अवसाद की समस्या पर फिर उठे सवाल: अपनों से ही असुरक्षित सीआरपीएफ

Update: 2017-12-15 08:12 GMT

राम शिरोमणि शुक्ल

रायपुर: राज्य के नक्सल प्रभावित बीजापुर में सीआरपीएफ के एक जवान द्वारा अपने ही चार साथियों की हत्या से सुरक्षा बलों के ही असुरक्षित होते जाने की बातें आम होती जा रही हैं। ताजा मामला अपने ही साथियों की हत्या करने का है। इसके अलावा आत्महत्या के मामले भी अक्सर सामने आते रहते हैं। जब भी कोई इस तरह की वारदात सामने आती है तो यह कहा जाता है कि सुरक्षाकर्मी अथवा जवान अवसाद का शिकार था। इसके पीछे बताए जाने वाले कारणों में छुट्टियां न मिल पाना, असीमित घंटों तक काम, बीमारियां, अफसरों से झगड़े और सुविधाओं का अभाव आदि होते हैं।

उल्लेखनीय है कि करीब तीन लाख जवानों वाला सीआरपीएफ देश का विशालतम केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है। नक्सल विरोधी अभियान चलाने वाला यह प्रमुख बल देश की आंतरिक सुरक्षा के मोर्च पर विभिन्न दायित्य निभाता है। इस तरह की वारदातें न होने देने अथवा इनमें कमी लाने को लेकर बहुत सारी बातें की जाती हैं, लेकिन उनका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं दिखाई देता। वैसे यह समस्या केवल छत्तीसगढ़ की नहीं है।

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पूरे देश में सुरक्षाबलों के जवानों के साथ इस तरह की वारदातों की आए दिन खबरें आती रहती हैं। उसके बाद उन्हें भुला दिया जाता है। न तो सुरक्षा बलों के जवानों की आत्महत्या पर रोक लग पा रही है और न ऐसी वारदातों को रोक पाने में कामयाबी मिल पा रही है जिनमें वे अपने ही साथियों की हत्या कर देते हैं। छत्तीसगढ़ की ताजा वारदात ने एक बार फिर इस सवाल को गंभीर बना दिया है कि क्या आने वाले समय में इस समस्या पर काबू पाने के लिए कोई ठोस प्रयास किया जाएगा अथवा इस तरह की किसी अन्य वारदात का इंतजार किया जाएगा?

गुस्से में चार साथियों को भून डाला

ताजा वारदात बीजापुर जिले की है। पुलिस के मुताबिक सीआरपीएफ जवान ने अपनी एके-47 राइफल से अपने साथियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिससे चार की मौत हो गई। इनमें दो सब इंस्पेक्टर, एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल शामिल है। गंभीर रूप से घायल एक जवान को उपचार के लिए रायपुर भेजा गया। फायरिंग करने वाले जवान का नाम सनत कुमार बताया गया। इस बारे में पुलिस का कहना है कि वह अपनी ड्यूटी को लेकर तनाव में रहता था।

इसी तनाव में उसका अपने साथियों से किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ। इसी दौरान वह इतने गुस्से में आ गया कि उसने फायरिंग कर दी जिससे चार जवानों की अपनी जान गंवानी पड़ी। अचानक हुई इस वारदात से जवानों में दहशत का माहौल व्याप्त हो गया। बाद में आरोपी जवान को गिरफ्तार कर लिया गया। सनत कुमार बीजापुर के बांसागुड़ा शिविर में सीआरपीएफ की 168वीं बटालियन का जवान है। पुलिस के अनुसार घटना की जांच की जा रही है।

