सामाजिक बहिष्कार से मुक्ति की छटपटाहट, प्रतिषेध विधेयक को पारित करने की तैयारी
राम शिरोमणि शुक्ल
रायपुर: छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। कुछ सामाजिक प्रभुता संपन्न लोग इसे बनाए रखना चाहते हैं और इसे समाज के लिए उपयोगी भी बता रहे हैं। इसके विपरीत सामाजिक रूप से जागरूक लोग और कुछ संस्थाएं सामाजिक बहिष्कार की प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रयास कर रही हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकार भी सामाजिक बहिष्कार की प्रथा पर रोक के लिए कानून बनाने को तैयार हो गई है।
छत्तीसगढ़ सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध विधेयक तैयार हो चुका है। माना जा रहा है कि आगामी एक अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के दौरान इसे पेश किया जाएगा और पारित किया जाएगा। इसी के साथ कुछ सामाजिक संगठन इस विधेयक को रोकने के लिए भी दबाव बनाने में लगे हैं। इसके लिए बैठकों से लेकर ज्ञापनों आदि का सहारा लिया जा रहा है। उनका तर्क है कि अगर विधेयक पारित हो जाएगा तो लोग सामाजिक मान्यताओं की अनदेखी करने लगेंगे।
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सामाजिक बहिष्कार के मामले बढ़े: सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों के फैसलों से सामाजिक बहिष्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे मामले ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा सामने आते हैं। इनमें जाति या समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान या फैसलों का पालन नहीं करने पर किसी व्यक्ति अथवा उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है। उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है। कुएं-तालाब से पानी नहीं लेने दिया जाता।
इसके अलावा भी कई अन्य तरह के कड़े दंड दिए जाते हैं। इससे पीड़ित परिवार के परेशान होने के साथ ही कई अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं। माना जाता है कि इस तरह की कुप्रथाएं शिक्षा और जागरूकता में कमी की वजह से मौजूद हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इन कुप्रथाओं को खत्म किया जाना चाहिए और लोगों को अपने तरीके से जीने-रहने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज के नाम पर प्रताडि़त करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाना चाहिए।
विधेयक का प्रारूप वेबसाइट पर: राज्य में यह समस्या लंबे समय से चली आ रही है। लंबे समय से इस पर रोक लगाने की कोशिशें भी की जा रही हैं, लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया जा सका था। व्यक्तिगत और सांगठनिक प्रयासों और जागरूकता की कोशिशों की भी एक सीमा होती है। ऐसी समस्याओं पर प्रभावी अंकुश के लिए कानूनी वैधता की आवश्यकता होती है। इसीलिए सामाजिक बहिष्कार रोकने के लिए कानून की मांग भी काफी समय से की जा रही थी। अब जाकर यह लग रहा है कि सरकार इसके लिए तैयार हो गई है।
पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में सामाजिक बहिष्कार रोकने का कानून हाल ही में बना है। इससे भी छत्तीसगढ़ में अतिरिक्त सक्रियता बढ़ी है। सरकार की ओर से इस दिशा में सकारात्मक प्रगति देखने में आ रही है। विधेयक का प्रारूप छत्तीसगढ़ पुलिस की वेबसाइट पर डाल दिया गया है ताकि लोग इसे समझ सकें। विधेयक के प्रारूप के संबंध में किसी वर्ग, समुदाय, संस्था अथवा व्यक्ति विशेष को दावा-आपत्ति प्रस्तुत करने का अवसर भी प्रदान किया जा चुका है।
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कई संगठन कर विधेयक का विरोध: इस बीच कुछ संगठनों की ओर से विधेयक का विरोध भी शुरू हो गया है। अभी धमतरी में विधेयक के विरोध में साहू समाज की बैठक में लिए गए निर्णय के साथ मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिए जाने की बात कही गई है। साहू समाज बहुत मजबूती से इस विधेयक को न पारित होने के पक्ष में है। मुख्यमंत्री रमन सिंह के चुनाव क्षेत्र राजनांदगांव में सर्व समाज ज्यादा मुखरता से इस विधेयक के विरोध की तैयारी कर रहा है। सर्व समाज ने भाजपा सांसद अभिषेक सिंह को ज्ञापन सौंपकर विधेयक रोकने में मदद मांगी है।
