मजदूरों के हक के लिए चलाया था आंदोलन, GOOGLE ने DOODLE बनाकर दी श्रृद्धांजली
सिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अनसूया साराभाई शनिवार (11 अक्टूबर) को 132वां जन्मदिन है। इस अवसर पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है। अनसूया साराभाई का जन्म 11 नवंबर 1885 को अहमदाबाद में साराभाई परिवार में हुआ, जो कि एक उद्योगपति और व्यापारिक लोगों के एक धनी परिवार में से था।
नई दिल्ली: प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अनसूया साराभाई शनिवार (11 अक्टूबर) को 132वां जन्मदिन है। इस अवसर पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है। अनसूया साराभाई का जन्म 11 नवंबर 1885 को अहमदाबाद में साराभाई परिवार में हुआ, जो कि एक उद्योगपति और व्यापारिक लोगों के एक धनी परिवार में से था।
उन्होंने बुनकरों और टेक्स्टाइल उद्योग के मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए 1920 में मजूर महाजन संघ की स्थापना की थी जो भारत के टेक्स्टाइल मजदूरों का सबसे बड़ा पुराना यूनियन है।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
अनसूया साराभाई के पिता का नाम साराभाई और माता का नाम गोदावरीबा था। उनका परिवार काफी संपन्न था क्योंकि उनके पिता उद्योगपति थे। जब वह 9 साल की थीं तो उनके माता-पिता का निधन हो गया। इसके बाद उन्हें, उनके भाई अंबालाल साराभाई और छोटी बहन को एक चाचा के पास रहने के लिए भेज दिया गया। 13 साल की उम्र में उनका बाल विवाह हुआ जो सफल नहीं रहा। अपने भाई की मदद से वह 1912 में मेडिकल की डिग्री लेने के लिए इंग्लैंड चली गईं लेकिन बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में चली गईं।
राजनीतिक करियर
भारत वापस आने के बाद उन्होंने महिलाओं और समाज के गरीब वर्ग की भलाई के लिए काम किया। उन्होंने एक स्कूल खोला। जब उन्होंने 36 घंटे की शिफ्ट के बाद थककर चूर हो चुकी मिल की महिला मजदूरों को घर लौटते देखा तो उन्होंने मजदूर आंदोलन करने का फैसला लिया। उन्होंने 1914 में अहमदाबाद में हड़ताल के दौरान टेक्स्टाइल मजदूरों को संगठित करने में मदद की। वह 1918 में महीने भर चले हड़ताल में भी शामिल थीं। बुनकर अपनी मजदूरी में 50 फीसदी बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे लेकिन उनको सिर्फ 20 फीसदी बढ़ोतरी दी जा रही थी, जिससे असंतुष्ट होकर बुनकरों ने हड़ताल कर दिया था। इसके बाद गांधी जी ने भी मजदूरों की ओर से हड़ताल करना शुरू कर दिया और अंतत: मजदूरों को 35 फीसदी बढ़ोतरी मिली। इसके बाद 1920 में मजूर महाजन संघ की स्थापना हुई।
साराभाई को मोटीबेन भी कहा जाता था, जो कि गुजराती में बड़ी बहन को संबोधित करता है। साराभाई भारतीय स्वयं-रोजगार महिला संगठन के संस्थापक एला भट्ट के परामर्शदाता की भूमिका में भी रहीं। साराभाई की मृत्यु 1972 में 87 वर्ष की आयु में हुई थी।