राम मनोहर लोहिया: एक ऐसा राजनेता, जिसका विरोधी भी करते थे सम्मान

राम मनोहर लोहिया ने अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के बीच भी अपार सम्मान हासिल किया।

Update:2021-03-23 11:27 IST

लखनऊ: आज दिग्गज समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohia) की जयंती है। प्रखर समाजवादी और मौलिक चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया का देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उल्लेखनीय योगदान रहा है। डॉ. राम मनोहर लोहिया देश के उस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम है, जो एक नई सोच और प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे। उनके सिद्धांत और बताए आदर्श आज भी लोगों के अंदर एक नई ऊर्जा भरते हैं। आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें...

शुरुआती जीवन

राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था। उनके पिता हीरालाल पेशे से अध्यापक थे। मात्र ढाई वर्ष की आयु में ही उनकी माता (चन्दा देवी) का देहान्त हो गया था। राम मनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में भावी बदलाव की बयार आजादी से पहले ही ला दी थी। उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे, जिसके कारण नन्हें लोहिया पर भी गांधी जी का काफी असर हो गया।

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विरोधी भी करते थे सम्मान

राम मनोहर लोहिया ने अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही अपने विरोधियों के बीच भी अपार सम्मान हासिल किया। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया जिनमें से एक थे राममनोहर लोहिया।

भारत के स्वतंत्रता युद्ध में बड़ी भूमिका

भारत छोड़ो आंदोलन ने लोहिया को परिपक्व नेता साबित कर दिया। 9 अगस्त 1942 को जब गांधी जी और अन्य कांग्रेस के नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तब लोहिया ने भूमिगत रहकर 'भारत छोड़ो आंदोलन' को पूरे देश में फैलाया। 20 मई 1944 को लोहिय को मुंबई में गिरफ्तार करके एक अंधेरी कोठरी में रखा गया, ये वो ही कोठरी है, जहां 14 वर्ष पहले भगत सिंह को फांसी दी गई थी, इस दौरान लोहिया को पुलिस की ओर से काफी यातनाएं दी गईं।

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नहीं मनाते थे अपना जन्मदिन

मालूम हो कि आज ही के दिन यानी लोहिया की जयंती के दिन ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी। इसलिए लोहिया ने मृत्यु तक अपने जन्मदिन को नहीं मनाया। लोहिया ने अपने साथियों को भी कहा था कि मेरे जन्मदिन के ही दिन भारत मां के तीन सपुतों की अंग्रेजों ने फांसी लगाकर हत्या की हैं इसलिए अब आज से 23 मार्च को कभी भी मेरा जन्मदिन नहीं मनाया जायेगा। कोई बहुत आग्रह करता तो उससे साफ कह देते थे कि अब 23 मार्च सरदार भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव का शहादत दिवस है और उसे उसी रूप में याद किया जाना चाहिए। 12 अक्टूबर 1967 को 57 वर्ष की आयु में राम मनोहर लोहिया ने आखिरी सांस ली।

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