Chaudhary Charan Singh: किसानों के सच्चे मसीहा थे चरण सिंह, सादगी की कायम की मिसाल, पीएम के रूप में नहीं किया संसद का सामना
Chaudhary Charan Singh: जिन हस्तियों को आज भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है, उनमें चौधरी चरण सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चरण सिंह गांव में रहने वालों,गरीबों और किसानों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे।
Chaudhary Charan Singh: केंद्र सरकार ने देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव के साथ प्रसिद्ध वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी है। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से सामाजिक न्याय के पुरोधा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया था। आडवाणी को छोड़कर बाकी चारों हस्तियों को मरणोपरांत देश का यह सर्वोच्च सम्मान दिया जाएगा।
जिन हस्तियों को आज भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है, उनमें चौधरी चरण सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चरण सिंह गांव में रहने वालों,गरीबों और किसानों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। उनका जन्म किसान परिवार में हुआ था और उन्होंने ताउम्र किसानों के हक की लड़ाई लड़ी। देश के दिग्गज किसान और जाट नेता माने जाने वाले चौधरी चरण सिंह को देश की सियासत में आज भी उनकी सादगी के लिए याद किया जाता है। उन्होंने लंबे सियासी संघर्ष के बाद प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया था। हालांकि इस पद पर वे ज्यादा समय तक नहीं रह पाए।
इमरजेंसी के खिलाफ डटकर खड़े रहे
प्रधानमंत्री मोदी ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने की जानकारी देते हुए लिखा कि हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की। वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे। हमारे किसान भाई-बहनों के लिए उनका समर्पण भाव और इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र के लिए उनकी प्रतिबद्धता पूरे देश को प्रेरित करने वाली है।
मेरठ में हुआ था चौधरी साहब का जन्म
चौधरी चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित चरण ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
1937 में बने पहली बार विधायक
पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह साल 1937 में यूपी की छपरौली विधानसभा से चुने गए थे। यही क्रम 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी चलता ही रहा। 1946 में वे पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने। उन्होंने राजस्व, चिकित्सा समेत कई विभागों में काम किया। जून 1951 में उन्हें राज्य में कैबिनेट मंत्री बनाया गया और न्याय व सूचना विभाग दिया गया।
1952 में चौधरी चरण सिंह ने संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में राजस्व और कृषि मंत्री का पद संभाला। 1959 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। इस समय उनके पास राजस्व व परिवहन विभाग था। 1960 में चौधरी चरण सिंह ने सीबी गुप्ता के कार्यकाल ने गृह और कृषि मंत्रालय भी संभाला। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।
पीएम के रूप में नहीं रही लंबी पारी
कांग्रेस पार्टी में आतंरिक फूट के बाद वे फरवरी 1970 में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 28 जुलाई,1979 में कांग्रेस (आई) के समर्थन से देश के 5वें प्रधानमंत्री बने।
चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बनने में तो कामयाब रहे मगर पीएम के रूप में उनकी पारी लंबी नहीं चल सकी। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने थे मगर इंदिरा गांधी के समर्थन वापस ले लेने के कारण उन्हें लोकसभा का सामना किए बिना ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा था। इस प्रकार वे ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने पीएम रहते हुए कभी संसद का सामना नहीं किया।
1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुआ जिसमें इंदिरा गांधी बहुमत हासिल करते हुए सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही थीं। इसके बाद चौधरी चरण सिंह सियासत की बुलंदी पर पहुंचने में कामयाब नहीं हो सके। बाद में 19 मई 1987 को चौधरी साहब का निधन हो गया। सादगी पसंद चौधरी साहब को आज भी याद किया जाता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन किसानों के लिए समर्पित कर दिया।