इस IAS ऑफिसर ने उजागर किया था चारा घोटाला, 53 मामले दर्ज, 500 बने थे आरोपी
मनोज पाठक
पटना: देश के बहुचर्चित घोटालों में से एक चारा घोटाले को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी अमित खरे ने उजागर किया था। सरकारी राशि के बंदरबांट से जुड़े एक मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने शनिवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद को दोषी करार दिया।
सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपए की निकासी की कहानी को 'चारा घाटोला' कहा गया, जिसमें राजनेता, बड़े नौकरशाह और फर्जी कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं को आरोपी बनाया गया।
खरे ने ही उजागर किया था मामला
चारा घोटाले को सबसे पहले वर्ष 1993-94 में पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपए से अधिक की निकासी से जुड़े मामले को उजागर किया था और इसकी प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था। अमित खरे इस समय विकास आयुक्त और योजना व वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं।
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पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य बरी
सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले से संबंधित जिस मामले में शनिवार को लालू प्रसाद सहित 16 लोगों को दोषी पाया है। वह देवघर के जिला कोषागार से फर्जी तरीके से 84.5 लाख रुपए निकाले जाने से जुड़ा हुआ है। अदालत ने पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र और अन्य छह आरोपियों को इस मामले में बरी कर दिया।
3 जनवरी को सुनाई जाएगी सजा
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह तीन जनवरी को इस मामले में सजा सुनाएंगे। इस मामले की सुनवाई रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने 13 दिसंबर को पूरी कर ली थी। इस पूरे मामले में कुल 34 आरोपी थे, जिनमें से 11 की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और सीबीआई का गवाह बन गया।
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चारा घोटाले में दर्जनों मुकदमे दर्ज हुए
चाईबासा (झारखंड) में फर्जी निकासी का भंडाफोड़ होने के बाद बिहार पुलिस (उन दिनों झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था) गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपए की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए।
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कई नेताओं ने दी थी जनहित याचिका
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक सुशील कुमार मोदी, सरयू राय, शिवानंद तिवारी (वर्तमान राजद उपाध्यक्ष), राजीव रंजन सिंह की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की गई।
आखिरकार सीबीआई को जांच का जिम्मा
दूसरी तरफ, कोर्ट में लोकहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया, कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है। इसके बाद कोर्ट ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट को मॉनिटरिंग शुरू करने का आदेश दिया गए।
1996 में सबके सामने आया चारा घोटाला
इसके बाद चारा घोटाला वर्ष 1996 में पूरी तरह सबके सामने आ गया। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल जाना पड़ा था। लालू ने उस समय अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की कमान सौंप दी थी।
53 मामले दर्ज, 500 लोगों को आरोपी बनाया गया
चारा घोटाले के मामले में बिहार और झारखंड के अलग-अलग जिलों में कुल 53 मामले दर्ज कराए गए थे, इसमें राज्य के दिग्गज नेताओं और अधिकारियों सहित करीब 500 लोगों को आरोपी बनाया गया। इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, भोलाराम तूफानी, विद्यासागर निषाद सहित कई अन्य मंत्रियों पर मामले दर्ज हुए थे।
उल्लेखनीय है, कि इससे पहले चाईबासा कोषागार से अवैध ढंग से निकासी करने के मामले में भी 3 अक्टूबर, 2013 को लालू सहित 22 लोगों को सजा सुनाई गई थी। इस सजा के बाद लालू को अदालत से जमानत मिली हुई थी।
आईएएनएस