चर्चा में हैं कई तरह की बातें

पुलिस की जांच के निष्कर्ष के बाद ही यह साफ हो सकेगा कि आखिर जवान ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया। इस बीच तरह-तरह की बातें भी की जा रही हैं। बताया जाता है कि विवाद ड्यूटी को लेकर था जो बीते एक-दो महीने से चला आ रहा था, लेकिन कुछ अलग कहानियां भी चर्चा में हैं। यह भी कहा जा रहा है कि वारदात को अंजाम किसी आवेश में नहीं बल्कि सुनियोजित योजना के तहत दिया गया। ऐसे आरोप लग रहे हैं कि आरोपी जवान ने पहले अपने साथियों के हथियार चुराए और फिर फायरिंग की।

यह भी कहा जा रहा है कि हत्याओं के बाद उसने सहायक कमांडेंट से कहा था कि हट जाओ नहीं तो गोली से उड़ा दूंगा। इस तरह की जानकारियां भी सामने आ रही हैं कि आरोपी जवान ने आरोप लगाया है कि उसे फंसाया जा रहा है। उसने गोलियां नहीं चलाईं। वारदात के समय वह बैरक में मौजूद था। उसने यह भी आरोप लगाया है कि अधिकारी अपनी करतूतों को छिपाने के लिए उसे फंसा रहे हैं। बहरहाल सच्चाई जांच के बाद ही सामने आ पाएगी।

पहले भी हो चुकी हैं कई घटनाएं

यह अपने किस्म की कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसी वारदातें हो चुकी हैं। अब से करीब पांच साल पहले 25 दिसंबर 2012 को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर में तैनात सीआरपीएफ जवान दीप कुमार ने राइफल से फायरिंग कर चार साथियों की हत्या कर दी थी। बाद में उसने बैरक में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसके अगले साल 12 मई 2013 को जगदलपुर संभाग मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर बड़े मारेंगा के दूरदर्शन केंद्र में तैनात सीआरपीएफ के जवानों के बीच खूनी संघर्ष हुआ जिसमें तीन जवानों की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि इस वारदात के पीछे भोजन को लेकर विवाद था।

चिंता का विषय बनीं आत्महत्या की घटनाएं

इसके अलावा सीआरपीएफ जवानों द्वारा आत्महत्या की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं। बीते फरवरी माह में राज्य के बस्तर जिले में सीआरपीएफ के एक जवान ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। जगदलपुर जिला मुख्यालय स्थित सीआरपीएफ की 204 कोबरा बटालियन के मुख्यालय में हवलदार बिजु सीआर (43) ने अपनी सॢवस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली थी। बिजु केरल का रहने वाला था। उसके आत्महत्या के कारणों का पता नहीं चल पाया था। दिसंबर 2016 में सुकमा जिले में 219वीं बटालियन में तैनात सीआरपीएफ जवान रोशन एक्का ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

रांची जिले का निवासी रोशन दो दिन पहले ही छुट्टी से वापस आया था। मई 2017 में भी सुकमा में सीआरपीएफ के एक जवान ने आत्महत्या कर ली थी। सुकमा जिले के दोरनापाल थाना क्षेत्र के अंतर्गत पेंटा गांव स्थित सीआरपीएफ के 150वीं बटालियन के शिविर में आरक्षक दिवाकर राव (37) ने अपनी सॢवस रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली थी। दिवाकर आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का निवासी था।

इसके अलावा, 7 जून 2016 को दंतेवाड़ा जिले के अरनपुर थाना क्षेत्र के कोंदापारा मे तैनात सीआरपीएफ 231 बटालियन के डॉग हैंडलर जवान सतीश ने आत्महत्या कर ली थी। जून 2016 में बीजापुर में पदस्थ 168 बटालियन के हेड कांस्टेबल पवित्र यादव ने एके-47 से खुद के सीने में गोली मार ली थी। जुलाई 2016 में सुकमा के मरईगुड़ा में तैनात जवान तेजवीर सिंह ने सॢवस रिवाल्वर से आत्महत्या कर ली थी। इसी तरह दंतेवाड़ा के गीदम थाना क्षेत्र के भैंसाजोड़ी में वायरलेस आपरेटर के तौर पर पदस्थ सीआरपीएफ 231 बटालियन के जवान सुनील कुमार ने साथी जवान तेजपाल सिंह की राइफल लेकर उसे गले में फंसाया और फिर गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

