नेशनल हेराल्ड केस: सोनिया-राहुल को राहत, सुब्रमण्यन स्वामी को नहीं मिलेंगे मुकदमे के डाॅक्यूमेंट्स

नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी और वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी को सोमवार (26 दिसंबर) को राहत मिली है। पटियाला हाउस कोर्ट ने बीजेपी के सीनियर लीडर सुब्रमण्यन स्वामी की इस केस से जुड़े डाॅक्यूमेंट्स दिए जाने की याचिका खारिज कर दी है।

Update: 2016-12-27 01:51 GMT

नई दिल्ली : नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी और वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी को सोमवार (26 दिसंबर) को राहत मिली है। पटियाला हाउस कोर्ट ने बीजेपी के सीनियर लीडर सुब्रमण्यन स्वामी की इस केस से जुड़े डाॅक्यूमेंट्स दिए जाने की याचिका खारिज कर दी है। अब स्वामी को कांग्रेस, एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की बैलेंस सीट और इनकम टैक्स के डाॅक्यूमेंट्स नहीं मिलेंगे। इस मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी को होगी।

साल 2012 में दर्ज हुआ था केस

-सुब्रमण्यन स्वामी द्वारा साल 1938 में पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित नेशनल हेराल्ड ग्रुप की संपत्तियों का अवैध तरीके से इस्तेमाल करने के लिए सोनिया और राहुल गांधी पर आरोप लगाते हुए साल 2012 में मुकदमा दायर किया था।

-इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने 26 जून, 2014 को सोनिया, राहुल के अलावा कांग्रेस नेता मोतीलाल बोरा, सैम पित्रौदा और सुमन दुबे को हाजिर होने का ऑर्डर दिया था।

-इस मामले में सोनिया और राहुल दोनों कोर्ट में हाजिर हुए थे।

-फिलहाल वह अभी जमानत पर हैं।

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क्या है सुब्रमण्यन स्वामी का आरोप ?

-सुब्रमण्यन स्वामी का आरोप है कि कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड के जरिए पॉलिटिकल फंड का गलत इस्तेमाल किया।

-कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड की देशभर में मौजूद 2,000 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी हथियाने के मकसद से ऐसा किया।

कई नेताओं के नाम आए थे सामने

-इस मामले में सोनिया और राहुल के अलावा कांग्रेस के कई अन्य नेताओं के नाम भी सामने आए थे।

-इससे पहले कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड न्यूज पेपर की प्रकाशक कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) और कांग्रेस के सीलबंद डाक्यूमेंट्स को सरकारी विभागों को वापस भेजने का आदेश दिया था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पलटा पटियाला हाउस कोर्ट का फैसले

-दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2012 में दिए गए अपने फैसले में पटियाला हाउस कोर्ट के फैसले को पलट दिया था।

-हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि क्रिमिनल प्रोसिजर एक्ट की धारा 91 के तहत कोई भी ऑर्डर देने से पहले आरोपी का पक्ष सुनना जरूरी है।

-लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।

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