Educational System: भारत में शैक्षिक संस्थानों के मूल्यांकन की अंतर्कथा
Evaluation of Educational Institutions: इन दिनों उतर प्रदेश के उच्च शिक्षा महकमे में नैक मूल्यांकन कराने की होड़ मची है। विश्वविद्यालय की नहीं, महाविद्यालय भी नैक मूल्यांकन करने के लिए हाथ पैर मारते देखे जा सकते हैं। वजह साफ़ है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के टीम की मेहरबानी।
Evaluation of Educational Institutions: इन दिनों उतर प्रदेश के उच्च शिक्षा महकमे में नैक मूल्यांकन कराने की होड़ मची है। विश्वविद्यालय की नहीं, महाविद्यालय भी नैक मूल्यांकन करने के लिए हाथ पैर मारते देखे जा सकते हैं। वजह साफ़ है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के टीम की मेहरबानी। तभी तो हमेशा कोई न कोई विवाद सिर ओढ़ लेने वाले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के बाद लखनऊ, मेरठ विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय को नैक मूल्यांकन में A ++ ग्रेड हासिल होना। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने चारों विश्वविद्यालयों को बराबरी का दर्जा दिया है। जो लोग भी इन चारों विश्वविद्यालयों को जानते हैं, जानते होगे, उनके गले के नीचे चारों की बराबरी का फ़ार्मूला उतर पाना या उतार पाना बहुत मुश्किल होगा।
ऐसे में वर्तमान में भारत सरकार के पास शिक्षण और अनुसंधान संस्थानों के मूल्यांकन के लिए दोनों वैकल्पिक पद्धतियाँ को समझने की ज़रूरत है। इनका केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, द्वारा सीधे नियंत्रित और मूल्यांकन किया जाता है। इसे 29 सितंबर, 2015 को तत्कालीन माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था। इनमें से एक मूल्यांकन को एमएचआरडी द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क NIRF (एनआईआरएफ) कहा जाता है।दूसरा नैक मूल्यांकन है। हर साल शिक्षा मंत्रालय देश में उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क या एनआईआरएफ रैंकिंग जारी करता है, जिसमें मोटे तौर पर शिक्षण, सीखने और संसाधन, अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास जैसे कई कारक शामिल हैं। स्नातक परिणाम , आउटरीच और समावेशिता , सहकर्मी धारणा, शिक्षण, सीखना और संसाधन , अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास, स्नातक परिणाम, आउटरीच और समावेशिता , और पीयर परसेप्शन को भी इसमें जोड़ सकते है।
विश्वविद्यालय जयपुर के पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर अशोक कुमार बताते हैं कि हर वर्ष, शिक्षा मंत्रालय विभिन्न क्षेत्रों में NIRF (एनआईआरएफ ) वरीयता प्रकाशित करता है जिसमें शामिल हैं-आईएनजी इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, फार्मेसी, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, फार्मेसी, मेडिकल और डेंटल कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान।
उनके मुताबिक़ एनआईआरएफ सबसे परिभाषित रैंकिंग सिस्टम है।उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित रैंकिंग प्रणाली शुरू करने के लिए एनआईआरएफ (नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क) शुरू किया गया था,जो इसे प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड बनाता है।यह छात्रों को सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय खोजने में मदद करता है और कॉलेजों को अपनी सेवाओं को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।जबकि NIRF का तुलनात्मक महत्व कम है क्योंकि इसकी रैंकिंग केवल एक वर्ष के लिए वैध होती है
जबकि NAAC ग्रेडिंग 5 वर्षों के लिए वैध होती है।क्या एक संस्थान की गुणवत्ता 5 वर्षों तक समान रह सकती है ? NIRF रैंकिंग हर साल बदलती है। दूसरी कार्यप्रणाली की जांच राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) द्वारा की जा रही है। नैक संस्थान की ‘गुणवत्ता स्थिति’ की समझ प्राप्त करने के लिए महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों या अन्य मान्यता प्राप्त संस्थानों जैसे उच्च शैक्षिक संस्थानों (एचईआई) का मूल्यांकन और मान्यता का आकलन करता है।
नैक का मुख्य उद्देश्य
NAAC का मुख्य उद्देश्य गुणवत्ता उच्च शैक्षिक संस्थानों का मूल्यांकन को परिभाषित तत्व बनाना है।NAAC द्वारा मूल्यांकन गुणवत्ता मानकों के अनुसार देखने के लिए किया जाता है जो शैक्षिक प्रक्रियाओं का प्रदर्शन और परिणाम, पाठ्यक्रम का कवरेज, शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया, संकाय और शिक्षक, अनुसंधान और विकास, बुनियादी ढांचा, संगठन, शासन, सीखने के संसाधन, वित्तीय स्थिति और छात्रों को प्रदान की जाने वाली सेवाएं से संबंधित है।