सीआरपीएफ जवानों द्वारा हत्या और आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं बताती हैं कि सुरक्षाबल में जवानों की सुरक्षा खुद में एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। सुरक्षाबल ही खुद को असुरक्षित मानने की स्थिति में पहुंच चुका है। यह स्थिति न केवल सुरक्षा बलों के लिए बल्कि सरकार के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है। केवल कारण गिनाना भर पर्याप्त नहीं होगा। हत्या और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की जरुरत महसूस की जा रही है।

अवसाद का शिकार हो रहे जवान

सीआरपीएफ जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने अथवा साथी जवानों की हत्या के पीछे कारण चाहे जो बताए जाते रहे हों, लेकिन इनकी बढ़ती संख्या गंभीर चिंता का विषय जरूर बनती जा रही हैं। नक्सल प्रभावित बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव और सुकमा में जवानों के काम की परिस्थितियां बेहद विपरीत हैं जिससे जवान अवसाद के शिकार हो जाया करते हैं और इस तरह की वारदातों को अंजाम देते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक इसी साल अक्टूबर तक आत्महत्या करने वाले जवानों की तादाद 36 हो चुकी थी। अब तक इतनी बड़ी संख्या में कभी भी जवानों ने आत्महत्या नहीं की है। पिछले साल कुल 12 जवानों ने आत्महत्या की थी। इससे पहले 2015 में 06, 2014 में 07 और 2013 में 05 जवानों ने आत्महत्या की।

नक्सल हिंसा से ज्यादा जवान दूसरे कारणों से मरे

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री की ओर से राज्यसभा में दी गई एक जानकारी के मुताबिक विगत दो वर्षों में नक्सल हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न अभियानों और घात लगाकर किए गए हमलों की तुलना में शहीद होने वाले सीआरपीएफ के जवानों से 24 गुना अधिक जवानों की मौत हृदयाघात, अवसाद और आत्महत्या करने की वजह से हुई है। छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के तीन वाम उग्रवाद प्रभावित राज्यों में वर्ष 2015 में सीआरपीएफ के पांच जवान, 2016 में 31 जवानों की जान गई।

वर्ष 2016 में सीआरपीएफ के 92 जवान हृदयाघात के कारण, पांच मलेरिया और डेंगू के कारण, अवसाद और आत्महत्या करने की वजह से 26 जवान और असैन्य कारणों से 353 जवानों की मौत हुई। 2015 में बल के 82 जवानों की मौत हृदयाघात,मलेरिया और डेंगू के कारण, 13 जवानों की अवसाद और आत्महत्या करने की वजह से 35 जवानों तथा अन्य कारणों से 277 जवानों की मौत हुई।

पांच वर्षों में तनाव ने ली सैकड़ों जवानों की जान

सीआरपीएफ के जवान विभिन्न मोर्चों पर लड़ते हैं और आंतरिक सुरक्षा की महती जिम्मेदारी निभाते हैं, लेकिन खुद को सुरक्षित नहीं रख पाते। सन 2015 तक के आंकड़े बताते हैं कि पांच साल में नक्सली इलाकों में सीआरपीएफ के 870 जवान तनाव के कारण जान गंवा चुके हैं। इसकी तुलना में नक्सलियों द्वारा मारे गए सीआरपीएफ जवानों की संख्या 323 बताई जाती है। जनवरी 2009 से दिसंबर 2013 तक नक्सली इलाकों में तैनात सीआरपीएफ के 642 जवानों की हृदयाघात से मृत्यु हुई वहीं 228 ने अवसाद के कारण आत्महत्या की। इसी अवधि में मलेरिया से 108 जवानों की जान गई।

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