नई दिल्ली: रोशनी का पर्व दिवाली देश भर में 7 नवंबर को मनाया जाएगा। इस त्यौहार को लेकर न केवल देश बल्कि विदेशों में भी धूम मची हुई है। लोग एक हफ्ते पहले से ही इसकी तैयारियों में जुट गये है। जहां पूरा देश दिवाली के दिन रोशनी से जगमग हो उठेगा। लोग खुशियां मना रहे होंगे।
वहीं हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा गांव भी है जहां इस दिन न तो कोई स्पेशल लाइटिंग होगी न ही कोई धूम धड़ाका ही होगा। यह दिन लोगों के लिए आम दिनों की तरह होगा। तो आइये जानते है कौन है वो गांव और दीवाली न मनाने के पीछे क्या खास वजह है।
सम्मू गांव में सदियों से नहीं मनाई जाती है दिवाली
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सम्मू गांव में दिवाली नहीं मनाई जाती है। यह गांव हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूरी पर स्थित है। इस बार भी सम्मू गांव में दीवाली को लेकर कोई रौनक नहीं देखी जा रही है। लोग इसे सामान्य दिनों की तरह ही ले रहे है। यहां ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है। यहां कई साल से दीवाली मनाना तो दूर की बात, इस दिन घर पर पकवान तक नहीं बनाए जाते है।
दिवाली न मनाने के पीछे जुड़ी है ये मान्यता
इसके पीछे श्राप को एक बड़ी वजह माना गया है। लोगों का मानना है कि गांव को श्राप है, इसलिए यहां दीवाली के दिन कोई रौनक देखने को नहीं मिलती है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति इसे नजरअंदाज करता है तो गांव पर आपदा और अकाल मृत्यु का खतरा मडराने लगता है।
इस दिन घरों से बाहर निकलने को माना जाता है अशुभ
दीवाली के दिन दीप तो जलाए जाते है, लेकिन अगर किसी परिवार ने गलती से भी पटाखे जलाने के साथ-साथ घर पर पकवान बनाए तो फिर गांव में आपदा आना तय है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने इस शाप से मुक्ति पाने की कोशिश नहीं की हो। कई बार कोशिश की गई, लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई।
लोगों पर श्राप का इतना खौफ है कि दीपावली को गांव के लोग घरों से बाहर भी निकलना मुनासिब नहीं समझते।
ये है दीवाली न मनाने के पीछे की पूरी कहानी
दीपावली न मनाने के पीछे यहां के लोग एक कहानी सुनाते है। कहानी के अनुसार दिवाली के ही दिन गांव की ही एक महिला अपने पति के साथ सति हो गई थी। महिला दीपावली मनाने के लिए मायके जाने को निकली थी। उसके पति राजा के दरबार में सैनिक था। लेकिन जैसे ही महिला गांव से कुछ दूर पहुंची तो उसे पता चला कि उसके पति की मौत हो गई है।
पति के शव को ग्रामीण ला रहे थे। महिला गर्भवत्ती थी। कहते है कि महिला को यह सदमा बर्दाश्त नहीं हुआ और वह अपने पति के साथ ही सती हो गई। साथ ही जाते-जाते वह सारे गांव को यह श्राप देकर चली गई कि इस गांव के लोग कभी दीपावली का त्यौहार नहीं मना पाएगे। उस दिन से लेकर आज तक इस गांव में दीवाली नहीं मनाई है। लोग इस दिन केवल सत्ती की मूर्ति की पूजा करते है।
हवन कराए पर नहीं मिली श्राप से मुक्ति
गांव के बुज्रुगों का कहना है कि सैंकड़ों साल से गांव में दीवाली नहीं मनाई जाती है। अगर इस दिन कोई व्यक्ति दीवाली मनाने की कोशिश करता हैं तो गांव में किसी न किसी की मौत हो जाती है या फिर आपदा आती है। गांव को इस श्राप से मुक्त करवाने के लिए कई बार हवन-यज्ञ तक का सहारा लिया गया, लेकिन सब विफल रहा।
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