इसके अलावा नैक प्रत्यायन के कई फायदे हैं।नैक प्रत्यायन संस्थान की शिक्षा, अनुसंधान, संकाय, बुनियादी ढांचे आदि के संदर्भ में संस्थान की गुणवत्ता की पहचान करता है,साथ ही छात्रों को यह विश्वास दिलाता है कि वे एक गुणवत्तापूर्ण संस्थान का चयन कर रहे हैं।
तत्काल विश्वसनीयता देता है नैक यह एक संस्थान को तत्काल विश्वसनीयता देता है। इसके प्रवेश में वृद्धि करता है, संस्थान धन प्राप्त करने के अवसरों को आसान बनाता है। प्रोफेसरों को परियोजना का आवंटन आसान हो जाता है।अनुसंधान निधि एजेंसियों को विश्वास हो जाता है और प्रोफेसरों को परियोजनाएं आवंटित की जाती हैं।
-ब्रांड मूल्य में वृद्धि होती है।
-प्रवेश में वृद्धि, अनुभवी फैकल्टी हायरिंग और प्लेसमेंट के लिए अधिक पेशेवर नियोक्ताओं को लाने के साथ संस्थानों पर सकारात्मक प्रभाव।
-यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त है।
-अनुसंधान पहलू को विश्वसनीयता प्रदान करता है।
-केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 2022 के लिए उच्च शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग जारी की।
-समग्र रैंकिंग के अलावा, NIRF ने अन्य श्रेणियों में भी रैंकिंग जारी की।
प्रोफ़ेसर अशोक कुमार बताते हैं कि जब मैं दो सरकारी एजेंसियों यानी NAAC और NIFR द्वारा शैक्षणिक संस्थानों के मूल्यांकन को देखता हूं तो यह मेरे लिए एक अजीब घटना लगती है।
मैंने देखा कि कुछ संस्थानों को A++ ग्रेड दिया गया है-
Table :showing Universities NAAC A++ Gradation & their NIRF ranking
Serial No. Name of the University /NAAC grading/ NIRF Ranking
Jawaharlal Nehru University/ A++ /2
Jamia Milia University /A++ /3
Kerala University/ A++ /40
University of Mumbai/ A++/ 45
Banasthali Vidyapeeth/ A++ 49
Andhra University/ A++ /71
Lucknow University/ A++/ 150-200
DDUGorakhpur University /A++ /Not Applied
जिन संस्थानों को NAAC द्वारा A++ ग्रेड दिया गया था,
उनकी NIRF रैंकिंग 1 से 200 तक भिन्न होती है।
क्या हम यह कहना चाहते हैं कि गुणात्मक रूप से X विश्वविद्यालय सबसे अच्छा (A++, उच्चतम ग्रेड) है, लेकिन वे पहले 100 संस्थानों में वरीयता नहीं प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत NAAC में A प्राप्त करने वाले संस्थान को देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में 100 में स्थान दिया जाता है। (टेबल्स देखें)दोनों के मानदंड हैं अलग-अलग आप कह सकते है कि NAAC मान्यता और विश्वविद्यालय रैंकिंग NIRF के मानदंड अलग-अलग हैं।NAAC मे सात पैरामीटर हैं लेकिन NIRF मे 5 पैरामीटर हैं। इसलिए, इन दो संगठनों के मूल्यांकन की तुलना नहीं करनी चाहिए।
मैं समझता हूं कि एक पैरामीटर वास्तव में पूरे मेपरिदृश्य को बदल सकता है लेकिन सवाल यह है कि ऐसे संस्थान हैं जहां NAAC ग्रेड A++ है, लेकिन शैक्षिक संस्थानों की रैंकिंग में पहले 100 शैक्षणिक संस्थानों में कोई स्थान नहीं है और इसी तरह कुछ विश्वविद्यालय हैं जो NIRF में शीर्ष 10 पदों पर हैं, लेकिन उनके पास NAAC ग्रेडिंग ए++ नहीं है। कोई वास्तव में भ्रमित हो सकता है कि हम इन उदाहरणों से क्या निष्कर्ष निकालें।
क्या हमें यह कहना चाहिए कि गुणवत्ता की दृष्टि से “ए” देश का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय है। लेकिन मौजूदा विश्वविद्यालयों में यह 100 रैंकिंग के भीतर नहीं है। इसलिए, ऐसा लगता है कि हमारे मूल्यांकन मापदंडों या मूल्यांकन प्रणाली में कुछ गड़बड़ है। क्योंकि सिस्टम में ही कुछ दोष है वर्तमान मे विभिन्न शिक्षण संस्थानो मे NAAC में CGPA के अंकों मे वृद्धि हुई है।
CGPA के 4 अंकों मे-
-जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को 3.91,
-मुंबई 3.89,
-SOA भुवनेश्वर 3.88,
-गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर 3.85 ;
-BMS College of Engineering, Bengaluru – 3.83 ,
-Lakshmibai National Institute of Physical Education, Gwalior – 3.79 ,
-दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय 3.78 ,
-लखनऊ विश्वविद्यालय 3.5 ।
किसी भी संस्थान को यदि 4 अंकों के पैरामीटर में 3.91 या 3 से ज्यादा अंक प्राप्त होते हैं तब यह माना जाता है कि वह संस्थान सभी दृष्टिकोण से परिपक्व है। तो विश्वस्तरीय वरीयता क्यों नहीं मिलती वह संस्थान अकादमिक , शैक्षणिक, सामाजिक, शोध कार्य , सर्वगुण सम्पन्न एवं विश्वविद्यालय के सभी वर्ग के सदस्य गणों को संतुष्ट करता है। आश्चर्य इस बात का होता है जब भारतवर्ष के विभिन्न विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान अपने आप में विभिन्न दृष्टिकोण से पूरी तरह से संपन्न है लेकिन उन विश्वविद्यालयों को विश्व स्तर पर वरीयता क्यों नहीं मिलती है ?
