Freebies Case: फ्री स्कीम्स पर सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच करेगी, सीजेआई बोले, मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत
Freebies Case: इस मामले को अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच देखेगी। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असली ताकत मतदाताओं के पास है।;
Supreme Court (image social media)
Freebies Case: देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन मुफ्त चुनावी वादों पर सुनवाई करते हुए मामले को नई बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया है। सीजेआई ने कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे गंभीरता से लेनी चाहिए। इस मामले को अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच देखेगी। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असली ताकत मतदाताओं के पास है। वोटर ही पार्टियों और उम्मीदवारों का फैसला करते हैं।
मुफ्त सुविधाओं की घोषणा ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है कि राज्य की आर्थिक सेहत बिगड़ जाए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कमेटी बनाई जा सकती है लेकिन क्या कमेटी इसकी परिभाषा सही से तय कर पाएगी। बड़ा सवाल ये भी है कि अदालत इस तरह के मामलों में किस हद तक दखल दे सकता है। इस मामले की सुनवाई दो हफ्ते के बाद फिर से शुरू होगी।
वहीं फैसला सुनाने के बाद सीजेआई रमण ने याचिकाकर्ता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय को धन्यवाद दिया, जिस पर उपाध्याय ने कहा कि हम आपको मिस करेंगे। नई बेंच में अगले चीफ जस्टिस यूयू ललित समेत तीन जज होंगे और आगे की सुनवाई करेंगे।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल दी थी गेंद
इससे पहले 11 अगस्त की सुनवाई में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना उनके अधिकार में नहीं है। चुनाव से पहले फ्रीबीज का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना सियासी दलों का नीतिगत फैसला होता है। अगर चुनाव आयोग इसमें हस्तक्षेप करेगा, तो उसे शक्तियों का दुरूपयोग माना जाएगा। ऐसे में कोर्ट ही तय करे कि फ्रीबीज क्या है और क्या नहीं। अदालत के आदेश का आयोग पालन करेगा।
बता दें कि भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि चुनाव में मुफ्त उपहार और सुविधाएं बांटने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की जाए। ये निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने के साथ – साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर डालते हैं। याचिका में कहा गया कि सियासी दलों द्वारा कई गैरजरूरी चीजों का भी वादा किया जाता है, जिसका मकसद जनकल्याण नहीं बल्कि पार्टी को लोकप्रिय बनाना होता है।