Famous Historical Buildings: पुरानी फाइल से! ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा सिफारिशों पर अमल नहीं

Famous Historical Buildings: विभिन्न शहरों में ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें हैं जो अपनी महत्ता और संस्कृति से जुड़ी होती हैं। हालांकि, इन इमारतों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए निर्देशों और सिफारिशों का अमल नहीं हो रहा है।

Update:2023-05-14 23:40 IST
Famous Historical Buildings (SOCIAL MEDIA)

Famous Historical Buildings: नई दिल्ली, 20 जून, 2000, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत आने वाले देश भर के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्मारकों की सुरक्षा व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त बनाने के लिए गठित तमाम समितियों की रिपोर्टों को नजरंदाज किए जाने के परिणामस्वरूप देश की बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर या तो नष्ट हो रही है या चोरों ओर तस्करों के माध्यम से विदेश जा रही है। यह इसी लापरवाही का नतीजा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान 79 प्राचीन मूर्तियों की चोरी हो चुकी हैं और तमाम प्रयासों के बावजूद जो आठ मूर्तियां बरामद भी हुई हैं । वे पुलिस थानों के कबाड़ में पड़ी हुई है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक ऐतिहासिक व पुरा महत्व के स्मारकों की सुरक्षा में लापरवाही का आलम यह है कि सुरक्षा अधिकारियों के स्वीकृत सोलह पदों में से मात्र 6 पदों पर लोग काम कर रहे हैं। शेष पद पिछले कई वर्षों से खाली पड़े हैं। यूं तो पुरातत्व विभाग के ऊपर 18 सर्किलों, दो मिनी सर्किलों और 33 संग्रहालयों समेत चार हजार से अधिक स्मारकों की देखरेख व रखरखाव का दायित्व है। परंतु सुरक्षा से जुड़े स्थायी स्टाफ की तादात इतनी भी नहीं है कि प्रत्येक स्मारक पर औसतन एक आदमी तैनात किया जा सके। जबकि इन स्मारकों की सुरक्षा के सम्बंध में तैयार की गयी रिपोर्ट बताती है कि एक ड्यूटी प्वाइंट पर कम से कम चार कर्मचारी होने चाहिए।

गौरतलब है कि 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का गठन किया गया था। लेकिन जब 1969 से 30 मार्च 72 तक इस विभाग के तहत आने वाले स्मारकों व संग्रहालयों से 87 कलाकृतियों व पुरातात्विक महत्व के वस्तुओं की चोरी हो गई तब चिंतित केंद्र सरकार को कैबिनेट कमेटी की संस्तुति पर 1972 में ही लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस.मारवाह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करना पड़ा। इस कमेटी ने 1973 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी। कमेटी ने ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्मारकों की रक्षा के लिए टॉस्क फोर्स के गठन की सिफारिश की। परंतु इन सिफारिशों पर हमल करने की जहमत नहीं उठाई गई। इसके बाद 1983 में जब इस मामले ने पुनः तूल पकड़ा तो सरकार ने राम निवास मिर्धा के नेतृत्व में एक नई कमेटी का गठन कर दिया। इस कमेटी को विभाग की समग्र गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया। मिर्धा कमेटी ने भी सुरक्षा के सवाल पर साफ तौर पर कहा कि सुरक्षाकर्मियों की संख्या अपर्याप्त हैं और स्मारकों के लिए स्पेशल टॉस्क फोर्स का गठन किया ही जाना चाहिए। समिति ने यह भी कहा कि इस टॉस्क फोर्स के लिए बी.एस.एफ. या सी.आई.एस.एफ. से दिशा निर्देश लिए जा सकते हैं।

परंतु इसके बावजूद टास्क फोर्स का गठन नहीं किया गया। हां, इतना जरूर हुआ कि समिति की संस्तुति पर सुरक्षा के संबंध में सुझाव और दिशा निर्देश देने के लिए अधिकारियों के 16 पदों का सृजन कर दिया गया। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इन सुरक्षा अधिकारियों ने समय-समय पर जो भी सुझाव महानिदेशक या संस्कृति मंत्रालय को भेजे उनमें से किसी पर भी आज तक अमल नहीं हुआ है।

मसलन, सुरक्षा अधिकारियों ने महानिदेशक को कहा कि स्मारकों की सुरक्षा व्यवस्था निजी सुरक्षा एजेंसी को दिया जाना उचित नहीं है। उनका तर्क था कि ये सुरक्षा गार्ड पूरी तरह से गैर प्रशिक्षित है ।जबकि इस काम के लिए विशेष्ज्ञ तौर पर प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मियों की जरूरत है। सुरक्षा अधिकारियों ने महानिदेशक को यह भी बताया कि ये निजी सुरक्षा एजेंसियों “रोटेशन ऑफ मैन पावर“ के सुरक्षा संबंधी आवश्यक नियम का भी पालन नहीं करती थीं। सुरक्षा अधिकारियों की ओर से लिखे गए पत्र में 5000 वाच एंड वार्ड कर्मियों की भर्ती की बात कही गई थी। परंतु योजना आयोग ने इस मांग को खारिज कर दिया और कहा कि स्मारकों व संग्रहालयों की सुरक्षा का जिम्मा निजी सुरक्षा एजेंसियों को सौंप दिया जाना बेहतर है।

आंकड़े बताते हैं कि देश भर के संवेदनशील संग्रहालयों व स्मारकों पर सुरक्षा के लिए पुरातत्व विभाग राज्य सरकारों को वार्षिक देना पड़ता है। निजी सुरक्षा एजेंसियों को 3.50 करोड़ रूपये का वार्षिक भुगतान किया जाता है। जबकि इनके सुरक्षाकर्मियों की तादात मात्र 679 है। जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि स्मारकों व संग्रहालयों पर तैनात सुरक्षाकर्मियों पर विभाग के सुरक्षा संबंधी स्थाई कर्मचारी व वॉच एंड वार्ड हैं। प्रदेश की आर्म्ड फोर्स राज्य सरकार के प्रति व निजी सुरक्षा एजेंसियां उनके प्रति जवाबदेह रहती हैं ।जो इन्हें तीन वर्ष तक के लिए अनुबंध प्रदान करता है। इस तरह सुरक्षा अधिकारी का पद सुरक्षा सलाहकार बन कर रह गया है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक 21 जून, 2000 को प्रकाशित)

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