Husband Legal Right: किन अधिकारों के जरिए घरेलू हिंसा के शिकार पति कर सकते हैं अपनी रक्षा, जानें यहां
Husband Legal Right: पुरूष प्रधान समाज में शादीशुदा पुरूषों के साथ हो रही ज्यादती का जिक्र काफी कम होता है। समाज और सिस्टम ने एक तरह से मान लिया है कि घरेलू प्रताड़ना या उत्पीड़न के शिकार केवल महिलाएं ही हो सकती हैं।
Husband Legal Right: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की स्थिति को लेकर काफी कुछ लिखा व बोला जाता रहा है। इसकी शिकार महिलाओं के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। इसके अलावा कई गैर-सरकारी संस्था ऐसी महिलाओं की सहायता के लिए काम कर रही हैं। लेकिन इस पुरूष प्रधान समाज में शादीशुदा पुरूषों के साथ हो रही ज्यादती का जिक्र काफी कम होता है। समाज और सिस्टम ने एक तरह से मान लिया है कि घरेलू प्रताड़ना या उत्पीड़न के शिकार केवल महिलाएं ही हो सकती हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पीछे एक प्रचलित सोच है महिलाएं आमतौर पर हिंसक व्यव्हार नहीं करतीं और किसी भी परिवार को आगे बढ़ाने में उनका अहम योगदान होता है। ठीक इसी तरह पुरूषों को लेकर भी एक आम धारना है कि वो अपनी पत्नियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते। नशे में अपनी पत्नी के साथ मारपीट करते हैं, दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं बगैरा-बगैरा।
इन सब के अलावा पुरूषों को लेकर जो सबसे अधिक प्रचलित धारना है वो है उनकी मर्दानगी या पुरूषत्व। अगर कोई पुरूष अपने शादीशुदा जिंदगी में अपने पार्टनर से किसी भी मामले में कमतर दिखे तो समाज उसके मजे लेने से नहीं चुकता। मसलन अगर कोई पुरूष ये कहे या अपना दर्द बयां करे कि उसकी पत्नी घर में उसके साथ हिंसा करती है और मेंटल टॉर्चर करती है तो काफी संभव है कि समाज के अधिकांश लोग उसका मजाक उड़ाएं और उसकी मर्दानगी को संदेह की नजर से देखें।
घर के अंदर और घर के बाहर से मिलने वाले ऐसे टॉर्चर को कई बार पुरूष बर्दाश्त नहीं कर पाते और अपना जीवन खत्म कर लेते हैं। कानून में भी पति के पास पत्नी के समान अधिकार नहीं हैं। ऐसे में उन्हें वहां से भी राहत की बहुत उम्मीद नहीं होती। कुल मिलाकर देखा जाए तो सदियों से समाज में महिलाओं और पुरूषों को लेकर चली आ रही एक प्रचलित सोच आज शादीशुदा मर्दों के लिए एक तरह से अभिशाप बन रहे हैं।
इन सब बातों की चर्चा करने की वजह ये है कि एक बार फिर घरेलू हिंसा के शिकार हो रहे पुरूषों के अधिकार का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए महिला आयोग की तर्ज पर पुरूष आयोग के गठन की मांग की गई।
याचिका में 2021 में आए एनसीआरबी के डेटा का जिक्र करते हुए कहा कि देशभर में एक लाख 64 हजार 33 लोगों ने आत्महत्या की है। इसमें 28 हजार 680 विवाहित महिलाएं हैं जबकि पुरूषों की संख्या 81 हजार 63 है। याचिका में आगे कहा गया कि 33.2 फीसदी पुरूषों ने पारिवारिक समस्या के कारण और 4.8 फीसदी ने विवाह संबंधित विवाद और घरेलू हिंसा के कारण आत्महत्या कर ली है। याचिकाकर्ता ने इन आंकड़ों का हवाला देते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर पुरूष आयोग के गठन की मांग की है।
पति के पास होते हैं ये खास अधिकार
इसमें कोई दो राय नहीं कि घरेलू मामलों में कानून की नजर में पत्नी को पति पर थोड़ा बढ़त हासिल है। मगर कुछ कानूनी अधिकार उनके भी पास हैं, जिनके जरिए वो अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं। तो आइए एक नजर उन 6 खास अधिकारों पर डालते हैं –
1.हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत का अधिकार – घरेलू हिंसा के शिकार पति के पास पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है। अगर पत्नी उसके साथ मारपीट या कोई गलत काम करने के लिए दवाब बना रही है तो पीड़ित पुलिस की मदद ले सकता है। वह इसकी शिकायत महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 पर भी कर सकता है।
2.तलाक का अधिकार – पति भी पत्नियों की तरह तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। इसके लिए उसकी पत्नी की सहमति अनिवार्य नहीं है। वो अपनी जान को खतरा, अत्याचार या मेंटल स्टेबिलिटी का जिक्र करते हुए याचिका दायर कर सकता है।
3.स्व-अर्जित संपत्ति पर अधिकार – पति को अपने द्वारा अर्जित संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है। इस पर उसकी पत्नी या बच्चे अपना हक नहीं जता सकते। पति को ये अधिकार है कि वह अपने जीवित रहते हुए स्व-अर्जित संपत्ति को जिसे चाहे दे सकता है या फिर उसे किसी ट्रस्ट के नाम ट्रांसफर कर सकता है। हाल ही में यूपी में एक बुजुर्ग ने अपनी सारी संपत्ति राज्यपाल को दान कर दी थी।
4.पत्नी से भरणपोषण मांगने का अधिकार – हिंदू मैरिज एक्ट में पत्नी की तरह पति को भी भरणपोषण मांगने का अधिकार दिया गया है। भरणपोषण की रकम कितनी होगी ये मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट तय करती है।
5.बच्चे की कस्टडी का अधिकार – पति – पत्नी के बीच तलाक अगर एकतरफा हुआ है तो बच्चे की कस्टडी का अधिकार पिता को मिलता है। बच्चे के भविष्य को देखते हुए कोर्ट आर्थिक रूप से सक्षम अभिवावक को ही ज्यादातर मामलों में कस्टडी सौंपती है। यदि बच्चा बहुत छोटा है तब कोर्ट उसकी देखभाल का जिम्मा मां को सौंपता है। यदि मां सक्षम नहीं है तो अदालत अपने फैसले में बदलाव कर सकता है।
6.मानसिक प्रताड़ना के खिलाफ शिकायत का अधिकार – अगर पति अपनी पत्नी के द्वारा मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है, जो उसे पुलिस में शिकायत करने और कोर्ट जाने का अधिकार है। पति-पत्नी के रिश्तों में कुछ हरकतों को मानसिक प्रताड़ना के रूप में चिह्नित किया गया है, जो इस प्रकार हैं –
- घर से बाहर निकाल देना
- हद से ज्यादा टोका-टाकी करना
- परिवार के लोगों और दोस्तों से न मिलने देना
- भावनात्मक हिंसा करना
- बार-बार नामर्द बोलना
- रिश्तेदारों से न मिलने देना
- बार-बार आत्महत्या की धमकी देना
- सबके सामने या अकेले में गाली देना या अपशब्द बोलना
- शारीरिक रूप से चोट पहुंचाना और दर्द देना