कोरोना इफेक्ट: बीमारी की वजह, इलाज, दवा और टीके पर 24 घंटे चल रही रिसर्च

रोजाना नई नई बातें निकल कर आ रही हैं। दुनिया में 44 टीमें टीके पर काम कर रही हैं। अमेरिका की मॉडर्ना और चीन की कैनसिनो का टीका क्लीनिकल ट्रायल स्टेज पर है। चीन में सरकार द्वारा फंडिंग प्राप्त रिसर्च प्रोजेक्ट ने टीका बना भी लिया है। सब ठीक रहा तो कोरोना का टीका अगले वर्ष के शुरू में आ सकता है।

Update:2020-03-29 14:43 IST

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरा विश्व परेशान है। चीन के बाद इटली, स्पेन और अमेरिका इस खतरनाक वायरस के सबसे बड़े शिकार हो चुके हैं। अमेरिका में तो स्थिति बहुत विस्फोटक हो गई है। इन हालातों में दुनिया भर में इस खतरनाक वायरस की दवा और वैक्सीन की खोज में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।

रोजाना नई नई बातें निकल कर आ रही हैं। दुनिया में 44 टीमें टीके पर काम कर रही हैं। अमेरिका की मॉडर्ना और चीन की कैनसिनो का टीका क्लीनिकल ट्रायल स्टेज पर है। चीन में सरकार द्वारा फंडिंग प्राप्त रिसर्च प्रोजेक्ट ने टीका बना भी लिया है। सब ठीक रहा तो कोरोना का टीका अगले वर्ष के शुरू में आ सकता है।

इंग्लैंड में टीके का परीक्षण

ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी में कोरोना वायरस के टीके पर परीक्षण का काम शुरू हो गया है। शोधकर्ताओं ने 18 से 55 वर्ष के 510 स्वस्थ वालंटियर्स की स्क्रीनिंग का काम शुरू किया है जिसके बाद उन पर परीक्षण किया जाएगा। वालंटियर्स पर परीक्षण को यूनाइटेड किंगडम सरकार ने मंजूरी दे दी है। ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी का कहना है कि परीक्षण के लिए टीके का निर्माण कर

दिया गया है।

भारत में आईसीएमआर कर रहा काम

भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोरोना वायरस की दवा और टीके पर काम कर रहा है। रिसर्च में सफलता भी मिली है और मानव कोशिका के 67 प्रोटीन का पता चल गया जिनमें कोरोना वायरस प्रवेश कर जाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द सफलता मिल जाएगी।

बेंगलुरु के एक ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ विशाल राव ने तो कोरोना की दवाई बनाने की दिशा में सफलता हासिल करने का दावा किया है। उनका कहना है की इस दवा के इस्तेमाल से बीमार व्यक्ति का इम्यून सिस्टम फिर से सही तरीके से काम करना शुरू कर देता है, जिससे कोरोना वायरस इंसान के शरीर में प्रभावी नहीं रह पाता। उन्होंने कहा है कि ये दवा अपनी शुरुआती स्थिति में है।

डॉ. विशाल राव के अनुसार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए साइटोकाइनिज की सहायता से दवा बनाई जा सकती है, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर कर सकती है। कोविड 19 वायरस से संक्रमित व्यक्ति की कोशिकाओं से इंटरफेरॉन नामक तत्व नहीं निकल पाते हैं, इसके चलते उनके शरीर का इम्यून सिस्टम खराब हो जाता है।

थाइलैंड के डॉक्टर ने किया इलाज

थाईलैंड के डॉक्टर क्रिएनसाक अतिपॉर्नवानिच ने दावा किया है कि उन्होंने अपनी दवा से कोरोना से संक्रमित 71 साल की बुजुर्ग महिला को ठीक कर दिया। उन्होंने बताया कि ये दवा एंटी फ्लू ड्रग ओसेल्टामिविर और रिटोनाविर व लोपिनाविर को मिलाकर बनाई गई है। अभी इस दवाई पर वहां की सरकार और परीक्षण कर रही है।

चीन और फ्रांस में हो रहा मलेरिया की दवा पर शोध

कोरोना के इलाज के लिए फ्रांस में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) और क्लोरोक्विन (सीक्यू) कंपाउंड पर रिसर्च हो रही है। क्विनीन या कुनैन सिनकोना नामक पेड़ों से आने वाला एक पदार्थ है जिसका सैकड़ों सालों से मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल होता आया है। फ्रांस और चीन में शुरूआती अध्ययनों में कोविड-19 के खिलाफ इन दवाओं से काफी उम्मीद बंधी है। यही

वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हड़बड़ी में इन दवाओं को ‘भगवान की तरफ से एक तोहफा’ बता दिया था। वैसे इन दोनों दवाओं से उम्मीद बंधी है और यही वजह है कि भारत ने इन दवाओं के निर्यात पर रोक लगा दी है।

वायरस पर तापमान का असर

कोरोना वायरस पर जारी रिसर्च में पता चला है कि ये वायरस ठंडे और शुष्क वातावरण में तेजी से फैलता है और मौसम बदलने के साथ इसका प्रकोप बढ़ता–घटता है। अमेरिका के मेरीलैंड इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरोलोजी और चीन की बीजिंग

यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक कोरोना पर रिसर्च कर रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि 5 से 11 डिग्री तापमान और कम यूमीडिटी में ये वायरस ज्यादा फैलता है।

अमेरिका में टीके के परीक्षण का अच्छा परिणाम

अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना दुनिया की पहली कंपनी थी, जिसने बीते 16 मार्च को टीके का फेज-1 क्लीनिकल ट्रायल कर लिया। कंपनी के अमेरिका के नॉरवुड स्थित मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट में वैज्ञानिक दिन-रात काम कर रहे हैं। कंपनी के अध्यक्ष स्टीफन होज कहते हैं कि टेस्टिंग का पहला चरण सफल रहता है तो कंपनी बड़े स्तर पर इसे बनाने में सक्षम है। कंपनी 45 लोगों पर टीके का अध्ययन कर रही है। इनके इम्यून सिस्टम ने अभी तक अच्छा रेस्पॉन्स किया है। इसके अलावा कोरोना के टीके के लिए सनोफी, अमेरिका व बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी मिलकर काम कर रहे हैं।

जर्मनी की कंपनी टेस्ट किट बनाने में जुटी

जर्मनी की दिग्गज कंपनी बॉश की मेडिकल टीम की ओर से कंपनी ने खबर दी है कि उसने वायरस को टेस्ट करने का एक तेज तरीका निकाल लिया है। इस तकनीक की मदद से सैंपल को कहीं दूर किसी लैब में भेजे बिना ढाई घंटे के अंदर टेस्ट किया जा सकेगा। इस टेस्ट से पता चल जाएगा कि व्यक्ति वायरस से संक्रमित है या नहीं।

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