प्रणब दा की किताब पर विवादः सोनिया-मनमोहन पर तल्ख टिप्पणी, ठहराया जिम्मेदार
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब द प्रेसिडेंशियल इयर्स बाजार में आने से पहले ही चर्चा का विषय बन गई है। अगले साल जनवरी में आने वाली यह किताब पश्चिम बंगाल के एक गांव से देश के राष्ट्रपति भवन तक के प्रणव दा के सफर का पूरा ब्योरा पेश करेगी।
नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब द प्रेसिडेंशियल इयर्स बाजार में आने से पहले ही चर्चा का विषय बन गई है। अगले साल जनवरी में आने वाली यह किताब पश्चिम बंगाल के एक गांव से देश के राष्ट्रपति भवन तक के प्रणव दा के सफर का पूरा ब्योरा पेश करेगी।
इस किताब में प्रणब दा ने कांग्रेस के पराभव के कारणों का भी जिक्र किया है। उन्होंने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा के हाथों 2014 में कांग्रेस की करारी शिकस्त के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। प्रणब दा की इन टिप्पणियों से सियासी बखेड़ा खड़ा होने का अंदेशा जताया जा रहा है।
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खो दिया पॉलिटिकल फोकस
प्रणब दा ने एक राजनेता के रूप में लंबी सियासी पारी खेली थी। इसी साल गत 10 अगस्त को उनका निधन हुआ था। उन्होंने 2012 में देश के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला था और उनका सफल कार्यकाल 2017 में पूरा हुआ था। इस किताब में प्रणब दा ने कहा है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने दिशा खो दी और सोनिया गांधी पार्टी के मामलों को नहीं संभाल पा रही थीं। प्रणव दा के मुताबिक मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस की लीडरशिप ने पॉलिटिकल फोकस खो दिया।
सदन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की लंबे समय तक गैरमौजूदगी ने अन्य सांसदों के साथ व्यक्तिगत संपर्क भी खत्म कर दिए। प्रणब दा ने अपनी इस किताब में यह बात भी लिखी है कि पार्टी के कुछ नेता मानते थे कि 2404 में अगर मैं प्रधानमंत्री बना होता तो पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी हार से बच सकती थी। हालांकि उन्होंने नेताओं की इन बातों का खंडन भी किया है।
दो प्रधानमंत्रियों से रिश्तों का खुलासा
इस किताब में प्रणब दा ने राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान दो धुर सियासी विरोधी प्रधानमंत्रियों मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के साथ अपने रिश्तों की बात भी साझा की है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में मुझे दो बिल्कुल अलग प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का मौका मिला। पीएम के रूप में डॉ मनमोहन सिंह गठबंधन को सहेजने के बारे में ही हमेशा सोचा करते थे। उनकी सरकार पर भी इसका असर दिखाई देता था।
मोदी का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है कि अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने शासन की निरंकुश शैली का रास्ता अपनाया। इसी कारण सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के रिश्तों में कड़वाहट भी देखने को मिली। प्रणव दा के मुताबिक मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान समझ बेहतर हो सकी या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
संस्मरणों पर तीन किताबें
एक राजनेता के रूप में प्रणब मुखर्जी ने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उनके संस्मरणों पर आधारित तीन किताबें द ड्रामेटिक डिकेड-द इंदिरा गांधी इयर्स, द टर्बुलेंट इयर्स और द कोएलिशन इयर्स आ चुकी है। इन किताबों में उन्होंने सियासत में खुद के सक्रिय होने के बाद की बड़ी घटनाओं का पूरा ब्योरा पेश किया है।
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चौथी किताब में होगा यह ब्योरा
द प्रेसिडेंशिल इयर्स पूर्व राष्ट्रपति की यादों की चौथी किश्त है। इसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव से देश के राष्ट्रपति भवन तक के अपने सफर के बारे में पूरी जानकारी दी है। उन्होंने राष्ट्रपति रहने के दौरान आने वाली चुनौतियों और मुश्किल फैसलों के बारे में भी जानकारी दी है। रूपा पब्लिकेशन हाउस के मैनेजिंग डायरेक्टर कपीश जी मेहरा का कहना है कि अगर प्रणब मुखर्जी आज होते तो पाठकों के बीच अपनी ऑटोबायोग्राफी पढ़ने का जोश देखकर जरूर रोमांचित हो उठते। उनका कहना है कि यह किताब बेहतरीन अंदाज में लिखी गई है और इसे पढ़ने पर ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति एक कप चाय के साथ बैठकर अपनी पूरी कहानी सुना रहे हैं।
अंशुमान तिवारी