मेरे अनुसार यह इस बात का संकेत है किसी भी संस्थान की गुणवत्ता के लिए विश्व स्तर के गुणवत्ता के मूल्यांकन पैरामीटर हमारे देश के संस्थानों के मूल्यांकन के पैरामीटर मे अंतर है। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि क्या हमें अपने देश में मूल्यांकन के पैरामीटर्स को एक बार फिर से विचार करना चाहिए ?
ग्रेड का मतलब यह लेकिन NAAC शिक्षा, बुनियादी ढांचे, अनुसंधान, शिक्षण और सीखने आदि के मामले में संस्थान की गुणवत्ता निर्धारित करती है। जिस संस्थान में शैक्षणिक, सहायक कर्मचारी और तकनीकी कर्मचारी की 40 से 50 फ़ीसदी तक कमी होगी, निश्चय ही इस कमी के कारण उच्च शैक्षणिक संस्थान की शैक्षणिक व्यवस्था , पठन पाठन, शोध कार्य , प्रशासनिक कार्य एवं विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्य अवश्य प्रभावित होते होंगे।
ऐसी दशा में मुझे आश्चर्य होता है कि इन कमियों के कारण किस प्रकार से किसी भी संस्थान को हम A++, A+ प्रदान कर सकते हैं विशेष तौर से उन संस्थानों में जिनका की CGPA 3.9, 3.89, 3.87 या 3.5 से अधिक हो।
NAAC की गुणवत्ता के मापदंड अंको को जो संस्थान के मापदंडो को पूरा करते हैं उन्हीं को दिया जाता / दिया जाना है / चाहिए। यदि ऐसा नहीं पाया जाता है तब हम NAAC के निरीक्षण पर भी प्रश्न चिन्ह उठा सकते हैं।
सर्वश्रेष्ठ संस्थान चुनने में स्टूडेंट्स को हो सकती परेशानी
एक और पहलू सामने आत्ता है : भारतवर्ष में जब हम NAAC की ग्रेडिंग और NIRF की रैंकिंग को देखते हैं तब इसमें एक विरोधाभास लगता है।यह विरोधाभास हमको किसी भी एक निष्कर्ष पर नहीं ले जाता।मैं आपके सामने सवाल करता हूं:
यदि आपके पास एक अवसर हो जिसमें आपको दो विभिन्न प्रकार के शिक्षण संस्थानों के बीच में एक शिक्षण संस्थान को चुनना हो तब आप इन विरोधाभास मापदंडों के आधार पर किस प्रकार से चयन करेंगे।
आपके सामने एक शिक्षण संस्थान है जिसमें की NAAC के द्वारा वह देश का सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान है । लेकिन अपने ही देश में वरीयता के क्रम में उसकी वरीयता प्रथम 200 स्थान तक नहीं है। दूसरी ओर एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिसकी देश में प्रथम वरीयता है। लेकिन NAAC के द्वारा वह देश का सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान नहीं है।ऐसी अवस्था में किसी भी विद्यार्थी को सर्वोत्तम शिक्षण संस्थान चुनने में कठिनाई हो सकती है।इसलिए हमें गंभीर रूप से चिंतन करना चाहिए कि क्या हमारे देश में किसी भी शिक्षण संस्थान की गुणवत्ता दो प्रकार से होनी चाहिए या एक व्यवस्था के अनुसार होनी चाहिए।
मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि संस्थान की रैंकिंग संस्थान की गुणवत्ता के आधार पर होनी चाहिए।गुणवत्ता/रैंकिंग मूल्यांकन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक मानदंड होना चाहिए। मैं इसे आपके निर्णय के लिए खुला छोड़ता हूं।
(यह डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय और सीएसजेएम विश्वविद्यालय कानपुर, सीएसए कृषि विश्वविद्यालय कानपुर, वैदिक विश्वविद्यालय निम्बाहेड़ा, निर्वाण तो कुलपति रहे प्रोफ़ेसर अशोक कुमार से बातचीत पर आधारित है।)