गामा किरणें जरूरी और नुकसानदेह भी, जानें आखिर ये है क्या?
Gamma Rays: रेडियोएक्टिविटी हमारी पृथ्वी का एक हिस्सा है और यह हमेशा से अस्तित्व में रही है।
Gamma Rays: रेडियोएक्टिविटी को डरावनी चीज माना जाता है जबकि असलियत ये है कि रेडियोएक्टिविटी हमारी पृथ्वी का एक हिस्सा है और यह हमेशा से अस्तित्व में रही है। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ जमीन में, हमारे घरों, स्कूलों या दफ़्तरों के फ़र्श और दीवारों और हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन और पेय में मौजूद होते हैं। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उसमें रेडियोएक्टिव गैसें होती हैं। हमारे अपने शरीर - मांसपेशियों, हड्डियों और टिश्यू में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोएक्टिव तत्व होते हैं। हमें पृथ्वी के बाहर से भी रेडियोएक्टिविटी मिलती है। एक रेडियोएक्टिविटी इंसानों ने भी बनाई है जिनसे जो रेडियेशन निकलता है वह खतरनाक होने के बावजूद तमाम तरह के इस्तेमाल में आता है। इसी रेडिएशन का हिस्सा होती हैं एक्स, अल्फा, बीटा और गामा किरणें। इनमें से सबसे प्रचलित नाम है ‘एक्स रे’ का जिसका मेडिकल इस्तेमाल तो बहुत ही व्यापक है। लेकिन गामा किरणें भी बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनका इस्तेमाल कैंसर जैसी बीमारी के इलाज में तो किया ही जाता है, कई बीमारियों का पता लगाने में भी किया जाता है।
सबसे मजबूत होती हैं गामा वेव्स
गामा किरणें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन होती हैं यानी यह बिजली से पैदा चुम्बकीय शक्ति से निकलती हैं और ये एक्स-रे, प्रकाश और रेडियो तरंगों के समान होती हैं। गामा किरणें (gamma waves) में इतनी एनर्जी होती है कि वे इंसानी शरीर से होकर गुज़र सकती हैं, लेकिन कंक्रीट या सीसे (lead) की मोटी दीवारों द्वारा रोकी जा सकती हैं। गामा वेव की खासियत है कि ये सबसे छोटी रेडियो फ्रीक्वेंसी वाली होती हैं और सबसे ज्यादा ऊर्जा का इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन पैदा करती हैं।
क्या है गामा किरणों की फिजिक्स
गामा किरण आमतौर पर एक्स-रे की तुलना में छोटी तरंगों की होती हैं। इनमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन के किसी भी अन्य रूप की तुलना में सबसे अधिक फोटॉन ऊर्जा होती है। फ्रांसीसी रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी पॉल विलार्ड ने रेडियम द्वारा निकलने वाले रेडिएशन का अध्ययन करते समय 1900 में गामा रेडिएशन की खोज की थी। 1903 में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने पदार्थ की तुलना में मजबूत प्रवेश के आधार पर इस रेडिएशन को गामा किरणें नाम दिया था।
गामा वेव्स का मेडिकल इस्तेमाल
गामा वेव्स का इस्तेमाल इलाज और डायग्नोसिस में किया जाता है। इनका उपयोग कैंसर सेल्स को मारकर और ट्यूमर को सिकोड़कर कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है। इनका उपयोग PET स्कैन में भी किया जाता है, जहाँ रोगियों को रेडियोन्यूक्लाइड के इंजेक्शन दिए जाते हैं और डॉक्टर रोगी के अंदर देखने के लिए गामा-रे कैमरों का उपयोग करते हैं।
- पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (PET) की इमेजिंग तकनीक में इस्तेमाल। PET स्कैन में, एक रेडियोएक्टिव तत्व (radioactive element) को शरीर के किसी खास हिस्से में इंजेक्ट किया जाता है। उस दवा से निकलने वाले पॉज़िट्रॉन जल्दी से आस-पास के इलेक्ट्रॉनों के साथ मिल जाते हैं और विपरीत दिशाओं में यात्रा करने वाली दो 511-केवी गामा किरणों को पैदा करते हैं। गामा-किरण कहां से निकल रही है इसकी इमेजिंग की जाती है। इससे डाक्टरों को उस जगह की वास्तविक स्थिति का पता लग सकता है।