सर्व समाज का मानना है कि यह कानून बनने से निस्वार्थ भाव से समाज के विकास में लगे लोगों को ठेस पहुंचेगी। इतना ही नहीं, कानून बन जाने के बाद समाज के लोग असामाजिक हो जाएंगे। इसी तरह कुछ अन्य संगठन और व्यक्ति भी इस विधेयक को पारित किए जाने के खिलाफ हैं, लेकिन समाज का बहुत बड़ा हिस्सा और प्रगतिशील विचारों के लोग इस पक्ष में हैं कि सामाजिक बहिष्कार जैसी लोगों को प्रताडि़त करने वाली प्रथाओं पर रोक लगनी चाहिए।
सामाजिक बहिष्कार से मुसीबत बनी जिंदगी: सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं पर वैसे तो कोई विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन पूरे मामले को समझने के लिए कुछ घटनाओं का उल्लेख जरूरी है। ये फैसले कुछ-कुछ खाप पंचायतों के फैसलों जैसे होते हैं जिसमें पीडि़त को अनावश्यक रूप से तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो यह फैसले काफी क्रूर होते हैं जिनसे महिलाओं-बच्चों समेत पूरा परिवार ही नष्ट होने की स्थिति में पहुंच जाता है। कवर्धा जिले के लोहारा विकासखंड के बचेड़ी गांव के सरपंच ने तीन परिवारों के किसी सदस्य से बात न करने का फैसला सुना दिया। फैसले का उल्लंघन करने पर अथवा किसी तरह की मदद करने पर उससे 25 हजार रुपये अर्थदंड लेने और इसे न देने पर समाज से बहिष्कृत करने की चेतावनी दी गई।
राजिम के पास स्थित बेलटुकरी गांव में तेजराम साहू के परिवार द्वारा मुंडन नहीं कराने पर करीब 12 वर्षों तक समाज से बहिष्कृत रखा गया। जशपुरनगर के परसाबहार क्षेत्र में ग्राम देवता के प्रसाद के बिना बीज बुआई न करने पर जुर्माना भरवाया जाता है। इलाके के कई बुजुर्गों का कहना है कि किसी को नहीं पता कि यह नियम किसने और क्यों बनाया। जाहिर है लोगों को परेशान करने के लिए ऐसा किया गया है। महासमुंद के दर्रीपाली गांव में एक नहीं पांच परिवारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। परेशान होकर दो परिवारों ने गांव ही छोड़ दिया।
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कुंभकार और मानव समाज विधेयक के समर्थन में: सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध विधेयक का मानव समाज ने समर्थन किया है। मानव समाज का मानना है कि भारतीय संविधान के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म-मजहब को अपनाने या खुद के विचार से कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। सामाजिक बहिष्कार के माध्यम से उसकी यह आजादी छीन ली जाती है। यह सामाजिक बुराई है जिस पर रोक लगनी ही चाहिए।
इसके अलावा कुंभकार समाज ने भविष्य में किसी को भी समाज से बहिष्कृत नहीं करने का फैसला किया है। इतना ही नहीं समाज के संगठन में 25 फीसदी महिलाओं को सहभागी बनाने का भी फैसला किया है। समाज की कुछ दिनों पहले हुई बैठक में समाज से बहिष्कृत लोगों को समाज में वापस लेने तथा सभी 31 लोगों को उनके अर्थदंड की राशि लौटाने का निर्णय लिया था।
अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति चाहती है सक्षम कानून: अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति काफी समय से राज्य में अंधविश्वास और सामाजिक बहिष्कार जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ जनजागरूकता फैलाने में लगी है। समिति लगातार सरकार से मांग करती रही है कि राज्य में सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बनना चाहिए। समिति के अध्यक्ष डॉ.दिनेश मिश्र का कहना है कि सामाजिक रीति-रिवाजों की आड़ में सामाजिक बहिष्कार बड़ी सामाजिक कुरीति बन चुका है। छत्तीसगढ़ में यह कुरीति कुछ ज्यादा ही मजबूत होती जा रही है।
इस पर अंकुश लगाने के लिए सक्षम कानून बहुत जरूरी है। श्री मिश्र का कहना है कि सामाजिक बहिष्कार के फरमान से बहिष्कृत व्यक्ति अथवा परिवार का जीवन बहुत कठिन हो जाता है। ऐसे लोगों को घुट-घुटकर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सामाजिक बहिष्कार का दंड देने वाले व्यक्ति को ही दंडित किया जाना चाहिए। कोई कानून न होने की वजह से बहिष्कार करने वालों में किसी तरह का डर नहीं होता। कानून बन जाने से इस पर रोक लग सकेगी।