"महात्मा गांधी ने देश की आजादी के लिए जो काम किया, उसकी बड़ी कीमत उनके परिवार को चुकानी पड़ी"

महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी का मानना है कि देश की आजादी के सपने को साकार करने के लिए गांधी ने जो काम किया उसकी कीमत उनके परिवार को चुकानी पड़ी।

Update:2017-05-06 13:39 IST

नई दिल्ली: महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी का मानना है, कि देश की आजादी के सपने को साकार करने के लिए मोहनदास करमचंद गांधी ने जो काम किया उसकी बड़ी कीमत उनके परिवार को चुकानी पड़ी। वो पत्नी और अपने बच्चों को वो समय नहीं दे सके जो आमतौर पर एक पति और पिता देता है। परिवार पर पूरा ध्यान नहीं देने की टीस परिवार के लोगों को आज भी है।

गांधी एक बेहतरीन पति व शानदार पिता भी हो सकते थे

राजमोहन ने अपनी नई पुस्तक 'वाई गांधी स्टिल मैटर्स' में भी इस बात का जिक्र किया है । राजमोहन कहते हैं कि "उन्हें अपनी पत्नी तथा बेटों को अधिक समय देना चाहिए था और उनकी बात सुननी चाहिए थी। भारतीयों के अद्भुत मित्र व प्रेरणास्रोत होने के साथ-साथ गांधी एक बेहतरीन पति व शानदार पिता भी हो सकते थे।"

उन्होंने कहा, "लेकिन वह भी इंसान थे। उन पर भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने, सभी भारतीयों के बीच मित्रवत संबंध कायम करने और जहां तक संभव हो सके एक-दूसरे को माफ करने का जुनून था और वह इससे उबर नहीं पाए।"उनके परिवार को इससे अक्सर ठेस लगती थी और इसकी टीस उनके दिल में अब भी है ।

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सफलताओं तथा विफलताओं का भी जिक्र

वाई गांधी स्टिल मैटर्स में गांधी के सर्वाधिक चर्चित व विवादास्पद विचारों, विश्वासों, कार्यो, सफलताओं तथा विफलताओं का भी जिक्र है।राजमोहन ने किताब में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, बहुलवाद, समानता तथा अहिंसा को लेकर गांधी की प्रतिबद्धता, दुनिया को दिए उनके उपहार 'सत्याग्रह', जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके संघर्ष की प्रमुख रणनीतियों में एक रहा, जातीय विभेद को लेकर उनके ऐतराज और विंस्टन चर्चिल, मोहम्मद अली जिन्ना तथा बी.आर. अंबेडकर के साथ उनके संबंधों के अतिरिक्त एक इंसान और पारिवारिक सदस्य के तौर पर उनकी विफलताओं का भी विश्लेषण किया है।

दुनिया गांधी को क्यों याद करती है

राजमोहन कहते हैं कि यदि शत्रुता व वैमनस्य से मुक्त हृदय, जिसमें सभी भारतीयों के लिए जगह हो, की भावना को अलग कर दिया जाय तो गांधी का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है। यदि खुदगर्जी से भारत को खुशी मिलती है तो भी हमें गांधी को याद करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन हमें खुद से पूछना चाहिए कि आखिर दुनिया गांधी को क्यों याद करती है, जबकि उनके समकालीनों में से दुनियाभर की शख्सियतों को उस तरह याद नहीं किया जाता।

कोई भी सफल या आधुनिक राष्ट्र इन्हें नहीं मिला सकता

धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र पर गांधी के दृष्टिकोण को साझा करते हुए और यह बताते हुए कि आज के विभाजनकारी दौर में उनके भाईचारे की सीख किस प्रकार कारगर हो सकती है, लेखक ने कहा कि करीब 108 साल पहले 1909 में उन्होंने 'हिन्द स्वराज' में स्पष्ट कर दिया था कि 'धर्म व राष्ट्रीयता दो अलग चीजें हैं' और 'कोई भी सफल या आधुनिक राष्ट्र इन्हें नहीं मिला सकता।'

लेखक के अनुसार, "वह अपने इस रुख से कभी पीछे नहीं हटे। 1948 में जब उनकी हत्या हुई, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जैसे नेताओं और ऐसी ही कुछ भारतीय शख्सियतों के जरिये यह सुनिश्चित करा लिया था कि हमारा गणराज्य कम से कम संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष व निष्पक्ष बना रहेगा।"

क्या हम अपने सिद्धांतों के प्रति वफादार बने रहे?

जब उनके अपने ही शब्दों में उनसे पूछा गया कि क्या 'सत्ता के भूखे राजनेताओं' ने बापू का सिर नीचा किया तो उन्होंने कहा, "हमें यह पूछने की जरूरत नहीं है कि सत्ता के भूखे राजनेताओं या किसी अन्य ने बापू का सिर नीचा किया या नहीं? हम सभी को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या हम अपने सिद्धांतों के प्रति वफादार बने रहे? हमारे नेताओं को भी निश्चित रूप से खुद से पूछना चाहिए कि उन्होंने खुद को प्राथमिकता दी या देश को?"

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