- चूंकि गामा किरणें गहरी पैठ वाली होती हैं सो ये रेडिएशन के रूप में जीवित सेल्स में महत्वपूर्ण जैव रासायनिक परिवर्तन करती हैं। रेडिएशन थेरेपी में इसका इस्तेमाल ट्यूमर में कैंसर सेल्स को चुनिंदा रूप से नष्ट करने के लिए किया जाता है। रेडियोएक्टिव पदार्थ को ट्यूमर के पास इंजेक्ट या इम्प्लांट किया जाता है। उस पदार्थ द्वारा लगातार निकलने वाली गामा किरणें प्रभावित क्षेत्र पर बमबारी करती हैं और घातक सेल्स की ग्रोथ को रोकती हैं।
हेल्थ इफ़ेक्ट
- गामा किरणें सेलुलर स्तर पर यानी सेल्स को सीधे नुकसान पहुंचाती हैं। इसके चलते पूरे शरीर में फैलकर नुकसान पहुंचता है।
- गामा किरणों के जोखिम ये भी हैं कि इनसे कैंसर उत्पन्न हो सकता है और जेनेटिक क्षति की संभावना रहती है।
- गामा किरणों की हाई लेवल खुराक से काफी ज्यादा और गंभीर टिश्यू डैमेज होता है।
- कम समय में ररेडिएशन की ज्यादा खुराक के संपर्क में आने से रेडिएशन सिंड्रोम नामक प्रभाव पड़ता है और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
रेडिएशन सिंड्रोम के कुछ लक्षणों में बेहोशी, भ्रम, मतली और उल्टी, दस्त, बालों का झड़ना, त्वचा और मुंह के छाले और ब्लीडिंग शामिल हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम विस्फोटों के कारण रेडिएशन सिंड्रोम के कई मामले सामने आए। कुछ मामले परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुर्घटनाओं के कारण भी हुए हैं, जैसे कि चेरनोबिल में हुआ तहस।
- रेडिएशन थेरेपी में दी जाने वाली खुराक से भी दुष्प्रभाव होते हैं। शार्ट टर्म इफेक्ट्स उपचार किए जा रहे क्षेत्र पर निर्भर करते हैं, लेकिन इसमें त्वचा में परिवर्तन (हल्के लाल होने से लेकर गंभीर जलन जैसी कोई चीज), मतली, उल्टी, दस्त और लो ब्लड काउंट शामिल हो सकती है।
- रेडिएशन के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी होते हैं, जैसे कि सिर और गर्दन के क्षेत्र में रेडिएशन से शुष्क मुँह और निगलने में परेशानी की समस्या हो सकती है। रेडिएशन हड्डियों को कमज़ोर कर सकता है, जिससे बाद में उनके टूटने की संभावना बढ़ जाती है। ब्लड सेल्स की संख्या में दीर्घकालिक समस्याएँ हो सकती हैं और यहाँ तक कि अप्लास्टिक एनीमिया नामक बीमारी भी हो सकती है। पेल्विक क्षेत्र में रेडिएशन से बांझपन हो सकता है।
गामा किरणों के और भी हैं इस्तेमाल
स्टरलाईजेशन
गामा किरणों का उपयोग चिकित्सा उपकरणों, इंजेक्शन योग्य उत्पादों और खाद्य नमूनों को स्टरलाइज़ करने के लिए किया जाता है। गामा किरणें प्रभावी होती हैं क्योंकि वे अधिकांश सामग्रियों में प्रवेश कर सकती हैं, और केवल तापमान में थोड़ी वृद्धि की आवश्यकता होती है।
अंतरिक्ष खोज
गामा किरणों का उपयोग खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करने और अन्य ग्रहों पर तत्वों को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, मैसेंजर गामा-रे स्पेक्ट्रोमीटर बुध गृह की सतह पर परमाणुओं के नाभिक द्वारा उत्सर्जित गामा किरणों को मापता है।
क्वालिटी कंट्रोल
गामा किरणों का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि किन्ही चीजों में कोई खराबी तो नहीं है। गामा किरणें बिना उन्हें तोड़े या नुकसान पहुँचाए सामग्रियों में प्रवेश कर सकती हैं।
भोजन
गामा किरणों का उपयोग फलों, सब्जियों, जड़ी-बूटियों और मांस को सुखाने के लिए किया जाता है। गामा रेडियेशन भोजन में केमिकल कंपाउंड्स को संशोधित करता है, बैक्टीरिया को मारता है और खाद्य उत्पादों के शेल्फ जीवन को बढ़ाता है।