चलती ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाने को लूटने की प्लानिंग बनायी थी। काकोरी में ट्रेन में हुई लूट के बाद ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी थी। अग्रेजों ने इस घटना में शामिल क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। लेकिन, आजाद फिर भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आये थे। जब सांडर्स को मारने की प्लानिंग की गई तब भी चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह का साथ दिया और मरते दम तक अंग्रेज उन्हे गिरफ्तार नहीं कर सके।
आजाद ने खुद को मारी थी गोली
चंद्रशेखर आजाद की 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों के साथ मुठभेड़ हो गयी थी। इस दौरान वह अंग्रेजों से लड़ते रहे खूब गोलियां चलीं। आजाद डटे रहे, लेकिन उन्हें 5 गोलियां लगीं और वे बुरी तरह घायल हो गए। अपनी प्यारी कोल्ट पिस्टल में बची आखिरी गोली से उन्होंने खुद को शहीद कर लिया, लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। कहा जाता है कि आजाद अक्सर गुनगुनाया करते थे कि दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद हैं, आजाद ही मरेंगे। अंत में यही सच भी हुआ।