मशहूर साहित्यकार कृष्णा सोबती का निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर
प्रसिद्ध साहित्यकार और ज्ञानपीठ अवॉर्ड से सम्मानित कृष्णा सोबती का 93 साल की उम्र में निधन हो गया। सोबती का जन्म 18 जनवरी 1925 में हुआ था। कृष्णा सोबती को राजनीति सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है।
नई दिल्ली: प्रसिद्ध साहित्यकार और ज्ञानपीठ अवॉर्ड से सम्मानित कृष्णा सोबती का 93 साल की उम्र में निधन हो गया। सोबती का जन्म 18 जनवरी 1925 में हुआ था। कृष्णा सोबती को राजनीति सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है।
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लौटा दिया था साहित्य अकादमी अवॉर्ड
सोबती के उपन्यास मित्रो मरजानी को हिंदी साहित्य में महिला मन के मुताबिक लिखी गई बोल्ड रचनाओं में गिना जाता है। 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने वालों में सोबती भी शामिल थीं। उनके एक और उपन्यास जिंदगीनामा को हिंदी साहित्य की कालजयी रचनाओं में गिना जाता है। उन्हें पद्म भूषण की भी पेशकश की गई थी, लेकिन उसे उन्होंने ठुकरा दिया था।
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अस्पताल में लॉन्च की थी किताब
उनकी रिश्तेदार अभिनेत्री एकावली खन्ना ने जानकारी दी कि एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। पिछले कुछ महीनों में उनकी तबीयत खराब चल रही थी और अक्सर अस्पताल उन्हें आना-जाना पड़ता था। उन्होंने पिछले महीने अस्पताल में अपनी नई किताब लॉन्च की थी। अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वह हमेशा कला, रचनात्मक प्रक्रियाओं और जीवन पर चर्चा करती रहती थी।'
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18 फरवरी, 1925 को जन्मीं सोबती ने अपने उपन्यास 'जिंदगीनामा' के लिए 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता था। भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें 2017 में ज्ञानपीठ से भी सम्मानित किया गया था। सोबती को उनके 1966 के उपन्यास 'मित्रो मरजानी' से ज्यादा लोकप्रियता मिली, जिसमें एक विवाहित महिला की कामुकता के बारे में बात की गई थी।
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कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों में सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी का नाम लिया जाता है।
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साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ जनं संस्कृति मंच आदि ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।